तुमको न भूल पाएँगे

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

देश के खेल पदाधिकारियों के प्रति सामान्य में लोगों की धारणा मुँह बिचकाने वाली ही ज्यादा होती है। खेलों का इन महानुभावों ने बेड़ा गर्क जो किया हुआ है। परंतु कुछ ऐसे अपवाद भी इसी देश में हैं, जिनको खिलाड़ी और खेल प्रेमियों से समान आदर और प्यार मिला है।

बताने की जरूरत नहीं दोस्तों कि बीसीसीआई के सदर जगमोहन डालमिया उन विरल शख्सियतों में एक रहे हैं। उनका बीती बीस सितंबर को देहावसान भारतीय क्रिकेट के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं। भयावह अस्वस्थता के बावजूद पिछले दिनों बीसीसीआई के दुबारा सर्वसम्मति मुखिया निर्वाचित होने वाले जग्गू दा ने 33 बरस पहले देश में क्रिकेट संचालित करने वाली इकाई में प्रवेश के साथ ही भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदलने और उसे आर्थिक रूप से सबल बनाने के लिए जो अंशदान उन्होंने किया उसे कोई जल्दी भूल नहीं सकेगा।

 बोर्ड को रंक से राजा बनाने और उसे दुनिया की सबसे समृद्ध राष्ट्रीय खेल इकाई के रूप में स्थापित करने वाले इस मारवाड़ी उद्योगपति को ही इसका भी श्रेय दिया जाएगा कि उन्होंने खिलाड़ियों के हितों का भी उतना ही ध्यान रखा। आज भारतीय क्रिकेटर बुनियादी स्तर पर लंबा चौड़ा पारिश्रमिक और भत्ते के अधिकारी भी उन्हीं की वजह से हैं और हाँ, अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान उन्होंने ही पूर्व खिलाड़ियों की पेंशन भी शुरू की। बोर्ड के अन्य मुखिया पद पर आसीन लोगों की कार्य शैली के विपरीत डालमिया कामकाज में पारदर्शिता के किस कदर कट्टर समर्थक थे, यह उनका एक अलग ही वैशिष्ट्य था। अस्सी और नब्बे के दशक के दौरान उनसे अक्सर भेंट होती रहती। जब भी मिलते, पूरी आत्मीयता से पूछते, ” Are you comfortable ? पहले रिलायंस कप और फिर 1996 के विश्वकप के सफलतम आयोजन का पूरी क्रिकेट बिरादरी ने लोहा माना। उनके दिल में यह खेल रच बस गया था। उन्होंने मैचों के टीवी पर सीधे प्रसारण की महत्ता समझी। जरूरत पड़ने पर प्रसार भारती से भी भिड़े और जीत हासिल की थी। मैंने अपने करियर में ढेरों खेल अधिकारियो को जो देखा, उनमें जग्गू बेजोड़ और अतुलनीय रहे हैं। 

1996 में आयोजन से सह मेजबानों पाकिस्तान और श्रीलंका को भी मालामाल कर देने वाले यह डालमिया ही थे कि उद्घाटन समारोह के लिए लेजर का उन्होंने पहली बार प्रयोग किया था। 

75 बरस के डालमिया का जाना मेरा निजी संताप भी है। वह खेल की बेहतरी के लिए किस कदर आकुल रहा करते थे, इसकी भी कोई मिसाल नहीं। 19 बरस पहले उनका मुझे भेजा वह पत्र भी यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। जिसमें उन्होंने कवरेज की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए वाराणसी संस्करण में प्रकाशित सभी चित्रों की भी माँग की थी। जब मैंने उन्हें बताया कि यह हमारे छायाकार विजय सिंह ने सीधे टेलीविजन से फोटो खीचीं है तो वे हैरत में पड़ गये।

इधर वह काफी अशक्त हो गये थे। हालत दिन ब दिन बिगड़ती चली गयी और अंतत: बीते रविवार को यम का वार उन पर हो ही गया पर वह जब तक भारतीय क्रिकेट है तब तक जीवित रहेंगे, इसमें दो राय नहीं। जग्गू दा, हम तुमको न भूल पाएँगे। 

(देश मंथन, 22 सितंबर 2015)

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