संदीप त्रिपाठी :
असम के कोकराझार के भीड़भाड़ वाले दो बाजारों में हुए हमलों में 14 लोग मारे गये। एक रिपोर्ट में बताया गया एनआईए ने इस संबंध में पहले ही इनपुट उपलब्ध करा दिये थे। फिर इसे रोकना संभव क्यों नहीं हुआ? एक खबर आ रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने मोर्चा संभाल लिया है।
यह भी खबर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय असम सरकार से सतत संपर्क में है। एक खबर यह है कि मृतक हमलावर के पास से मिले मोबाइल से यह पता चलता है कि यह आतंकी हमला नहीं, वरन कुछ विद्रोहियों द्वारा किया गया हमला था।
इन सभी खबरों से एक बात साफ होती है कि असम की भाजपा नीत सर्वानंद सोनेवाल सरकार की पुलिस-प्रशासन पर पकड़ मजबूत नहीं है और असम की पुलिस और खुफिया इकाई सक्षम नहीं है। कोई घटना जब हो जाती है, उसके बाद वहाँ की सरकार की दो जिम्मेदारियाँ महत्वपूर्ण होती हैं। एक तो यह कि उस कांड के दोषियों का पता लगा कर उन पर कानून के तहत कार्रवाई की जाये और पीड़ितों को न्याय दिलाया जाये। दूसरी जिम्मेदारी यह होती है कि भविष्य में वैसी घटना न घटे, इसके लिए एहतियाती इंतजामात किये जायें और जिन प्रशासनिक चूकों की वजह से घटना हुई है, उन चूकों को दुरुस्त किया जाये।
क्या सोनेवाल सरकार यह कर पायेगी? सर्वानंद सोनेवाल ने मई, 2016 में असम में सरकार बनायी थी। जुमा-जुमा तीसरा महीना है। कोकराझार की यह घटना इस सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होनी चाहिए, राज्य में कानून-व्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा की दृष्टि से। सीमावर्ती प्रदेश होने के कारण और विभिन्न किस्म के स्थानीय अतिवादी जातिगत गुटों के कारण यहाँ अक्सर हिंसा की घटनाएँ होती रहती हैं। बांग्लादेशियों का अतिक्रमण भी यहाँ की प्रमुख समस्या है। सोनेवाल सरकार पर असम और असम की जनजातियों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का दायित्व है। यह दायित्व अच्छी कानून-व्यवस्था और विकास के जरिये ही निभायी जा सकती है। इस विकास में असम के हर नागरिक की हिस्सेदारी देनी होगी। कोकराझार की घटना ने सोनेवाल सरकार को यह अवसर दिया है कि वह प्रशासन को चुस्त बना कर, पुलिस को दुरुस्त कर अपनी महती जिम्मेदारियों को पूरा कर सके।
(देश मंथन 07 अगस्त 2016)