पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी निस्संदेह इतिहास पुरुष हैं। आंकड़े स्वयं ही इसकी गवाही देते हैं कि वह दुनिया के ऐसे पहले कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी के तीनो टूर्नामेंट देश के लिए अपनी कप्तानी में जीते ही नहीं, टेस्ट में भी टीम को नंबर एक पर पहुँचाया।
सच तो यह कि उनकी सफलताओं का इतना ऊँचा आसमाँ है कि आपको देखने के लिए गर्दन टेढ़ी करनी होगी। एक ऐसा विकेटकीपर बल्लेबाज जिसने दोनो विधाओं में दस्तानों और बल्ले से न जाने कितनी यादगार इबारतें लिखी होंगी। यही नहीं उनकी स्वयँ की देसी शैली ने भी बल्लेबाजों को कम हैरत में नहीं डाला होगा। उनका स्वरचित हैलीकाप्टर शाट क्रिकेट प्रमियों पर अमिट छाप छोड़ चुका है, यह बताने की जरूरत नहीं। भविष्य में जब भी धोनी स्क्रीन पर उभरेंगे तब यह शाट साथ जरूर जुड़ा रहेगा। अंत में एक बैकस्टापर मेहनत के बल पर विकेटकीपर के रूप मे न सिर्फ ढला ही बल्कि मेरे देखे में इतना विद्युतीय स्टम्पर भी मैंने दुनिया में कोई दूसरा आज तक नहीं देखा।
ये तमाम गुण
विशेषताएँ दो राय नहीं कि इस उत्तराखंडी को क्रिकेट इतिहास के सर्वकालिक महानतम कप्तानों की श्रेणी में शुमार करने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन हर किसी का एक सीमित समय ही होता है। खास तौर से जो तकनीक की बजाय हाथ-पैर-आँख के संतुलन के सहारे होते हैं, एक उम्र के बाद उनके प्रदर्शन में गिरावट इस लिए तय है कि शरीर की लचक के साथ ही फिटनेस जवाब देने लगती है। कहने का तात्पर्य यही कि रिफलेक्सेज धीमे हो जाते हैं।
मैंने इधर एक डेढ़ बरस के दौरान धोनी के खेल को उम्र के चलते लगातार प्रभावित होते हुए देखा है। स्टम्प के बाहर की गेंदे उनकी पहुँच के बाहर होने लगी हैं, कभी जो गेंद बल्ले सो लग कर मधुर संगीत बिखेरती थीं वही इधर चाँटी की सी बेसुरी आवाज करने लगी हैं और छक्के कैच में बदलने लगे। गेंदबाज उनको असहज करने वाली गेंदें डाल कर बल्ले को जाम करने में सफल होने लगे हैं। पिछले पचीस मुकाबले देख लीजिए वन डे या टी- 20 के और बताइए कि कभी बतौर फिनिशर दुनिया में नंबर एक और आस्ट्रलियाई माइकल बेवन की याद दिलाने वाले माही अब क्या आपको बदरंग नहीं लगते?
क्या वह अब इस भूमिका में अनफिट नहीं होते जा रहे हैं? जब कोई महान खुद को ऐसी दयनीय स्थिति में पाता है तब एक ही विकल्प बचता है और वह यह कि खेल से ससम्मान विदाई, बेहतर तो होगा कि यह घोषणा समय पर हो। जिंबाब्वे में जिस लचर गेंदबाजी पर वह निरीह दिखे, इससे उन्होंने अपने असंख्य प्रशंसकों का दिल जरूर तोड़ा होगा। आलोचक मुझे कोसेंगे कि मेरा और धोनी का छत्तीस का आंकड़ा है, इसलिए मैं यह कह रहा हूँ। मगर मुझे इसकी परवाह नहीं। मैं यही कहना चाहता हूँ रांची के राजकुमार की शोहरत रखने वाले माही अब अपने खेल का इमानदारी से आकलन करने के पश्चात संन्यास के बारे में गंभीरता से सोचें। कोई भी अपनी उपलब्धियों के सहारे हमेशा तो नहीं न रह सकता। मायने रखता है उसका वर्तमान और वह चीख-चीख कर कह रहा है, धोनी भैया अब बस। फिर, लोकेश राहुल के रूप में टीम को उनका स्थानापन्न मिल चुका है जिसने टेस्ट में लोहा मनवाने के बाद त्वरित क्रिकेट में भी जबरदस्त उम्मीदें जगायी हैं।
बतौर विकेटकीपर राहुल ने प्रभावित किया है बावजूद इसके कि उन्हें इस विभाग में अभी लंबा सफर तय करना है। कुल मिला कर वह धोनी के रिक्त स्थान को भरने में सक्षम हैं। देखने वाली बात तो यह कि अब धोनी का अगला कदम क्या होगा ?
(देश मंथन, 24 जून 2016)