शाह फैसल का यूँ डरना बहुत लाजिमी है

भुवन भास्कर, पत्रकार :
फेसबुक पर अपनी टिप्पणियों से पिछले दिनों में चर्चा में आये 2009 के आईएएस टॉपर शाह फैसल ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है।
क्या संभव हैं एक साथ लोस-विस चुनाव ?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश में इस वक्त यह बहस तेज है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। देखने और सुनने में यह विचार बहुत सराहनीय है और ऐसा संभव हो पाए तो सोने में सुहागा ही होगा।
बीसीसीआई के धतकरमों पर रोक, लोढ़ा की संस्तुति मान्य

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला देते हुए बीसीसीआई में अपनी स्थापना की शुरुआत से ही की जा रही मनमानी और धतकरमों पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए लोढ़ा समिति की संस्तुतियों को लगभग मान लिया।
जिसे जो मिला, वही वो देगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज पोस्ट लिखते हुए मुझे कई बार रुकना पड़ा।
शादी में कार

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
शादी स्थल के बीचों-बीच एक कार की पार्किंग की जगह बना दी गयी थी।
कश्मीरी दोस्तों के नाम एक खुला खत

राजीव रंजन झा :
आपको बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। मानते हैं। आपके जो पड़ोसी थे ना, वे भी बहुत मुश्किल दौर से गुजरे हैं। मालूम है ना आपको? शायद अपनी ही आँखों से देखा भी हो, अगर उनके साथ होने वाले अपराधों में हिस्सेदार नहीं थे तब भी?
क्या मुस्लिम मेरे भाई-बहन नहीं, जो उन्हें नहीं दिखा सकता आइना?

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
हिन्दू धर्म की मान्यताओं पर भी मैं कभी मोहित नही हुआ। इधर बीच इसमें घुस आई कुरीतियों पर भी मैं हमेशा हमलावर मुद्रा में रहता हूँ। जिन प्रमुख मुद्दों पर मैं नियमित रूप से हमले करता रहता हूँ, उनमें- पर्व-त्योहारों पर मासूम जानवरों की बलि, कुकुरमुत्ते की तरह उग आए भगवान और बाबा एवं जाति-प्रथा शामिल हैं।
जन्नत की हूरों के बारे में जाकिर नाइक को खुला पत्र

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
परम आदरणीय जनाब-ए-आला स्कॉलर श्री ज़ाकिर नाइक साहब,
इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे।
सिमरन को जीने का हक है पर जान लेकर नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सिमरन अपने प्रेमी के साथ जाने के लिए तड़प रही थी। पर वो अपने पिता को धोखा देकर ऐसा नहीं कर पा रही थी। वो प्रेमी के साथ जीना तो चाहती थी, पर छल से नहीं, इज्जत से। उसने अपने बाऊजी से कातर हो कर कहा था कि वो अपने राज के बिना नहीं जी सकती। बाउजी के लिए बहुत आसान नहीं था खुद को मनाना, पर बेटी की आँखों में प्यार देख कर उन्होंने आखिर में कह ही दिया था, जा बेटी, जी ले अपनी जिन्दगी।
जरा नजाकत से सँभालें कश्मीर : कांग्रेस की सलाह

अभिषेक मनु सिंघवी, प्रवक्ता, कांग्रेस :
जहाँ तक हमारे संविधान की सीमाओं का सवाल है, और जहाँ तक भारत की अक्षुण्णता एवं सुरक्षा का सवाल है, उसमें किसी रूप से कोई समझौता नहीं हो सकता है।
घाटी दे दें? पर किसको दे दें?

प्रीत के. एस. बेदी, सामाजिक टिप्पणीकार :
पहले जरा नैतिक प्रश्न की बात कर लेते हैं। विभाजन के बारे में कुछ भी नैतिक नहीं था। दोनों ओर से लाखों लोग मारे गये और इस पूरी कवायद के बाद एक ऐसा देश बना जिसके दो हिस्से थे।
कश्मीर को अमन और विकास चाहिए : नरेंद्र तनेजा

हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में एक बार फिर उबाल दिख रहा है और अमरनाथ यात्रा रुकने जैसे हालात पैदा हो गये हैं। कश्मीर की इस स्थिति और वहाँ की विकराल समस्या को सुलझाने के बारे में भाजपा की सोच क्या है? भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र तनेजा से देश मंथन की एक बातचीत।