स्वामी प्रसाद मौर्य के सीमित होते विकल्प

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संदीप त्रिपाठी :

बसपा से बगावत कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहली गलती की थी, दूसरी गलती उन्होंने सपा को गुंडों की पार्टी कह के की। मौर्य की पहचान मौर्य-कुशवाहा समाज के नेता के रूप में कम, मायावती के सिपहसालार के रूप में ज्यादा रही है। सपा के विरुद्ध विषवमन के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में शामिल होने की जुगत में जुटे हैं। भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य सभी नपा-तुला बोल रहे हैं। स्वामी प्रसाद अब लखनऊ से दिल्ली के बीच दौड़ लगा रहे हैं।

बताया जाता है कि ओम माथुर से स्वामी प्रसाद की मुलाकात हो चुकी है। अब मौर्य अमित शाह से मिलने की जुगत में हैं। भाजपा नेता अभी कोई ठोस संकेत उद्घाटित नहीं कर रहे हैं। 1 जुलाई को स्वामी प्रसाद अपनी ताकत के प्रदर्शन के लिए लखनऊ में बैठक करेंगे। इसी दिन कुशवाहा समाज के एक अन्य नेता बाबू सिंह कुशवाहा भी वाराणसी में अपना शक्ति प्रदर्शन करेंगे। मुझे लगता है कि भाजपा इसके बाद ही स्वामी प्रसाद मौर्य के संदर्भ में कोई फैसला लेगी। स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए भाजपा की ओर से दो योजनाएँ हो सकती हैं। एक तो अगर स्वामी प्रसाद मौर्य तैयार होते हैं तो उन्हें भाजपा की केंद्रीय राजनीति में लाया जाये। अगर स्वामी प्रदेश में ही रहने के इच्छुक हों तो बिहार के जीतनलाल माँझी की तर्ज पर उनसे नयी पार्टी का गठन कराया जाये जो भाजपा से गठबंधन करे।

स्वामी प्रसाद मौर्य पहले चाहते थे कि भाजपा उन्हें उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे। लेकिन भाजपा के पास प्रदेश अध्यक्ष के रूप में एक मौर्य नेता केशव प्रसाद मौर्य हैं। केशव प्रसाद भाजपा की राजनीति के खाँटी नेता हैं और भाजपा यही चाहेगी कि मौर्य नेता के रूप में प्रदेश में कोई हो तो वह केशव प्रसाद मौर्य ही हों। केशव प्रसाद के बाद कोई मौर्य नेता चाहिए तो वह केशव प्रसाद से जूनियर होना चाहिए। स्वामी प्रसाद इस खाँचे में फिट नहीं बैठते और उनकी महत्वाकाँक्षा भी बहुत है। भाजपा में वैयक्तिक महत्वाकाँक्षा का क्या हस्र होता है, यह वरुण गाँधी के मामले में हम देख चुके हैं। ऐन चुनाव के वक्त आयातित नेता का क्या हस्र होता है, यह किरण बेदी के मामले में दिल्ली में देखा जा चुका है।

जैसे-जैसे समय बीतेगा, स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए विकल्प सीमित होते जायेंगे। ऐसे में भाजपा उन्हें अपनी शर्तों पर साथ आने को राजी कर पायेगी। स्वामी यदि जल्द फैसला नहीं कर पाते तो उन्हें वही करना पड़ेगा जैसा भाजपा नेतृत्व चाहेगा। भाजपा यही चाहती है और स्वामी इसी से बचना चाहते हैं। अब खैर, स्वामी प्रसाद के राजनीतिक भविष्य के लिए 1 जुलाई का दिन बहुत महत्वपूर्ण होगा। 

(देश मंथन, 25 जून 2016)

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