संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरा नाम संजय सिन्हा है।
मेरे पिताजी का नाम सुशील कुमार सिन्हा था।
मेरे दादाजी का नाम कृष्ण गोविंद नारायण था।
मेरे छोटे भाई का नाम सलिल कुमार सिन्हा था।
उसके बेटे का नाम साहिल सिन्हा है।
अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैं अपने परिवार की कुंडली क्यों खोल कर आपके सामने बैठ गया हूँ? क्या जरूरत है इसकी?
जरूरत है।
दरअसल मेरे पिताजी का नाम पूरी जिन्दगी सुशील कुमार सिन्हा ही रहा। पर जब उनका निधन हुआ तो उनकी मृत्यु का जो सर्टिफिकेट बना उस पर लिखा था सुशील कृष्ण गोविंद नारायण सिन्हा। अब कायदे से सोचें और देखें तो मेरे पिता की मृत्यु का प्रमाण पत्र असली है ही नहीं। कानून की भाषा में कहें तो मेरे पिता का निधन ही नहीं हुआ।
ठीक इसी तरह मेरे छोटे भाई के बेटे की दसवीं के प्रमाण पत्र पर उसका नाम लिखा है साहिल सलिल सिन्हा। बारहवीं के प्रमाण पत्र पर लिखा है साहिल सलिल कुमार सिन्हा। अब ये एक ही व्यक्ति के दो नाम हो गये। हाँ, ये दो नाम हो गये। लेकिन उनके लिए, जो खुड़पेची स्वभाव के होते हैं।
मैंने जानबूझ कर ये वाली पोस्ट कल नहीं लिखी थी। कल लिखता तो आप कहते कि संजय सिन्हा राजनीतिक पोस्ट लिखने लगे। इसीलिए मैंने इस मुद्दे के थमने तक का इंतजार किया और आज आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे पिताजी का नाम उनके रिटायरमेंट के दो साल बाद अचानक उन्हें बताए बिना इसलिए बदल गया क्योंकि मेरा छोटा भाई उन दिनों गुजरात में नौकरी कर रहा था, और गुजरात में रिवाज है नाम के बीच पिता का नाम जोड़ने का। पहले कम्यूटर का जमाना नहीं था। पैन कार्ड और आधार कार्ड का जमाना भी नहीं था। ऐसे में नाम लिखने वाले बाबू की सुविधा पर यह निर्भर करता था कि वो पूरा नाम लिख रहा है या अधूरा।
मसलन साहिल सलिल सिन्हा, या साहिल सलिल कुमार सिन्हा। या सिर्फ साहिल सिन्हा।
इसी तरह नरेंद्र मोदी की डिग्री पर अगर नरेंद्र कुमार दामोदर मोदी, नरेंद्र दामोदर दास मोदी या नरेंद्र मोदी लिखा है, तो समझने वाला समझ रहा है कि ये सब एक ही व्यक्ति के नाम हैं, इसे लेकर कोई व्यक्ति अगर टीवी कैमरे के सामने बैठ कर उनका मजाक उड़ाता है, तो इसका सीधा अर्थ यही होता है कि वो व्यक्ति या तो गुजरात के इस कायदे को नहीं जानता, या फिर जानकर जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है।
कोई व्यक्ति अगर नरेंद्र मोदी के खिलाफ राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश करे, तो किसी को इसमें क्या आपत्ति होगी? लेकिन कोई अगर देश के प्रधानमंत्री पर ऐसी ओछी तोहमत जरा सी सनसनी के लिए लगाता है तो वो देश को जग हँसाई का पात्र बनाता है।
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मैं नहीं जानता कि मोदी जी की जो डिग्री जनता के सामने रखी गयी है, वो सही है या गलत। पर जिन दिनों मैं जी न्यूज में रिपोर्टर था और कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, तीसरा मोर्चा और संसद में रिपोर्टिंग के लिए जाता था, उन दिनों बीजेपी दफ्तर में नरेंद्र मोदी नामक एक सामान्य कार्यकर्ता से अक्सर मुलाकात होती थी। उन दिनों नरेंद्र मोदी नाम ऐसा नहीं था कि सभी पत्रकार उनसे मिलना ही चाहते।
वो कभी टीवी पर बाइट नहीं देते थे, वो बाइट देने वाले नेताओं के पीछे खड़े होकर अपनी तस्वीर भी नहीं खिंचवाया करते थे।
ये बात है 1999 की जब अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और उमा भारती तक की बाइट के पीछे हम रिपोर्टर भागते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी की बाइट के कोई मायने नहीं थे। यहाँ तक कि गोविंदाचार्य तक की बाइट खबरों में चलती थी, पर मोदी की नहीं। तब नरेंद्र मोदी ने खुद भी नहीं सोचा होगा कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री बन जाएंगे। प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी तो संसार का कोई भी ज्योतिष नहीं कर सकता था।
ऐसे में एक दोपहर मैं बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस की इंतजार कर रहा था, नरेंद्र मोदी सामने बैठे थे। बातचीत चली तो मैंने कहा कि इतना पढ़ लिख कर मैं पत्रकारिता में आया था, पर टीवी में तो कोई भी पत्रकार बन बैठा है। बात कैसे शुरू हुई याद नहीं। पर पढ़ाई-लिखाई पर बात चलने लगी, तो नरेंद्र मोदी ने कहा कि पढ़ाई कभी व्यर्थ नहीं जाती। उन्होंने कहा था कि काम कोई भी करें, पर पढ़ाई का तो फायदा है ही।
मैं तब उनसे उनकी डिग्री के विषय में नहीं पूछ पाया था, पर मुझे उनकी बातों से लगा था कि उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की है।
उस समय उस बातचीत की कोई अहमियत नहीं थी। पर आज है।
मोदी जी ने तब नहीं सोचा होगा कि वो देश के प्रधानमंत्री बनेंगे और उनकी डिग्री पर भी कभी राजनीति होगी। पर उन्होंने जब ये बात कही थी, तब यूँ ही कही थी और मुझे लगता है कि उनका कहा सही था, क्योंकि वो जानते थे कि डिग्री से कोई फायदा नहीं होने का। ये तो बस बात से निकली बात भर थी।
मैं किसी व्यक्ति का भक्त नहीं, लेकिन मैं प्रधानमंत्री की इज्जत करना जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि जो भी व्यक्ति जनता के वोट से चुन कर आता है, उसका सम्मान करना हर देशवासी का धर्म है।
आप उनके खिलाफ बोलिए। पर मुद्दों पर बोलिए। “उनका नाम कैसे बदल गया, ऐसा होना मुमकिन ही नहीं, ये गलत है, ये फर्जी है, किसी के दो नाम नही हो सकते” ये सब बोलने से पहले और किसी भी आदमी पर ओछे आरोप लगाने से पहले सच को जानने की कोशिश करनी चाहिए।
अगर नरेंद्र मोदी की डिग्री ‘नरेंद्र दामोदर दास मोदी’ या ‘नरेंद्र कुमार दामोदर मोदी’ होने से फर्जी है, तो मेरे पिता की मृत्यु का प्रमाण पत्र भी फर्जी है।
फिर तो मेरे पिता मरे ही नहीं।
काश ऐसा होता!
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नोट- मेरी पोस्ट को प्लीज राजनीतिक रंग मत दीजिएगा। मैंने यहाँ अपने अनुभव को सिर्फ साझा भर किया है। राजनीतिक पार्टियों को जनता के दुख दर्द पर फोकस करना चाहिए, हमने इन्हें इसलिए ही चुना है। बाकी बातें सनसनी चाहे जितनी मचाएं, जनता को इन बातों से कोई फायदा नहीं होता।
(देश मंथन 11 मई 2016)