पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
टी-20 विश्वकप की गहमागहमी अभी बनी हुई ही थी कि आ गया सट्टेबाजों का सालाना त्यौहार यानी दुनिया के सबसे बड़े खेल ब्रांडों में एक आईपीएल -9 जो नौ अप्रैल से प्रारंभ होने जा रहा है और जिसमें सट्टेबाजी-फिक्सिंग के आरोपों के चलते निलंबित चेन्नई सुपर किंग और राजस्थान रायल्स के स्थान पर धोनी की अगुवाई में राइजिंग पुणे और सुरेश रैना के नेतृत्व वाली गुजरात लायंस राजकोट को बतौर नयी फ्रेंचाइजी लीग में शामिल किया गया है।
इस समय क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में करोड़ टके का यही सवाल घुमड़ रहा है कि कई विवादों में घिरी लीग क्या निर्विघ्न यानी बेदाग सम्पन्न होगी ? क्या कोई अंतिम गेंद पर पैर आगे निकाल कर प्रतिपक्षी टीम को जिताने और दोस्ती निभाने का जघन्य अपराध नहीं करेगा और क्या लीग की संचालन समिति ऐसे धतकरम देख कर भी आँखें मूंदे रखेगी ? क्या हर पेशी पर सुप्रीम कोर्ट की लताड़ झेल रही बीसीसीआई शुचिता की मिसाल पेश करने जा रही है अपनी साफ सुथरी छवि वाले सदर शशांक मनोहर की छत्रछाया में ?
क्या हुआ उस संदिग्ध पंद्रह नामों की सूची का, जिसमें कई खिलाड़ी भी हैं
कुछ उम्मीद तो जरूर नजर आती है पर एक शंका का अभी तक बोर्ड ने समाधान नहीं किया कि जिस गवर्निंग बाडी के प्रमुख ने सन 2013 में स्पाट फिक्सिंग कांड के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था, उसी को फिर क्यों राजपाट सौंप दिया गया ? पुनर्बहाली का कोई कारण आज तक बोर्ड की ओर से नहीं आया।।।? भारतीय क्रिकेट की छवि जिन कारणों से धूमिल हुई और जिनके चलते उस पर गहरी खरोचें आईं, उसकी क्षतिपूर्ति बीसीसीआई कैसे करने जा रही है और कैसे लीग का यह संस्करण साफ सुथरा होगा? अभी तक कम से कम मेरे सामने तो ऐसा कोई ब्लू प्रिंट नजर नहीं आया। वही जिनके चेहरों पर नकाब पड़ी हुई है, ऐसे कथित पंडित-प्रोफेसरों का क्या हुआ, और उन पर क्या कार्रवाई की जा रही है, बोर्ड अध्यक्ष और सचिव को जवाब देना होगा। साथ ही मुदगल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जिन संदिग्ध पंद्रह नामों की सूची कोर्ट को आगे तहकीकात के लिए नत्थी की थी और जिसमें कई दिग्गज खिलाड़ियों के नाम हैं, उस सूची का क्या हुआ ? लोढ़ा समिति ने अपनी जाँच में उसे शामिल किया या नहीं और किया तो क्या निष्कर्ष निकला ? इसका जवाब देश माँग रहा है।
मेरी पसंदीदा सूची में अब आईपीएल नहीं रह गया
सच तो यह है कि लीग के विवादास्पद छठे संस्करण के बाद से आईपीएल मेरी पसंदीदा सूची से हट गया। सातवें संस्करण के दौरान मैंने एक चैनल पर सोज तो किये मगर सारी गर्माहट गायब हो चुकी थी। जिन दो चैनलों पर चेन्नई सुपर किंग के कप्तान ने बतौर मानहानि सौ करोड़ का मुकदमा किया था, उसमें वह चैनल भी है जिसमें मैं स्पोर्ट्स एक्सपर्ट के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहा था। जानते हैं क्या आरोप था कि इन चैनलों ने यह समाचार दिया था कि चेन्नई टीम के कप्तान को पूछताछ के लिए सम्मन दिया गया है, जबकि बाद में मुदगल कमेटी ने उनको घंटों ग्रिल किया था। चैनल हड़क गया और तब मैं और मेरी ईमानदारी दोनों बुरी तरह से आहत हुए थे। मैं इस आयोजन से खुद को दूर रखता चला गया। इस बार एक तेजी से पैठ बना रहे चैनल के लिए सोचा कि अपने अनुभव बाँटने का मंच होगा पर लगता है वह चैनल भी उतना ही उदासीन है और यही सही है भी।
तब उस टीवी चैनल की 2013 में पौ बारह हो गयी थी
यह बात अलग है कि 2013 में जिस नये चैनल के साथ था, उसकी तो पौ बारह हो गयी थी जब उसने जिस चौदह मई को आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पाट फिक्सिंग पर शो किया और जिसमें आरोप लगाया गया था कि 2011 के विश्व कप में भी जम कर स्पाट फिक्सिंग हुई थी और फाइनल में जिस खिलाड़ी को उतारा गया उसके खेलने के दूर-दूर तक आसार नहीं थे। चैनल की किस्मत देखिए कि उसी रात वही खिलाड़ी स्पाट फिक्सिंग के आरोप में अपने कई साथी खिलाड़ियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन सुबह के शो के बाद मैं घर नहीं जा सका और आधी रात तक यही चलता रहा चैनल में और फिर तो मुकदमा होने के पहले तक चैनल के हमलावर रुख के क्या पूछने।
सट्टा मोबाइल एप धारकों की संख्या करोड़ के करीब पहुँच चुकी है !!
मैंने कहा न सट्टेबाजों की बहार तो यूँ ही नहीं। सट्टेबाजी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने वैध करने की सलाह सरकार को दी है, देश में ऐसी सुसंगठित हो चुकी है कि उसका मोबाइल एप है जिसका शुल्क चुका कर कोई भी उसे डाउनलोड कर सकता है। दो बरस पहले तक इनकी संख्या जो पचास लाख से अधिक थी, अब करोड़ के आसपास हो चुकी है और इस पर लगातार अपडेट आते रहते हैं। ओवर में चौका, छक्का, विकेट, रन से लेकर क्या कुछ का भाव नहीं आता। उसे डब्बा कहा जाता है सटोरियों की भाषा में और जो 40 वें यानी अंतिम ओवर तक भाव देता रहता है। विश्वास कीजिए, यह धंधा बदस्तूर जारी रहने वाला है और इसमें काफी ऊँचे लोग संलिप्त हैं। मैं आरोप नहीं लगा रहा पर एक सवाल पाठकों से पूछता हूँ कि ये फ्रेंचाइजी असल में दुकानदार हैं, लाभ के लिए बैठे हैं। ट्राफी जीतने पर 25-50 करोड़ मिलने हैं मगर यदि एक हार पर सैकड़ों करोड़ मिले तो कहाँ से खराब सौदा है। देखने वाली बात तो यही कि बोर्ड की भ्रषाचार निरोधक इकाई कैसे इन सब धतकरमों पर अंकुश लगाने में कामयाब होती है? मैं तो इस समय का उपयोग अपनी विलंबित कुछ जरूरी यात्राओं और उनकी रिपोर्ताज लेखन में करूँगा। मैंने जिस खेल की चार दशकों तक पूजा की, जुनूनी सा संपृक्त रहा, वही खेल अब अपने इस लीग वर्जन में मुझे नहीं रिझाता।
(देश मंथन, 07 अप्रैल 2016)




पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :












