डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
इंटरनेट पर चलने वाली अश्लील दृश्यावलियों के बारे में भारत सरकार का रवैया काफी अजीब है। सरकार के अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने बहस करते हुए कहा कि अश्लील वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो देश को भारी नुकसान हो जायेगा।
क्योंकि जिस वेबसाइट में भी वे अश्लील शब्द आयेंगे, वहीं वेबसाइट उड़ानी पड़ेगी। इस प्रक्रिया में कुछ श्रेष्ठ साहित्य भी उड़ जायेगा, क्योंकि उसमें भी इस तरह के शब्द आ जाते हैं या उन शब्दों की निंदा करने के लिए उनको लाना पड़ता है। ऐसी समस्त वेबसाइटों पर नियंत्रण रखने के लिए हर कंप्यूटर में एक यंत्र या साफ्टवेयर लगाना होगा। सभी कंप्यूटर-निर्माताओं को ऐसा सॉफ्टवेयर डालने के लिए मजबूर करना होगा।
यह मुकदमा इंदौर के वकील कमलेश वासवानी की याचिका के कारण चल रहा है। वासवानी का तर्क यह है कि देश में आजकल व्यभिचार, बलात्कार और स्त्री-पीड़न का जो चलन बढ़ गया है, उसका एक बड़ा कारण ये अश्लील दृश्यावलियाँ भी हैं। जरा खटका दबाया नहीं कि एक से एक अश्लील दृश्य कंप्यूटर पर दिखायी पड़ते हैं। देखनेवाले को न तो कुछ खर्च करना पड़ता है और न ही किसी को पता चलता है कि उसने क्या देखा। ऐसी गंदी वेबसाइटों की संख्या 20 करोड़ है। इन्हें नौजवान और बच्चे ज्यादातर देखते हैं। वासवानी का कहना है कि इन पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
मैं इस प्रतिबंध का पूर्ण समर्थक हूँ। पहले व्यक्ति विचार भ्रष्ट होता है, फिर कर्मभ्रष्ट! अश्लील साहित्य, अश्लील चित्र, अश्लील सिनेमा और अश्लील वेबसाइटें विचारों को भ्रष्ट करती हैं। यदि अश्लील साहित्य और अश्लील सिनेमा पर प्रतिबंध उचित है तो अश्लील वेबसाइटों पर तो वह और ज्यादा उचित है। साहित्य और सिनेमा की तुलना में वह ज्यादा सुलभ और मुफ्त है। अतिरिक्त सॉफ्टवेयर लगाने का बहाना बिल्कुल बचकाना है। दर्जनों सॉफ्टवेयर हर कंप्यूटर में लगे होते हैं। एक और लग गया तो कौनसा आसमान टूट जायेगा? जिन लोगों को श्रेष्ठ साहित्य की हानि का बहाना प्रिय है, उनसे मैं पूछता हूँ कि अश्लील, फूहड़ और अशिष्ट शब्दों का प्रयोग किए बिना क्या श्रेष्ठ साहित्य नहीं लिखा जा सकता? श्रेष्ठ साहित्य तो वही माना जाता है, जो बिना कहे ही सब कुछ कहने की क्षमता रखता हो। अश्लीलता की जो भी वकालत करता है, वह मनुष्यों को सत्यम, शिवम्, सुंदरम् से वंचित करता है। अश्लीलता मनुष्य का मनोरंजन नहीं, मनोभंजन करती है। वह काम के उदात भाव को कर्कश जुगुप्सा में परिणत करती है। इसीलिए उस पर प्रतिबंध जरूरी है।
(देश मंथन, 07 मई 2014)