भारतीय जनता पार्टी के पूर्व महासचिव और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक के. एन. गोविंदाचार्य ने यूपीएससी की सीसैट परीक्षा प्रणाली के विरोध में चल रहे छात्र आंदोलन को अपना समर्थन देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है।
इस पत्र में उन्होंने सीसैट परीक्षा प्रणाली को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि इसे लागू रखने से दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना भी हो रही है। गोविंदाचार्य ने लिखा है कि भारतीय भाषाओं को सिविल सेवा में सम्मानपूर्ण स्थान याचना नहीं वरन संवैधानिक अधिकार है। प्रस्तुत है उनके इस पत्र का पूरा आलेख –
सेवा में,
श्री नरेन्द्र मोदी जी
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
साउथ ब्लॉक, नयी दिल्ली।
विषय : यूपीएससी की असंवैधानिक सीसैट परीक्षा प्रणाली एवं दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना।
उपरोक्त महत्वपूर्ण विषय पर मैं आपका ध्यानाकर्षित करना चाहता हूँ जो पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की विफलता एवं यूपीएससी की संवेदनहीनता का परिणाम है। तात्कालिक तौर पर जहाँ यह युवाओं के भविष्य एवं नौकरी से जुड़ा एक ज्वलंत प्रश्न है, वहीं दीर्घकालिक नजरिये से यह देश की संवैधानिक व्यवस्था एवं संसदीय सर्वोच्चता से जुड़ा राष्ट्रीय विषय है। आपने हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्रयोग तथा उन्नयन के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इस विषय में आप के हस्तक्षेप से हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण हो सकेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
मैकाले के विचारों पर आधारित 1854 में स्थापित सिविल सेवाओं को आम भारतीयों के लिए खोलने का प्रश्न राष्ट्रीय स्वंतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मुद्दा था, जहाँ इसका चयन ब्रिटेन में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के अनुरूप होता था। आजादी के योद्धाओं के संघर्ष के परिणामस्वरूप सिविल सेवा के चयन की प्रक्रिया भारत में प्रारंभ हुई, तदुपरांत लोक सेवा आयोग का गठन हुआ। आजादी के बाद भारतीय भाषाओं एवं राजभाषा हिंदी की भारतीय सिविल सेवा में महत्ता स्थापित करने हेतु संसद के दोनों सदनों द्वारा सन 1968 में एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव के अनुपालन में कोठारी समिति की अनुशंसा लागू की गयी, जिसमें हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग एवं महत्व स्थापित हुआ।
इस संवैधानिक व्यवस्था को संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सन 2011 में परिवर्तित कर दिया गया जो संविधान के अनुच्छेद 344 एवं संसद के प्रस्ताव के विरूद्ध था। इस संदर्भ में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा रिट पिटीशन नं-651/2012 में दिनांक 31 मई 2013 को आदेश दिया गया कि नयी समिति बना कर नौ महीनों के भीतर सीसैट प्रणाली की वैधानिकता पर केंद्र सरकार उचित निर्णय ले। परंतु इस संदर्भ में श्री अरविंद वर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति द्वारा अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं दी गयी है।
छात्रों के विरोध के बाद केंद्रीय मंत्री श्री जितेंद्र सिंह के आश्वासन के बावूजद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रारंभिक परीक्षा के एडमिशन कार्ड जारी किये जाने लगे हैं, जिससे युवा वर्ग में हताशा एवं निराशा है। संघ लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसकी स्वायत्ता में कोई भी हस्तक्षेप नहीं होगा, परंतु ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर यदि संविधान एवं कानून के अनुरूप समय सीमा के भीतर निर्णय लिये जायें तो भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है।
संवैधानिक प्रावधानों को लागू कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है जैसा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से भी स्पष्ट है। देश के युवाओं एवं जनता को आपसे बड़ी उम्मीदें हैं। भारतीय भाषाओं को सिविल सेवा में सम्मानपूर्ण स्थान, हमारी याचना नहीं वरन उनका संवैधानिक अधिकार है। इस विषय पर आप त्वरित निर्णय लेकर युवाओं के उज्जवल भविष्य एवं संसद की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।
धन्यवाद सहित,
सादर
के. एन. गोविंदाचार्य
(देश मंथन, 28 जुलाई 2014)