मन की खुशी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मुझे ठीक से याद है कि गुलबवा की कहानी किसने सुनायी थी। इस सच्ची कहानी सुनाते हुए उसने बताया था कि हर आदमी में दो आदमी रहते हैं। एक बाहर का आदमी और दूसरा भीतर का आदमी। भीतर का आदमी मन है, बाहर का आदमी तन है। 

जो मुझे गुलबवा की कहानी सुना रहा था, वो समझा रहा था कि हम में से ज्यादातर लोग बाहर के आदमी की परवाह करते हैं। पूरी जिन्दगी बाहर वाले की सुनते हैं, और उसी की सेवा में अपनी जिन्दगी खर्च कर देते हैं। पर हकीकत में हमें सुननी भीतर के आदमी की चाहिए। बाहर वाला हमारा चमकीला दोस्त है, जबकि भीतर वाला सच्चा दोस्त। पर अफसोस कि हम इस सच को समझ नहीं पाते और बाहर वाले की खुशी की तलाश में भटकते रहते हैं। 

खैर, मैं सुबह-सुबह ज्ञान क्यों दूँ? मैं जानता हूँ कि इस संसार में सभी ज्ञानी हैं, इसलिए मैं ज्ञान की बात नहीं करता। पर जिसने मुझसे गुलबवा की कहानी साझा की वो कह रहा था कि संजय तुम्हें अगर असली खुशी चाहिए तो तुम अपने भीतर छिपे दूसरे आदमी की परवाह करो। तन की तुलना में मन ज्यादा श्रेष्ठ है।

अब कुछ ही दिन पहले तन और मन की कहानी सुनी है, तो जाहिर है कुछ दिनों तक मन हावी रहेगा तन पर।

अब इतना पढ़ चुकने के बाद आपका मन गुलबवा की कहानी सुनने को मचल रहा होगा। 

तो अब नो लंबी बात, सीधे-सीधे गुलबवा की कहानी। हाँ, यह भी बता दूँ कि गुलबवा का असली नाम गुलाब था। गाँव के लोग नाम बिगाड़ कर उसे गुलबवा बुलाते थे। 

***

नर्मदा नदी में आ बाढ़ गयी थी। पानी पूरे ऊफान पर था। उफनती हुई नर्मदा नदी को देख कर सभी अपनी-अपनी कहानी सुना रहे थे। कोई शेखी बघार रहा था कि ये तो कुछ नहीं है, उसके दादा जी ने तो एक बार नदी में इतना पानी देखा था कि पूरा गाँव डूब गया था, तो वो खुद तैर-तैर कर सबको बचा रहे थे। कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ।

तभी छपाक की आवाज आयी और लोगों ने देखा कि एक छोटी बच्ची नदी में गिर गयी है। बच्ची को तैरना नहीं आता था, वो डूबने लगी। वहाँ मौजूद सभी लोग चिल्लाने लगे, “बचाओ-बचाओ।”

चिल्ला सब रहे थे पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि वो उस उफनती नदी में कूद कर बच्ची को बचा लाये। 

बच्ची बहती हुई बहुत दूर तक चली गयी और लगा कि अब वो नहीं बचेगी। तभी एक आदमी उस उफनती नदी में कूदा और तेजी से तैरता हुआ बच्ची को बचा लाया। बच्ची बच गयी। पूरा गाँव हैरान था। सब व्याकुल थे ये जानने के लिए कि आखिर कौन है ये बहादुर नौजवान।

बच्ची बच गयी थी। पूरा गाँव उस नौजवान को घेर कर खड़ा था। नौजवान खड़ा हुआ। सबने उसे पहचान लिया, अरे ये तो गुलबवा है। 

गुलबवा, ये यहाँ क्या करने आया है? 

सबकी आँखें आश्चर्य से फटी पड़ी थीं। गुलबवा, तू यहाँ?

***

ज्यादा सस्पेंस ठीक नहीं। 

गुलबवा उस पूरे इलाके का सबसे बड़ा चोर था। वो कई बार पकड़ा गया, जेल गया पर उसने चोरी नहीं छोड़ी। पूरे इलाके में वो बदनाम था। 

सबने उससे पूछा, “गुलबवा, तू नदी में क्यों कूदा? और तेरे को डर नहीं लगा कि तू फरार है, अब तू पकड़ा जाएगा?”

गुलबवा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हुजूर, माई बाप। मैं चोर हूँ, आप सब जानते हैं। मैं इस गाँव में छिप कर आया भी इसी नीयत से था कि रात में चोरी करूँगा। पर यहाँ से गुजरते हुए मैंने बचाओ-बचाओ की आवाज सुनी तो रुक गया। मैंने देखा कि एक बच्ची नदी में डूब रही है और सभी लोग बचाने की गुहार लगा रहे हैं। कोई बचाने को नदी में नहीं कूद रहा। 

आखिर में मुझसे नहीं रहा गया। मेरे भीतर के गुलबवा ने कहा कि तू कूद जा, गुलाब। जा बचा ला बच्ची को। 

बाहर का गुलाब कह रहा था कि बेटा, अगर किसी ने देख लिया तो तू गया काम से। सारे लोग पकड़ कर तुझे पुलिस के हवाले कर देंगे। पर भीतर का गुलाब अड़ गया कि चाहे पुलिस पकड़ कर फाँसी ही क्यों न दे दे, पर ऐसे किसी को डूबने तो नहीं दिया जा सकता है। बस मैंने भीतर वाले गुलाब की बात सुन ली और कूद पड़ा बच्ची को बचाने के लिए। 

अब आपके सामने हूँ। जो चाहे सजा दे लीजिए। 

***

कहानी सुनाने वाला इतना सुना कर चुप हो गया। 

चुप ही होना था। इसके बाद कहानी में सुनने लायक कुछ था ही कहाँ? इसके बाद तो जो बचा वो बस सोचने के लिए बचा।

मैं सोच में डूबा हूँ। आप भी सोचिए। अपने भीतर के गुलाब की आवाज को सुनिए। बाहर वाले का क्या है, वो तन के सुख के लिए सबकुछ करता है। भीतर वाला मन के लिए करता है। मन की खुशी के अपने मायने होते हैं। तन का क्या है? जबसे सृष्टि बनी है, तब से यही सुनता आ रहा हूँ कि तन नश्वर है। मन अनश्वर है। तन शरीर है। मन आत्मा है। 

***

आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गला नहीं सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती। 

(देश मंथन, 27 अक्तूबर 2015)

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