साईं बाबा ही नहीं, घनश्याम पांडे भी ‘भगवान’ नहीं थे!

0
147

अभिरंजन कुमार :

साईं बाबा भगवान नहीं थे, यह तो तय है और इसीलिए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की कई दलीलों से सहमत नहीं होते हुए भी तथ्य के आधार पर मैंने उनका समर्थन किया।

एक और कथित ‘भगवान’ हैं स्वामीनारायण संप्रदाय के घनश्याम पांडे उर्फ नीलकंठवर्णी उर्फ सहजानंद स्वामी (2 अप्रैल 1781 – 1 जून 1830), जिनके अनुयायी उन्हें ‘भगवान स्वामीनारायण’ मानते हुए उनकी पूजा करते हैं। अक्षरधाम मंदिर के नाम से गुजरात और दिल्ली में उनके बड़े मंदिर हैं।

दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर मैंने भी देखा है। यमुना के तट पर बने इस मंदिर का परिसर सौ एकड़ में फैला है और यह दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर परिसर है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने भी इसे दुनिया के सबसे बड़े मंदिर परिसर के तौर पर मान्यता दी है। इस मंदिर के गर्भगृह में स्वामीनारायण जी की विशाल प्रतिमा स्थापित है, जबकि हिंदू धर्म के दूसरे तमाम स्थापित देवी-देवताओं (जिनका शास्त्रो में वर्णन है) की एकदम छोटी-छोटी प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जैसे वे सभी उनके मातहत हों।

घनश्याम पांडे जी ने अच्छे काम किये होंगे और उम्दा संत रहे होंगे, इस बात से मुझे इन्कार नहीं है। उनके लिए मान-सम्मान में भी कोई कमी नहीं है। लेकिन आर्य समाज के संस्थापक और महान समाज-सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती ने भी उन्हें ‘भगवान’ मानने से इन्कार किया था। क्या विडंबना है कि जिन लोगों ने देश और समाज के लिए ज्यादा बड़े काम किये, उन्होंने कभी अपने को ‘भगवान’ साबित करने की कोशिश नहीं की। तुलसी, सूर, कबीर और रविदास से लेकर खुद दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, राजा राममोहन राय और महात्मा गांधी तक इसके ज्वलंत प्रमाण हैं।

‘भगवान’ कहलाये वे, जिन्होंने वस्तुतः देश और समाज का उद्धार कम किया और अंधविश्वास ज्यादा फैलाया, मठों का विस्तार ज्यादा किया, धन-संपत्ति ज्यादा इकट्ठी की और तिकड़मियों के प्रति अधिक कृपालु रहे। मुझे यह भी समझ नहीं आता कि पिछले 100-200 साल में वो कौन-सा वायरस चला, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में संतों-आचार्यों-गुरुओं-बाबाओं के सिर पर ‘भगवान’ बनने का भूत सवार हो गया?

इनमें से कई भगवान और बाबा तो तमाम तरह के धत्कर्मों में लिप्त रहते हैं, लेकिन आस्था के सम्मान के नाम पर और भावनाएँ आहत होने के डर से आप इनके ख़िलाफ एक लफ़्ज भी नहीं बोल सकते।

मेरा स्पष्ट मानना है कि इस वक़्त देश को वह फर्जी भगवान नहीं चाहिए, जिसके नाम पर तमाम तरह के धत्कर्म, मनी मेकिंग और लैंड ग्रैविंग के खेल चल रहे हों, बल्कि वह नायक चाहिए, जो लोगों को गरीबी, मुफलिसी, अशिक्षा, बेरोजगारी और अंधविश्वास से मुक्ति दिलाये, उसे सही रास्ते पर ले जाये, उसकी ऊर्जा को देश के विकास के लिए केंद्रित करे।

(देश मंथन, 30 जून 2014)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें