जिसे जो मिला, वही वो देगा

0
133

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज पोस्ट लिखते हुए मुझे कई बार रुकना पड़ा। 

मैं जब भी नफरत की कहानी आपके पास लाता हूँ, तो मुझे कई बार रुकना पड़ता है। नफरत मेरा कोर सब्जेक्ट नहीं है। मेरा कोर सब्जेक्ट प्यार है। आप मुझसे कहिए कि संजय सिन्हा प्यार पर कुछ लिखो, तो मेरा यकीन कीजिए, मेरी उंगलियां चलेंगी नहीं, दौड़ेंगी। पर जैसे ही आप कहेंगे कि नफरत पर कुछ लिखो, तो मैं रुक जाऊंगा। 

कुछ दिन पहले तक मैं ऐसा सोचता था कि आखिर कुछ लोग हर बात में नकारात्मक सोच क्यों विकसित कर लेते हैं? वो प्यार की जगह नफरत को क्यों गले लगाए फिरते हैं? मेरे पास मेरे सवाल का जवाब नहीं था। लेकिन पिछले दिनों जब मैं जबलपुर गया था, तब बच्चों के डॉक्टर अव्यक्त अग्रवाल से मिलने के बाद मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया था। हालाँकि डॉक्टर साहब को नहीं पता होगा कि उन्होंने मुझे मेरे सवाल का जवाब दे दिया है, पर देने वाले ने दे दिया था और पाने वाले ने पा लिया लिया था। 

***

सुनाने को तो डॉक्टर साहब मुझे तन की कहानी सुना रहे थे। लेकिन मैं उनसे मन की कहानी सुन रहा था। वो बता रहे थे कि अगर जन्म के साथ ही किसी बच्चे की आँखें कुछ घंटों के लिए ढक दी जाएं, उसे रोशनी से रूबरू नहीं कराया जाए, तो वो बच्चा अंधा हो जाएगा। मतलब बच्चे की आँखें ठीक होंगी, उनका रेटिना भी ठीक होगा, पर बच्चा कभी कुछ देख नहीं पाएगा।

डॉक्टर मुझे इसका वैज्ञानिक कारण बता रहे थे। मैं इसका भावनात्मक कारण समझ रहा था।

वो कह रहे थे कि जब बच्चा पैदा होता है, तब उसके एक-एक अंग उसकी जरूरत के हिसाब से सक्रिय होना शुरू होने लगते हैं। क्योंकि आँख बुनियादी इंद्री है, इसलिए जब वो तुरंत एक्टिव नहीं होती, तो दिमाग ये मान लेता है कि इसे इसकी जरूरत नहीं। और फिर सबकुछ ठीक होने के बावजूद बच्चा स्थायी रूप से अंधा हो जाता है। 

***

फिल्म का नाम था ‘त्रिशूल’।

फिल्म में अमिताभ बच्चन थे। राखी थीं। शशि कपूर थे। हेमा मालिनी थीं। पूनम ढिल्लो थीं। सचिन थे। और भी ढेरों कलाकार थे। सब प्यार से ओत-प्रोत थे। शशि कपूर हेमा मालिनी से प्यार करते हैं, सचिन पूनम ढिल्लो से प्यार करते हैं। सबकी आँखों में प्यार था, बस अमिताभ बच्चन की आँखों में नहीं। 

और तो और, जब शशि कपूर एक गाने में कहते हैं कि मुहब्बत बड़े काम की चीज है, तो अमिताभ बच्चन कहते हैं कि ये बेकार, बेदाम की चीज है। 

फिल्म देख कर मैंने चाहे जितनी तालियाँ बजाईं हों, पर एक सवाल मेरे मन में खटकता रहता था कि आखिर अमिताभ बच्चन को प्यार से इतनी नफरत क्यों थी? 

कई साल पहले उठे इस सवाल का जवाब मुझे मिल गया था डॉक्टर साहब के ज्ञान से। 

मैं समझ गया था कि जिसे बचपन में प्यार मिला ही नहीं, जिसने प्यार की रोशनी देखी ही नहीं, जिसने सिर्फ नफरत और नफरत को अपनी खुराक बनाया, वो प्यार की कीमत क्या जाने?

फिल्म में भी यही दिखलाया गया था अमिताभ बच्चन के हिस्से नफरत आई थी, जबकि शशि कपूर के हिस्से ढेर सारा प्यार। 

मतलब फिल्म की कहानी में भी अमिताभ बच्चन का प्यार वाला कोना एक्टिव ही नहीं हो पाया था। 

***

खैर, मैं जब भी प्यार की कहानियाँ सुनाता हूँ, बहुत से लोग मुझसे और मेरी पोस्ट से प्यार करते हैं, तो कुछ लोग नफरत को भी गले लगाते हैं। मैं सिमरन और पारो की कहानी लिखता हूँ, तो कुछ लोग कहते हैं कि ये प्यार-व्यार क्या होता है? 

आप लोग मेरी पोस्ट पढ़ते हैं, लाइक करते हैं, अपने कमेंट करते हैं, खुशी जताते हैं। पर कुछ लोग अब्दुला दीवाना की तरह कूद कर कहते हैं कि आप कश्मीर पर क्यों नहीं लिखते? ये चूड़ियाँ पहनी हुई पोस्ट क्यों? जो लड़कियाँ प्रेम में इतनी मजबूत हो जाती हैं कि उन्हें जमाने का खौफ नहीं रह जाता, वो कश्मीर में जाकर मुकाबला क्यों नहीं करतीं? और-और-और…।

मैं प्रतिक्रियावादी नहीं हूँ। मैं आमतौर पर बहुत से कमेंट पर चुप्पी साध लेने वाला इंसान हूँ। मैं जानता हूँ कि जो लोग कश्मीर की कहानी सुनाने की गुहार लगाते हैं, वो सिर्फ फेसबुक के ही वीर हैं। उनकी मर्दाना ताकत यहीं तक सीमित है, इसके आगे न उन्होंने कभी कश्मीर को देखा है, न उन्हें उसके आँसुओं से कोई मतलब है। ऐसे लोग बेजवह उन लड़कियों को कोसते हैं, जो मेरी वॉल को अपना मायका समझ कर आती हैं और मुझे भैया-भैया कहती हुई इतरा कर चली जाती हैं। मेरी वॉल पर जब ये वीर पुरुष कहते हैं कि प्यार-व्यार कुछ नहीं होता, तो मुझे अचानक जबलपुर के डॉक्टर अव्यक्त अग्रवाल का ये ज्ञान याद आने लगता है।

आपको भी जब कोई नफरत फैलाता दिखे तो यही सोचिएगा कि जिसे जो मिला, वही वो देगा।

यह मत भूलिएगा कि नफरत फैलाने वाले कश्मीर से लेकर पेरिस तक नफरत फैला रहे हैं, पर प्यार करने वालों के हौसलों को कुचल नहीं पा रहे।

फिल्म के अंत में राखी अमिताभ बच्चन के मन में प्यार जगाने में कामयाब हो जाती हैं। मुझे उम्मीद है कि मैं भी प्यार से नफरत करने वालों के मन में एक दिन प्यार जगा दूंगा।

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास…।

(देश मंथन 15 जुलाई 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें