पेशावर की परतों के भीतर
क़मर वहीद नक़वी :
पेशावर के गम, ग़ुस्से और मातम में सारी दुनिया शरीक हुयी, कुछ को छोड़ कर! तालिबान के इस क्रूरतम चेहरे पर सारी दुनिया ने लानत-मलामत की, लेकिन कुछ बिल्कुल भी नहीं बोले, ये कुछ कौन हैं? जो चुप रहे, जिन्होंने रस्मी मातमपुर्सी के लिए भी कुछ बोलने की जहमत गवारा नहीं की।
क्या आपको वाकई अपने पेशे से प्यार है?
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे एक रिश्तेदार की बेटी इन दिनों वकालत की पढ़ाई कर रही है। वह बहुत मेधावी है और मुझे पता है कि उसे हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में 95% से अधिक मार्क्स मिले थे। जब वह मेरे पास करियर काउंसलिंग के लिए आयी थी, तो उसके मन में दुविधा थी कि उसे कानून की पढ़ाई करनी चाहिए या नहीं?
महज 36 घंटों में पेशावर से पीके…
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या देश है? महज 36 घंटों में कर्बला के मातम से निकल कर सिनेमा की मस्ती में खो गया? महज 36 घंटों में पेशावर से पीके पहुँच गया। मै अभी पेशावर के नन्हे-मुन्नों पर तीसरी पोस्ट लिख ही रहा था कि भाई साहब का फोन आ गया।
दवा नहीं, दर्द दे रही हैं खबरें
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
"हैलो, मैं अमेरिका से संजय सिन्हा बोल रहा हूँ।"
"हाँ संजय, बोलो।"
"यहाँ, न्यूयार्क में सुबह-सुबह एक बिल्डिंग से विमान टकरा गया है।"
स्कूल गये ‘अच्छे बच्चे’ फिर लौटकर नहीं आये!
मनीषा पांडे, फीचर संपादक, इंडिया टुडे :
सब बच्चे-बच्चे थे। बिलकुल बच्चों जैसे थे। सबके छोटे-छोटे झगड़े थे, छोटी-छोटी लड़ाइयां। किसी की रोज की तरह मां से झक-झक हुयी होगी। "उठो, स्कूल का टाइम हो गया" और उसे गर्म रजाई से बाहर निकलना दुनिया की सबसे बड़ी सजा लग रही होगी।
ताबूत में बंद बच्चे अपने हुक्मरानों से पूछ रहे हैं!
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
26 जनवरी, वर्ष 2001 को मैं अहमदाबाद में था। नहीं, अहमदाबाद में था नहीं, दोपहर में वहाँ पहुंच गया था।
उन्हें भारत से नफरत क्यों है?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
यह समझना मुश्किल है कि संस्कृत का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से क्या लेना-देना है, किंतु संस्कृत का विरोध इसी नाम पर हो रहा है कि संघ परिवार उसे कुछ लोगों पर थोपना चाहता है।
जब सत्ता ही देश को ठगने लगे तो!
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
एक तरफ विकास और दूसरी तरफ हिन्दुत्व। एक तरफ नरेन्द्र मोदी दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। एक तरफ संवैधानिक संसदीय राजनीति तो दूसरी तरफ हिंदू राष्ट्र का ऐलान कर खड़ा हुआ संघ परिवार। और इन सबके लिये दाना-पानी बनता हाशिये पर पड़ा वह तबका, जिसकी पूरी जिन्दगी दो जून की रोटी के लिये खप जाती है।
सिडनी बंधकः कठिन बीमारी का इलाज नश्तर से ही होता है
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जिन दिनों मैंने 'शक्ति' फिल्म देखी थी, मैं बहुत दुविधा में था। पुलिस अधिकारी पिता दिलीप कुमार के इकलौते बेटे अमिताभ बच्चन को बचपन में कुछ अपराधी किडनैप कर लेते हैं। फिर दिलीप कुमार से फोन पर सौदेबाजी करते हैं। दिलीप कुमार अपने बेटे के बदले भी उन अपराधियों को छोड़ने को तैयार नहीं होते, जिनके लिए ये सारा ड्रामा रचा गया होता है।
बलात्कार: कानून बनाने के अलावा सरकार ने क्या किया?
क़मर वाहिद नक़वी, वरिष्ठ टीवी पत्रकार :
कागज का आविष्कार न हुआ होता, तो सरकारें कैसे चलतीं? दिलचस्प सवाल है! कल्पना कीजिए। आप भी शायद इसी नतीजे पर पहुँचेंगे कि कागज के बिना सरकार चल ही नहीं सकती!
‘किरचिन’ बने तो हर महीने मिलेंगे 300 रुपये!
चंद्र प्रकाश, टीवी पत्रकार :
पिछले साल नवमी पर मेरे घर 10 बच्चियाँ खाने के लिए आयी थीं। उन्हें मेरे घर पर काम करने वाली मेड लेकर आयी थी। बच्चियों ने बड़े चाव से खाना खाया। जाते वक्त हमने उन्हें पैसे की जगह कॉपी और स्टेशनरी का एक सेट दिया, जो उनके काम आ सके, तो पता चला कि 1-2 बच्चियों को छोड़ कर कोई स्कूल नहीं जाती।
9000 मुस्लिमों ने किया धर्मांतरण, तब कहाँ था मीडिया?
शिव ओम गुप्ता :
केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी का 2012 में वहाँ की विधानसभा में दिये बयान के मुताबिक वर्ष 2006 से 2012 के बीच केरल में कुल 7,000 से अधिक लोगों को धर्म परिवर्तन के जरिए मुसलमान बनाया गया, लेकिन किसी भी नेशनल चैनल्स ने चर्चा तो छोड़ो, टिकर भी देना मुनासिब नहीं समझा। लेकिन आज मीडिया चैनल्स ने इस पर मछली बाजार सजा दिया है।