बाड़ ही अब खेत खाने लगी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

करीब पंद्रह साल पहले मेरी एक परिचित के पेट में बहुत तेज दर्द उठा। वो भाग कर दिल्ली के एक बहुत बड़े अस्पताल में पहुँच गयीं। वहाँ डॉक्टरों ने पूरी जाँच की और बताया कि उन्हें एपेंडिसाइटिस की समस्या है और फौरन ऑपरेशन करना पड़ेगा। एपेंडिसाइटिस की समस्या बहुत आम समस्या है। अपेंडिक्स आंत का एक टुकड़ा है। इसे डॉक्टरी भाषा में एपेंडिसाइटिस कहते हैं।

यह ऐसा अंग है, जिसका शरीर में कोई काम नहीं होता और किसी वजह से जब यह संक्रमित हो जाता है, तो इसका ऑपरेशन कराना जरूरी होता है। डॉक्टर लोग ऐसा कहते हैं कि शरीर का यह बेकार अंग कोई फायदा तो पहुँचाता नहीं, उल्टे दर्द देता है और कई बार फूल कर फट जाने की स्थिति में जानलेवा भी हो जाता है। 

तो, मेरी परिचित के साथ भी ऐसा ही हुआ। दिल्ली के सबसे बड़े प्राइवेट अस्पताल में उनसे कहा गया कि कुछ ही घंटों में ऑपरेशन होना जरूरी है। मेरी परिचित अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत सजग रहती हैं, इसलिए उन्होंने अपना स्वास्थ्य बीमा भी करा रखा है।

ऐसे में उन्होंने मन बना लिया कि अब ऑपरेशन करा लिया जाए। एक तो शरीर का बेकार अंग, ऊपर से तकलीफ। और सबसे बड़ी बात कि दिल्ली के इतने बड़े अस्पताल में बीमा के आधार पर मुफ्त ऑपरेशन। तो कहीं कोई समस्या ही नहीं थी। 

पर उस दिन ऑपरेशन के लिए जाते हुए उन्होंने मुझे फोन किया कि आज पेट का ऑपरेशन है। 

मैं चौंका। मैं समझ गया कि बीमा है, बगल में फाइव स्टार अस्पताल है, इसलिए ये लोग मामूली बीमारी में भी अस्पताल भागते हैं और अपना इलाज बीमा के बूते फटाफट करा लेते हैं। अस्पताल में प्राइवेट वार्ड में दाखिला मिल जाता है, डॉक्टर, नर्स आगे-पीछे डोलते हैं और वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है। 

पर उस दिन पता नहीं क्यों मैंने कह दिया कि आप एक बार मेरे एक जानने वाले डॉक्टर हैं, उनसे मिल लीजिए। मेरी परिचित मान गयीं। हम अपने दोस्त डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर ने उन्हें देखा और कहा कि यह तो मामूली गैस की समस्या से पेट में उठा दर्द था। अपेंडिसाइटिस की समस्या नहीं है। फिर उन्होंने अल्ट्रासाउंड से इस बात की जाँच भी की। उन्होंने पाया कि सचमुच अपेंडिसाइटिस नहीं है। 

बस उन्होंने एक दो गोली लिखी और कहा कि ऑपरेशन की जरूरत नहीं है। 

मैंने बताया न कि पंद्रह साल बीत गये हैं। उनके पेट में दुबारा दर्द ही नहीं हुआ। 

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दो साल पहले मेरे बहुत पुराने एक दोस्त भागे-भागे मेरे पास आए कि अगले हफ्ते उनकी बाईपास सर्जरी होनी है, दिल्ली के बहुत बड़े हार्ट अस्पताल ने कह दिया है कि दिल की सारी धममनियों में फैट जमा हो गया है। अगर बाईपास नहीं कराया तो कभी भी कुछ भी हो सकता है। 

मुझे बहुत चिंता हुई। मैंने कहा कि अगर कोलेस्ट्रोल की समस्या है तो ऑपरेशन तो कराना ही पड़ेगा। पर एक बार आप दुबारा अपने दिल की जाँच करा लीजिए। पर ध्यान रहे कि आप इस रिपोर्ट की चर्चा मत कीजिएगा। आप बेशक दुबारा उसी अस्पताल में जाएँ, आप अपना नाम कुछ और बता कर सामान्य तरीके से जाँच कराइए। मत कहिएगा कि आपके पास इंश्योरेंस आदि है। 

वो दुबारा उसी अस्पताल में गये। उन्होंने पिछले दिन के रिपोर्ट की कोई चर्चा नहीं की। सबकुछ नए सिरे जाँच कराया। 

जो रिपोर्ट आई, उसमें दिल की हालत एकदम ठीक थी। कहीं कोई समस्या नहीं थी। उसी अस्पताल में नयी रिपोर्ट आ गयी। इस तरह उनका बाईपास होना बच गया। 

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अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर संजय सिन्हा सुबह-सुबह उठ कर ऐसी कहानी क्यों लिख रहे हैं? 

तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि हिंदुस्तान में इन दिनों बड़े-बड़े अस्पतालों में बहुत संगठित तरीके से लोगों को इलाज के नाम पर ठगा जा रहा है। ये तो दो उदाहरण वो हैं, जिन्हें मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ। बतौर पत्रकार मैं ऐसी कई घटनाओँ से रूबरू हो चुका हूँ। मैं इन दो घटनाओं को कभी भी सबूत समेत पेश कर सकता हूँ, जिसमें एक के पेट का ऑपरेशन नहीं होना था, पर डॉक्टर पेट का ऑपरेशन करने को तैयार थे। दूसरे में दिल का ऑपरेशन भी नहीं होना था, पर डॉक्टर उसके लिए तैयार थे। दोनों ही परिस्थितियों में अगर ऑपरेशन करा लिया जाता, तो संसार का कोई भी डॉक्टर यह साबित नहीं कर सकता था कि उन्हें दरअसल बीमारी वो थी ही नहीं। उनकी बीमारी सिर्फ अस्पताल की ओर से बनाई हुई थी। उनकी बीमारी उनके बीमा से मिलने वाली रकम के वृक्ष से फलने वाला फल भर था। 

दोनों ही परिस्थितियों में प्राइवेट अस्पताल उन्हें ऐसा करने को उकसा रहे थे। 

आज मेरे ऐसा लिखने से अगर किसी डॉक्टर की भावनाएँ आहत हुईं, तो मैं नाम पता समेत पूरा सच उगल दूँगा। 

फिलहाल मैं बहुत गुस्से में हूँ, और मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरी एक परिचित को डॉक्टर ने झूठमूठ ब्रेस्ट कैंसर का डर दिखा कर उनका इलाज शुरू कर दिया है। 

मुझे लगता है कि इस मामले में हमसे चूक हो गयी है। हालाँकि हमने कई जगह उनकी रिपोर्ट दिखायी थी, पर हमारी गलती यह थी कि हमने रिपोर्ट दिखायी, वही रिपोर्ट दिखायी, जिसे उस अस्पताल ने दिया था। मेरा गुस्सा अगर थोड़ा ठंडा पड़ा तो मैं कल पूरी कहानी लिखूँगा और आपको अगाह करूँगा कि आप कभी ऐसे बड़े पैसाखोर डॉक्टरों के पल्ले पड़ जाएँ, तो कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले सेकेंड और थर्ड ओपिनियन जरूर लीजिएगा। 

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चलते-चलते एक सच्ची घटना की चर्चा और करता ही चलूँ ताकि कोई डॉक्टर मेरी वाल पर आकर यह दलील न देने लगे कि उसेक पेशे को मैं यहाँ फेसबुक पर बैठ कर बदनाम कर रहा हूँ। आपलोग मेरे मित्र Sanjaya Kumar Singh को जानते ही होंगे। आपको यह भी पता ही होगा कि पिछले साल उनकी पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो गयी थी। इसकी चर्चा क्योंकि उन्होंने अपनी वाल पर खुद की थी, इसलिए मैं नाम के साथ लिखने की हिम्मत कर रहा हूँ। उन्हें दिल्ली के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ डॉक्टरों ने कहा था कि बाईपास सर्जरी तुरंत करानी पड़ेगी। उनके दिल के सारे वाल्व भी डालडा और सफोला तेल से जाम हो गये हैं। मतलब फुल कोलेस्ट्रोल जमा हो गया था। संजय सिंह से मेरी रोज बात होती थी किसी की समझ में नहीं आता था कि क्या किया जाए? 

आखिर बहुत सोच विचार कर उन्हें उस अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर ऑल इंडिया मेडिकल साइंस अस्पताल में अपने एक परिचित डॉक्टर को उन्होंने दिखाया। 

जानते हैं क्या हुआ? जिस दिल के ऑपरेशन की जरूरत अगले चौबीस घंटों में कराने की सलाह दी जा रही थी, उस दिल में कोई समस्या ही नहीं थी। कहीं कुछ नहीं था। बाकी जो तकलीफ और बीमारी थी, उसका तुरंत इलाज हो गया, पर हार्ट का ऑपरेशन नहीं हुआ। 

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सचमुच हिंदुस्तान में शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में सफेद कॉलर वाले लुटेरों का बोलबाला बढ़ गया है। 

बाड़ ही अब खेत खाने लगी है। 

(देश मंथन, 19 अक्तूबर 2015)

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