JNU में वामपंथियों की देश विरोधी करतूत

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सुशांत झा, पत्रकार :

हाफिज़ सईद के JNU के कॉमरेडों को समर्थन देने की खबर IBN की साइट ने लगायी थी, बाद में जनसत्ता ने भी लगा दी। खबर का आधार संदेहास्पद था, IBN ने हटा दी। पहले Saurabh Dwivedi ने मुझे इनबॉक्स में इशारा किया, तब तक मैं उसे शेयर कर चुका था।

ऐसा अक्सर होता है कि हम कई बार खबर वेरीफाई नहीं कर पाते। ऐसा मुझे करना चाहिए था। लेकिन हाफिज सईद के समर्थन न भी करने से JNU के अतिवादी वामपंथियों (या वाम आतंकियों) की वो करतूत कैसे सही हो जाती है? और वाम उदारवादियों को उनको प्रच्छन्न समर्थन देना किस कोटि में आता है? कल से देख रहा हूँ कि हर तबके के वामपंथी सिर्फ और सिर्फ इसी काम में लगे हुए हैं कि किसी तरह से JNU वाली घटना को दबा-छुपा के ढक के पेश किया जाये जैसे इनके कुलगुरुओं ने इतिहास की कई किताबों के साथ किया था। 

आपको याद होगा कि हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक पूर्व जोनल डाइरेक्टर ने इन्हीं महान वामपंथी JNUite प्रोफेसरों के बारे में कैसे विचार व्यक्त किये थे, जिनका नाम ये समूह सोते-जागते लेते नहीं थकता। एक सज्जन ने घटना की निंदा ऐसे की मानो श्रद्धांजलि दे रहे हों। तो एक ने इस घटना की तुलना करते समय नाथूराम गोडसे को ही समेट लिया, मानो नाथूराम गोडसे का संदर्भ हर पाप से मुक्ति का समाधान हो। ये अच्छी बात है आजकल वामपंथी भी अपनी बातों को मजबूत करने के लिए गाँधीजी का संदर्भ खोजने लगे हैं। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

दिक्कत ये है कि वैचारिक बक्से में बंद वामपंथी कब अपने से इतर विचारों को सुनने का नैतिक साहस जुटा पाएँगे? ध्यान रहे, ये वहीं लोग हैं जिनके शासन वाले देशों में आमतौर पर विपक्ष नहीं होता, स्वतंत्र मीडिया नहीं होता, लेकिन वैचारिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा राग यहीं लोग गाते हैं, हालाँकि वो उन्हें मिला होता है, लेकिन वे अन्यों से ज्यादा हक चाहते हैं!

कॉमरेड याद रखिए, अफजल गुरु की घटना ने आपको साल भर के लिए ऐसी खुराक दी है कि खट्टे डकार की तरह वो आपको सताएगी। आज का दिन आपका सफाई देते बीता है, आप कई-कई दिनों तक सफाई देंगे। आपने हैदराबाद में भी कुछ ऐसा ही कांड करके उस निर्दोष रोहित वेमुला को मरवाया था, वहाँ आपको केंद्र के अनुभवहीन और मूर्ख मंत्रियों की चिट्ठी का सहारा मिल गया था, लेकिन JNU वाले कांड में आप बुरी तरह फंस गये।

हाँ, आप अपने आपको इस देश का मान लीजिए- गाँधी, सुभाष, आम्बेडकर, विवेकानंद, लोहिया और देश की बहुत सारी अच्छी परंपराओं से जोड़ लीजिए। यह देश आपका भी सम्मान करेगा। हाँ, उस बचकाने हैशटैग का मैं विरोधी हूँ, जैसा कि मैंने पिछले पोस्ट में शेयर भी किया था, बल्कि मैं तो किसी पुलिसिया एक्शन का भी विरोधी हूँ। हाँ, इतना जरूर चाहता हूँ कि आपलोगों का असली चेहरा पूर देश की जनता के सामने लाया जाए। गाँव-गाँव में लोग जाने कि आपने अफजल गुरु और भारत की बर्बादी के बारे में कैसे विचार दिए या उसका गुप्त समर्थन किया। बस इतना ही हो जाए तो आपके लिए बहुत है।

(देश मंथन, 12 फरवरी 2016)

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