खेती के जरिये ही साकार होगा अच्छे दिन का सपना

0
99

श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार

26 मई 2016 नरेन्द्र मोदी सरकार और देश के 50 करोड़ माध्यम वर्ग के लिए खास होगा। मोदी के लिए इसलिए क्योंकि इसी दिन एक साल पहले वो सत्ता पर काबिज हुए थे और माध्यम वर्ग के लिए भी खास इसलिए कि उसने मोदी से अपने लिए अच्छे दिन लाने की उम्मीद से उन्हें सत्ता सौंपी थी।

मोदी 26 मई यानी आज मथुरा में अपनी सरकार का एक साल का रिपोर्ट कार्ड पेश करेंगे, जिसमें इस बात ब्योरा होगा कि मोदी ने भारत के मध्य वर्ग और उस युवा वर्ग को ठोस ढंग से क्या सौंपा है।

किसानों की समस्या और गावों की उपेक्षा के मुद्दे पर मोदी सरकार की घेराबन्दी में जुटा विपक्ष शायद ये भूल गया है कि मोदी के चुनावी अभियान के केन्द्र में न तो गाँव था और ना ही किसान। उनका तो चुनाव अभियान पूरी तरह से माध्यम वर्ग और युवा वर्ग की अपेक्षाओं पर केन्रिव त था। इसलिए मोदी के लिए विपक्ष की गोलबन्दी से ज्यादा बड़ी चिन्ता युवा व मध्य वर्ग की अपेक्षाएँ हैं, जिन्होंने उनकी राजनीति को नया आयाम दिया है और पहले वर्ष में मोदी इनके लिए कुछ खास नहीं कर सके हैं।

रोजगार और महँगाई वर्तमान राजनीति के अहम् मुद्दे हैं और इन्हीं मुद्दों के कारण कांग्रेस के खिलाफ अभूतपूर्व जनादेश मोदी के पक्ष में आया था। लेकिन मोदी सरकार की पहली सालगिरह पर दिये जाने वाले भाषणों और विज्ञापनों में सबसे कम चर्चा इन्ही मुद्दों पर होगी। पिछले साल मोदी की चुनावी रैलियों में उमड़ने वाली युवाओं की भीड़, हर चौक चौराहे पर होने वाली उत्तेजक बहसों में शामिल होने वाले लोग बीजेपी के पारंपरिक वोटर नहीं बल्कि यह समाजवादी व उदारवादी प्रयोगों के तजुर्बों से लैस मध्य वर्ग था जो मोदी के संदेश को गाँवों व निचले तबकों तक ले गया। यकीनन, एक साल में मोदी से जादू की उम्मीद किसी को नहीं थी। लेकिन लगभग हर दूसरे दिन मन की बात करने वाले प्रधान मन्त्री ने बेरोजगारों के मन की बात नहीं की। जाहिर है इस मुद्दे पर उनकी सरकार कुछ खास नहीं कर पायी ।

2015 में रोजगारों का हाल 2014 से बुरा हो गया। लेबर ब्यूरो के अनुसार प्रमुख आठ उद्योगों में रोजगार सृजन की दर तिमाही के न्यूनतम स्तर पर है। फसल की बर्बादी और रोजगार कार्यक्रम रुकने से गाँव और बुरे हाल में हैं। सफलताओं के गुणगान में सरकार स्किल डेवलपमेंट का सुर ऊँचा करेगी। लेकिन स्किल वाले महकमे के मुताबिक, सबसे ज्यादा रोजगार, लगभग 6 करोड़ सालाना भवन निर्माण, रिटेल और ट्रांसपोर्ट से निकलते हैं। आज रीयल एस्टेट खस्ताहाल है, रिटेल बाजार को सरकार खोलना नहीं चाहती जाहिर इनकी माँग पर आधारित ट्रांसपोर्ट का कारोबार भी ठप्प है। अगर एक साल में मोदी सरकार रोजगारों के लिए कुछ खास नहीं कर पायी है तो अगले साल होने वाले चुनावों में करोड़ों बेरोजगार युवाओं को अपने से जोड़े रखना मुश्किल होगा। गर्मी चरम पर है, मॉनसून के कमजोर होने की संभावना है और एक बार फिर से पेट्रोल डीजल महँगा होने से रोजमर्रा की चीजें महँगी होने लगी हैं, ऐसे में महँगाई डायन के चंगुल से मध्यम वर्गीय वर्ग को निजात दिलाने के वायदे को पूरा कर पाना आसान काम नहीं होगा। सत्ता में आने के बाद नयी सरकार ने, महँगाई रोकने के लिए राज्यों को मंडी कानून खत्म करने का फरमान जारी तो किया। लेकिन उसे बीजेपी शासित राज्यों ने भी लागू करने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उन्हें व्यापारियों की नाराजगी का डर सता रहा था।

सरकार जब तक एक साल के जश्न से आगे अगले वर्ष की तैयारी में जुटेगी तब तक सर्विस टैक्स की दर में 2% की बढ़त महँगाई डायन को इतना मजबूत बना चुकी होगी कि उससे लड़ना शायद संभव ना हो। जाहिर है मोदी सरकार को भी अगले साल, ठीक अपने उन्ही सवालों का सामना करना पड़ेगा जो कल तक बीजेपी चुनाव के दौरान दौरान कांग्रेस से पूछ रही थी । 

इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि मोदी किसानों के नहीं बल्कि उस मध्यम वर्ग परिवारों और बेरोजगार नौजवानों के नेता हैं जो उनसे अपने लिए अच्छे दिन लाने की उम्मीद लगाये बैठा है। अगर उनके लिए मोदी अच्छे दिन नहीं ला पाये तो उनका “अच्छे दिन लाने का नारा इस वर्ग को चिढ़ाने लगेगा। मध्यम वर्ग की चिन्ता अपने बच्चों के रोजी रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर होती है और अगर उनके इन्ही मुद्दों पर सरकार बात करना बन्द कर देगी तो, उनकी नाराजगी स्वाभाविक है। दरअसल अपना देश आज भी कृषि प्रधान है। लेकिन बिडम्बना ये है कि यहाँ 80% लोग भूमिहीन हैं और 80% खेती योग्य भूमि केवल 20% उन लोगों के कब्जे में है, जो खेती को एक इंटरप्राजिंग बिजनेस मानते ही नहीं। जब तक जरूरी भूमि सुधार नहीं होगा और खेती योग्य जमीन पर वैसे लोगों का कब्जा नहीं होगा जो खेती को एक इंटरप्राजिंग बिजनेस की तरह आगे बढ़ा सकते हैं तब तक करोड़ों लोगों को रोजगार देना संभव नहीं होगा। पहले की तरह आज के मशीनी और कंप्यूटर पर आधारित कल कारखाने और उद्योग पहले की तरह लाखों रोजगार सृजित नहीं करते। देश के महज 10% लोग ही स्थायी वेतन भोगी हैं और आज भी देश की 80% आबादी खेती पर ही निर्भर है। ऐसे में अपने समर्थक युवाओं के लिए रोजगारों में बढ़ोत्तरी के लिए, वापस लौट रही महँगाई से अपने अपने “सबके लिए अच्छे दिन लाने” के वायदे पर भरोसा करने वाले मध्यम वर्गीय समाज को बचाने के लिए, मोदी सरकार को खेती को ही प्राथमिकता देनी होगी ।

(देश मंथन, 26 मई 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें