सीबीआई की पहली चुनौती है अक्षय का मामला

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:
पत्रकार अक्षय सिंह की मौत कैसे हुई? क्या वह व्यापम घोटाले के किसी नये सच तक पहुँचने के करीब थे? क्या नम्रता दामोर की संदिग्ध मौत की पड़ताल करते-करते अक्षय इस घोटाले के किसी और सिरे तक पहुँचने वाले थे?
वोट-बैंक के एटीएम

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
लालूजी कह रहे हैं कि बीजेपी उनके वोट बैंक में सेंध लगाने के चक्कर में है।
एक होता है बैंक और एक होता है वोट-बैंक।
नाकाम मुखिया

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मैं आपको आधुनिक भारत के प्राचीन इतिहास के संसार में ले चलूँगा। आज मैं उस कामचोर अंग्रेज इतिहासकार, विन्सेंट स्मिथ की पोल खोल कर रख दूँगा, जिसने यमुना तट पर कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध के तुरन्त बाद की घटनाओं की अनदेखी कर अपना इतिहास सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच से लिखना शुरू कर दिया।
इन मौतों की जिम्मेदारी तो लेनी होगी सीएम साहब

राजीव रंजन झा :
व्यापम - एक ऐसा घोटाला, जिसमें खुद मुख्यमंत्री के परिवार के लोगों के भी नाम उछले हैं। उन पर आरोप सही हैं या गलत, यह तो जाँच के बाद अदालत को बताना है। लेकिन राज्य में जिस घोटाले को लेकर सबसे ज्यादा उथल-पुथल है, उसके गवाह और अभियुक्त एक के बाद एक रहस्यमय ढंग से मरते जा रहे हैं और अब इस मामले की छानबीन करने दिल्ली से पहुँचा आजतक का संवाददाता भी अचानक बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के मर जाये तो इससे क्या समझा जाये?
ताकतवर अक्षय को यूँ हार्ट अटैक आना

विकास मिश्रा, आजतक :
दफ्तर में मेरी ठीक बायीं तरफ की सीट खाली है। ये अक्षय की सीट है। अक्षय अब इस सीट पर नहीं बैठेगा, कभी नहीं बैठेगा। दराज खुली है। पहले खाने में कई खुली और कई बिन खुली चिट्ठियाँ हैं, जो सरकारी दफ्तरों से आयी हैं, इनमें वो जानकारियाँ हैं, जो अक्षय ने आरटीआई डालकर माँगी थीं।
‘व्यापम’ से डर लगता है जी

सुशांत झा, पत्रकार :
व्यापम की वेबसाइट देख रहा था कि इसमें मेडिकल या प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट है या नहीं। क्योंकि डॉक्टर भी मारे गये हैं, पत्रकार भी और चपरासी भी। बड़ा घालमेल है। इसका गठन तो हुआ था मेडिकल इंट्रेस एक्जाम के लिए, लेकिन बाद में किसी 'दिमाग' वाले CM ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा हटा दिया और उसके लिए अलग बोर्ड बना दिया।
यादें – 13

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अब यहीं से शुरू हो सकती है वो कहानी, जिसकी भूमिका बाँधते-बाँधते मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ।
यादें – 12

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अगर मैं जेपी आंदोलन, इमरजंसी, इन्दिरा गाँधी, दीदी, विमला दीदी को इतनी शिद्दत से लगातार याद करता हूँ, तो मुझे याद करना होगा 1984 की उस तारीख को जिस दिन इन्दिरा गाँधी की हत्या हुई थी। मुझे याद करना होगा उस 'जनसत्ता' अखबार को जहां मेरी किस्मत के फूल खिलने जा रहे थे। और मुझे याद करना होगा प्रभाष जोशी को, जिनसे 'जनसत्ता' में रहते हुए चाहे संपादक और उप संपादक के पद वाली जितनी दूरी रही हो, लेकिन अखबार छूटते ही हमने दिल खोल कर बातें कीं।
मदरसों को अब बदलना चाहिए

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
मदरसे एक बार फिर विवादों में हैं! इस बार बवाल इस सवाल पर है कि मदरसे स्कूल हैं या नहीं? महाराष्ट्र सरकार ने फैसला किया है कि वह उन मदरसों को स्कूल नहीं मानेगी, जहाँ अँगरेजी, गणित, विज्ञान और समाज शास्त्र जैसे विषय नहीं पढ़ाये जाते। इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को सरकार 'स्कूल न जानेवाले' बच्चों में गिनेगी।
कवि और ‘कवी’

आनंद कुमार, डेटा एनालिस्ट :
त्रिभुवन जी की एक पोस्ट में कवि और ‘कवी’ की कहानी थी, यानि कविता करने वाले और कौवे की। उसमें होता क्या है कि एक कवि को प्यास लगी। आसपास उन्हें एक हलवाई की दुकान दिखी, जहाँ गरमा-गरम जलेबियाँ बन रहीं थीं। वो वहाँ पहुँचे, पानी पीने के बाद जलेबी खाने का भी मन हुआ तो जलेबी दही ली और वहीं खाने बैठ गये ।
यादें -9

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल की मेरी पोस्ट पर अमित ने कमेंट के साथ एक तस्वीर चस्पा की, जिसमें श्रीमती गाँधी जमीन पर बैठी हैं और सामने पुलिस वाले खड़े हैं। आप में से बहुत से लोगों को यह तस्वीर याद होगी। बहुत से लोगों को समझ में नहीं आया होगा कि आखिर ये तस्वीर कब की है।
यमुना की गन्दगी और हथिनीकुंड बराज

सुशांत झा, पत्रकार :
करीब दो साल पहले ‘यमुना बचाओ अभियान’ के लोगों से मिलना हुआ तो हथिनीकुंड बराज के बारे में जानकारी मिली। वे लोग मथुरा से दिल्ली तक पदयात्रा करते आ रहे थे और पलवल के पास सड़क के किनारे एक स्कूल के मैदान में टेन्ट में विश्राम कर कर रहे थे।