मोदी मुहिम से पड़ोसियों के दिलों में उतरता भारत

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संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :    

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सफल बंगलादेश यात्रा ने यह साबित कर दिया है कि अगर नेतृत्व आत्मविश्वास से भरा हो तो अपार सफलताएँ हासिल की जा सकती हैं। बंगलादेश से लेकर नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका तक अब नरेन्द्र मोदी की यशकथा कही और सुनी जा रही है।

ढाका के विश्वविद्यालय में उनका संबोधन वास्तव में उन्हें एक ऐसी ऊँचाई और गरिमा प्रदान करता है, जिसके वे हकदार हैं। उनके संबोधन ने भारत और बंगलादेश रिश्तों में एक नए युग की शुरुआत की है। एक राष्ट्रनायक सरीखी छवि और वाणी उनके पूरे व्यक्तित्व से झलकती है।

   समूचा भारतीय उपमहाद्वीप एक साझी विरासत और रिश्तों का उत्तराधिकारी है। बावजूद इसके भारत के रिश्ते अपने पड़ोसियों से बहुत सहज नहीं रहे। इस दर्द को भारत ने हमेशा महसूस किया है, किन्तु साझा नहीं किया। पाकिस्तान और चीन ही इस इलाके में हमारे समूचे विदेश विमर्श का हिस्सा बने रहे। अपने अन्य पड़ोसियों से हमारे रिश्ते सहज ही रहे किन्तु उन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता। हम पाकिस्तान और चीन से रिश्ते सुलझाने में ही लगे रहे, बाकी कहीं झाँककर नहीं देखा। ऐसे में यह बात महत्व की है कि हमें लंबे अरसे बाद एक ऐसा नेता मिला है जो संवाद में रूचि रखता है और अपने पड़ोसियों से सहज रिश्ते बनाना चाहता है। नेपाल के भूकंप में मानवीय सहायता उपलब्ध कराकर जिस तरह से उन्होंने सारे विषय पर अपेक्षित संवेदना का संचार किया वह उनकी मानवीय दृष्टि का परिचायक है। इस काम से जहाँ नेपाल-भारत के रिश्ते और सहज हुए वहीं नेपाल में सक्रिय भारत विरोधी शक्तियों को भी सीख मिली। नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालते ही अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस देशों के प्रमुखों को ससम्मान बुलाकर अपने इरादे जाहिर कर दिये थे। वे पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं। नरेन्द्र मोदी की यह रणनीति अब अमल में दिखने लगी है। वे निरंतर प्रवास और संपर्क से इसे साध रहे हैं। भारत का पाकिस्तान के साथ रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। भारतीय मीडिया और पाकिस्तानी मीडिया में भी यह रोजाना की खास खबर है। नरेन्द्र मोदी इतिहास की इस घड़ी में रुकना नहीं चाहते, वे जहाँ जैसे रिश्ते बनाये और बचाये जा सकते हैं, उसके प्रयासों में लगे हैं। श्रीमती सुषमा स्वराज जैसी अनुभवी और दक्ष विदेशमन्त्री का लाभ भी इस पूरी मुहिम को मिल रहा है। भारतवंशियों की शक्ति को एकत्र कर दुनिया के हर देश में नरेन्द्र मोदी एक अलग वातावरण बनाने का काम कर रहे हैं। अमरीका से लेकर आस्ट्रेलिया तक उनका यह रूप लोगों ने देखा है। यह वैश्विक स्तर पर भारत के उठ खड़े होने का समय भी है। अपने पहले भाषण में ही मोदी ने साफ किया कि वे न तो आँख झुका कर बात करना चाहते हैं न ही चाहते हैं कि कोई देश सिर झुका कर बात करे। एक-दूसरे की अस्मिता का सम्मान करते हुए आगे बढ़ना प्रारंभ से भारत की नीति रही है। नरेन्द्र मोदी इसे साकार करते हुए दिखते हैं। नेपाल, म्यांमार, बंगलादेश, श्रीलंका, मालदीव जैसे अपेक्षाकृत आकार में छोटे देश हों या चीन जैसे विशाल देश मोदी ने सबको साथ लेने का प्रयास किया है। वे चाहते हैं कि इस उपमहाद्वीप में शान्ति का वातावरण बने और आतंकवाद समाप्त हो। सबसे बड़ी बात वे इन देशों में आर्थिक प्रगति को होते हुए देखना चाहते हैं। एक-दूसरे के सहयोग से बड़ी आर्थिक बन कर अपने देश का गौरव बनाना उनका उद्देश्य दिखता है।

मोदी एक अच्छे वक्ता और आक्रामक शैली में संवाद करने वाले नेता हैं। उनकी देहभाषा में गर्मजोशी और ठहराव है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी के बाद शायद वे सबसे प्रभावी राजनेता हैं, जिसकी देश की जनता और विदेश के जनमानस पर पकड़ बनती हुई दिख रही है। उन्हें इवेंट मैनेजर कहकर उनकी ताकत को कम करने, कम आँकने के सुनियोजित यत्न भी चल रहे हैं किन्तु दुनिया भर में फैले भारतवंशियों को एकजुट कर एक सकारात्मक दबाव समूह खड़ा करना उनकी एक सोची समझी नीति है। वे इस पर अरसे से काम भी कर रहे हैं। गुजरात के मुख्यमन्त्री रहते हुए भी वे वैश्विक संवाद करते रहे हैं। उद्योगों और निवेश के लिए अनुकूल वातावरण बनाना ऐसे ही संवादों से संभव है। वे भारत को एक ब्रांड में तब्दील करने की कोशिशों में लगे हैं। उनको देख कर और सुन कर ऐसा लगता है कि वे इसे संभव बनाने में सफल रहेंगे।

राजनीति की पिच पर वे एक ऐसे राजनेता हैं जो हर सभा में शतक बनाते ही हैं। लोगों के दिलों को छूती हुयी उनकी आवाज उन्हें विश्वसनीय बनाती है। रिश्तों में वे दिलदार दिखते हैं। पड़ोसियों के संकट में खड़े होना या उन्हें उनके विकास में मदद करना दोनों मोर्चों पर वे अपनी दरियादिली दिखा चुके हैं। उनके इन तेवरों से पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की प्रतिक्रियाएँ समझी जा सकती हैं। म्यांमार में जंगलों में जिस तरह भारतीय सेना ने आपरेशन किया और विद्रोही आतंकियों को मार गिराया, वह एक ऐतिहासिक सूचना है। इस घटना पर पाकिस्तान की असेंबली में प्रस्ताव पास करने से लेकर वहाँ के नेताओं की बौखलाहट बताती है कि इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती स्वीकृति से वे खासे परेशान हैं। यह बात साबित करती है कि किस तरह पाकिस्तान आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है। वरना एक दूसरे देश के साथ अच्छे रिश्तों के नाते हुए भारतीय सेना के आपरेशन पर इतना हाय-तौबा मचाने की जरूरत क्या है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि भारत का राजनैतिक नेतृत्व अधिनायकवादी नहीं है। वह अपने पड़ोसियों को आदर देने वाला और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करने वाला देश है। भारत की विदेश नीति भी इन्हीं आदर्शों पर आधारित है। लाइन आफ कंट्रोल का आये दिन उल्लंघन करने वाले पाकिस्तान के प्रति भारत की सदाशयता का उसने सदा फायदा उठाया है। भारत में आतंकवाद को पोषित करना और कश्मीर में रोजाना संकट खड़े करना पाकिस्तान की नीति रही है। कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है। बावजूद भारत उसके साथ शान्ति का ही राग गाता रहा है। उसकी तमाम नादानियों और साजिशों के बाद भी भारत ने हमेशा दोस्ती का हाथ बढ़ाया। पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी हमेशा ये कहते ही थे कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते। एक सुखी, समृद्ध पाकिस्तान भारत के लिए भी अच्छा होगा। किन्तु पाकिस्तान की सूइयाँ अटकी हुयी हैं। कश्मीर उसकी दुखती रग बन गया है और भारत विरोध वहाँ की राजनीति की प्राण वायु। कश्मीर के नाम पर की जा रही पाकिस्तानी हरकतें इस देश को हमेशा दुखी करती हैं। अब जबकि एक सरकार कश्मीर में बनी है, जिसमें भाजपा भी हिस्सेदार है तो पाकपरस्त ताकतें खुद को असहाय पा रही हैं। मोदी ने इसे समझते हुए आगे बढ़ने का फैसला किया है। पाक पर अपनी ज्यादा ताकत लगाने के बजाये वे पूरी दुनिया को साथ लाना और सबके साथ बढ़ना चाहते हैं। नरेन्द्र मोदी की यह नीति भारत के भविष्य को भी रेखांकित करती है। वे विश्वमंच पर भारत को स्थापित करने के प्रयत्नों में लगे हैं ऐसे में जरूरी है उनकी इस यात्रा में उनके पड़ोसी भी साथ हों। पाकिस्तान को छोड़कर उन्होंने लगभग सभी पड़ोसियों से रिश्ते सहज किये हैं। इसका लाभ भारत को आर्थिक रूप से भले न हो किन्तु मानवीय दृष्टि और वैश्विक दृष्टि से जरूर मिलेगा।

(देश मंथन 25 जून 2015)

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