‘व्यापम’ से डर लगता है जी

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सुशांत झा, पत्रकार :

व्यापम की वेबसाइट देख रहा था कि इसमें मेडिकल या प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट है या नहीं। क्योंकि डॉक्टर भी मारे गये हैं, पत्रकार भी और चपरासी भी। बड़ा घालमेल है। इसका गठन तो हुआ था मेडिकल इंट्रेस एक्जाम के लिए, लेकिन बाद में किसी ‘दिमाग’ वाले CM ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा हटा दिया और उसके लिए अलग बोर्ड बना दिया। 

अब व्यापम चौकीदार से लेकर एग्रीकल्चर ऑफिसर तक की बहाली करता है। वह पुलिस कांस्टेबल भी बहाल करता है, इंजीनियर भी और साथ ही कई विषयों का इंट्रेस्ट टेस्ट भी लेता है। MCA करना है तो व्यापम जाइये। वो सौ मर्ज की एक दवा है। यानी व्यापम नौकरी बाँटने और एडमिशन देने की थोक एजेंसी है जो साल में पूरे MP में 25-30 हजार नौकरियाँ और दाखिले के लिए जिम्मेवार है। 

हम लोग बचपन से हिन्दी पट्टी में मध्यप्रदेश और राजस्थान को अलग मानते थे। शरीफ बच्चा सा दिखने वाला सूबा जो अपना सारा काम समय पर करता है। जो धीरे-धीरे ‘बीमारू’ प्रदेश की श्रेणी से बाहर निकल गया था। हमें क्या पता था कि विकास होते रहने के बावजूद भ्रष्टाचार का कैंसर वैसे ही पसर सकता है। बहुत सारी बातें साफ हो रही है। हमने हाल के सालों में अखबारों में देखा कि कैसे भोपाल के अफसरों के घरों से सैकड़ों करोड़ रुपये बरामद हुए। कायदे से इतने पैसे लखनऊ या पटना के हाकिमों के घर से मिलने चाहिए थे।

अब आप इस बेरोजगारों भरे भ्रष्ट देश में अदांज लगाइये कि एक नौकरी की कीमत क्या हो सकती है। बाजार में एक औसत किरानी की नौकरी घूस देकर 6 से 8 लाख में मिलती है और हम इसे औसत मान लेते हैं। और अगर एक कंजूसी भरा आकलन करके माना जाये कि व्यापम में ज्यादा से ज्यादा 50% सीटें भी बिकती हो तो कम से कम साल में 10 हजार नौकरी और एडमिशन की बोली लगती होगी।

अब हम 10 हजार को 6 लाख से गुणा कर देते हैं जो 600 करोड़ का सालाना मुनाफे वाला धंधा है। कहते हैं कि इसका इतिहास सनातन है। मान लिया जाये कि इसने पिछले 10-12 सालों में जोर पकड़ा हो तो व्यापम ने कम से कम 6-7 हजार कड़ोर का धंधा किया होगा। एक राज्य स्तरीय संस्था के लिए इतना बढ़िया धंधा स्तुत्य और प्रेरक माना जाएगा। व्यापम को नवरत्न की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।

जिस हिसाब से हत्याएँ हुयी हैं और सभी वर्ग-जाति का ख्याल रखा गया है, ऐसा लगता है कि इस घोटाले के बहुत सारे दावेदार हैं। शिवराज सिंह चौहान अगर कहते हैं कि उन्हें कोई फँसा रहा है तो उन्हें इसी बात पर इस्तीफा दे देना चाहिए। क्योंकि किसी शासक को वैसे भी गद्दी पर रहने का कोई अधिकार नहीं है जो अपनी सुरक्षा न कर सके।

ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस भी व्यापम घोटाले को ज्यादा तूल नहीं देना चाहती। हमें याद है कि बिहार में जब चारा घोटाला हुआ था तो पटना हाईकोर्ट ने ठोक-बजा कर राज्य सरकार की हालत खराब कर दी थी और मामला CBI को दे दिया गया, लेकिन व्यापम घोटाले में इतनी जानें जाने के बाद भी माननीय जबलपुर/भोपाल हाईकोर्ट उतनी सख्त क्यों नहीं है?

बिहार में चारा घोटाला या यूपी में हेल्थ घोटाला में भी हत्याएँ हुईं थीं, लेकिन वहाँ पर 50 लोग नहीं मरे थे। व्यापम तो सबका बाप निकला।

व्यापम में हो रही हत्याएँ किसी हॉलीवुड जासूसी फिल्म या सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यास जैसी लगती है कि घुप्प अंधेरे में कोई आता है और किसी का कत्ल कर देता है। 

इसका नाम जिसने व्यापम रखा होगा वो जरूर किसी ज्योतिषी की औलाद होगा। व्यापम सुनकर ही लगता है कि यह व्यापक घोटाला है। कल किसी ने लिखा कि टीवी प्रोड्यूशर व्यापम पर कोई प्रोग्राम बनाते हुए डरने लगे हैं कि क्या पता एडीटिंग मशीन से कोई भूत निकलकर कत्ल न कर दे।

(देश मंथन, 06 जुलाई 2015)

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