संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
फिल्म ‘मदारी’ देख ली?
नहीं देखी तो कोई बात नहीं। पर मैंने देख ली। मैं अमूनन हर फिल्म देख लेता हूँ। अब आप इसे शौक कह लीजिए या मजबूरी। फिल्म कैसी है, इस पर मैं कतई टिप्पणी नहीं करूंगा और न ही मेरा काम है फिल्मों की समीक्षा लिखना। पर फिल्म में एक सीन की चर्चा मैं आज कर रहा हूँ, सिर्फ अपनी कल की पोस्ट को आगे बढ़ाने के लिए।
कल मैंने लिखा था कि मेरा एक दोस्त जिसने रसायन शास्त्र की पढ़ाई की थी, वो नौकरी के हर इंटरव्यू में इंटरव्यू लेने वाले को किसी न किसी बहाने रसायन शास्त्र पर ले आता और जब उससे रसायन शास्त्र के सवाल पूछे जाते, तो उनके जवाब दे कर वो नौकरी पा लेता।
मैंने यहीं कहा था कि मुद्दे को बदल देना एक कला है और हमारी सरकारें इस विद्या में माहिर हैं। हमारे नेता चाहे चुनाव रोटी, कपड़ा, मकान, बेरोजगारी, महंगाई या किसी मुद्दे पर जीतें, पर सत्ता में आते ही वो मुद्दा बदल देते हैं।
मैंने किसी पार्टी का नाम नहीं लिखा था। मैंने लिखा था कि मेरे चाहने वाले एक परिजन ने मुझसे पूछा था कि मैं गौरक्षा पर कुछ क्यों नहीं लिखता। मैंने तकनीकी रूप से उनके सवाल का जवाब देने के लिए ही लिखा था कि गाय मुद्दा हो सकती है, पर अभी तो मुद्दा तो पानी है, स्वास्थ्य है, बेरोजगारी है, शिक्षा है और महँगाई है।
पर सरकारें क्योंकि रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर करके चुनाव जीत कर आती हैं, इसलिए आते ही वो मुद्दा बदल देती हैं। मैंने किसी पार्टी का नाम नहीं लिया था। बतौर पत्रकार मैं कांग्रेसी नेताओं को भी जानता हूँ, बीजेपी के नेताओं को भी और आप वालों को भी। कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि मैंने गाय और पाकिस्तान की बात की, इसका मतलब मैं मोदी सरकार के बारे में लिख रहा हूँ।
नहीं। मैंने मोदी सरकार की बात नहीं की।
मैंने कांग्रेस की भी बात नहीं की।
मैंने बात की थी बात बदल देने की। मूल सवाल को पीछे छोड़ देने की।
कल एक परिजन ने मेरे परिजनों की संख्या की चर्चा करते हुए कमेंट में लिखा था कि कल संजय सिन्हा के परिजनों की संख्या घट जाएगी। पर कमाल देखिए, बढ़ गयी।
कल एक बहन ने लिखा कि वो अब इस परिवार को छोड़ कर जा रही हैं क्योंकि मेरी पोस्ट बीजेपी के खिलाफ थी। उन्होंने कहा कि मुझे कांग्रेसी सरकार की खामियाँ नहीं दिखीं, केवल बीजेपी की दिखीं?
अरे बहन, मैंने कब बीजेपी की खामी देखी है? मैंने कब मोदी जी के खिलाफ लिखा है?
मैं पॉलिटिक्स का P भी नहीं समझता। इतने साल पत्रकारिता करना और बात है, पॉलिटिक्स को समझना और बात। ये अलग बात है कि देश के सभी नेताओं से मेरा मिलना-जुलना होता रहता है। सबसे मेरी बातें होती रहती हैं। सोनिया गाँधी और नरेंद्र मोदी भी मुझे जानते हैं, और वो ये भी जानते हैं कि संजय सिन्हा दस साल पहले राजनीति की रिपोर्टिंग करता था, अब नहीं। पहले वो पॉलिटिक्स की पूरी स्पेलिंग जानता था, पर अब वो P भी भूल गया है। वो सभी मुझसे मिल कर खुश होते हैं पर वो कभी नहीं पूछते कि तुमने राजनैतिक रिपोर्टिंग क्यों छोड़ दी? कभी न कभी आपको ज़रूर बताऊंगा कि क्यों छोड़ दी।
देखिए न अब मुझे भी लग रहा है कि मैं बात बदल रहा हूँ।
मैंने पोस्ट की शुरुआत की थी फिल्म ‘मदारी’ से और पहुँच गया कहाँ।
हाँ, तो फिल्म ‘मदारी’ में हीरो का बेटा एक पुल के गिर जाने से नीचे दब कर मर जाता है। हीरो सरकार को सबक सिखाना चाहता है। वो गृह मंत्री के बेटे का अपहरण कर लेता है। सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करता है कि वो उसके साथ बातचीत करें। टीवी पर एक लाइव शो के दौरान वो जब वो पुल बनाने वाले इंजीनियर से पूछता है कि क्या तुमने पुल बनाने में बेइमानी की, तो बहुत मुश्किल से उसे जवाब मिलता है कि हाँ की। पैसे खाए, पैसे खिलाए।
फिर वो मंत्री से पूछता है कि क्या सरकार में भ्रष्टाचार है?
तो मंत्री कहते हैं कि नहीं, ये गलत है। सरकार में भ्रष्टाचार नहीं है।
उनके ऐसा कहते ही सिनेमा हॉल में पल भर के लिए सन्नाटा पसर जाता है। पर अगले ही पल वो कहते हैं कि सरकार में भ्रष्टाचार नहीं है, भ्रष्टाचार के लिए ही सरकार है।
बस यही वो बात थी, जो मुझे आज आपको बतानी थी। यही सत्य है। इसीलिए मुद्दे अपना मूल छोड़ देते हैं। इसीलिए भूगोल का जवाब रसायन शास्त्र में बदल जाता है। मैंने बस इतना ही बताने की कोशिश की थी। अगर किसी को लग रहा हो कि संजय सिन्हा रिश्तों की कहानियाँ छोड़ कर राजनीति पर लिखने लगे हैं, तो यह गलत है। मुझे जब करनी होगी, तब सीधे-सीधे राजनीति करूंगा, पर अभी नहीं। अभी तो इतना ही कि आप सच को समझिए। आप समझिए कि मुद्दा क्या है। आप समझिए कि क्या जनता सिर्फ मोहरा है?
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पार्टी कोई भी हो। आपको हक है ये जानने का कि सरकार क्या होती है? उसका काम क्या होता है? नेता, जिसे आप चुन कर अपना मुखिया बनाते हैं, वो धर्म का मर्म समझता भी है या वो हमेशा पहले उस आदमी के साइन माँगने लगता है, जिसने फिल्म दीवार में अमिताभ बच्चन की कलाई पर लिख दिया था कि – मेरा बाप चोर है।
राम जी जब बनवास जा रहे थे, तब भरत ने उनसे पूछा था कि भैया, मैं राज्य कैसे संभालूंगा? राजा का धर्म क्या होता है?
राम ने बस दो पंक्तियों में उन्हें राज धर्म समझा दिया था,
“‘मुखिआ मुखु सो चाहिऐ, खान पान कहुँ एक।
पालइ-पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक।।
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आज के लिए इतना ही। आप समझदार हैं। समझ गये होंगे कि मैं कहना क्या चाह रहा हूँ।
(देश मंथन 13 अगस्त 2016)