अभिरंजन कुमार :
मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस देश के आम, गरीब, अनपढ़, कम पढ़े-लिखे, ग्रामीण लोग धर्मनिरपेक्ष हैं, लेकिन प्रायः सभी राजनीतिक दल, नेता, बुद्धिजीवी, पढ़े-लिखे और शहरी लोग सांप्रदायिक हैं।
इस दूसरी प्रजाति के लोग ही लोगों की सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काते हैं, लोगों में मनमुटाव पैदा करते हैं, उन्हें बांटते हैं, उकसाते हैं, लड़ाते हैं, दंगा कराते हैं, मार-काट मचवाते हैं, लोगों की लाशों और बिलखते परिवारों पर अपने फायदे की रोटियाँ सेंकते हैं और फिर नौ सौ चूहे खाकर हज पर जाने वाली बिल्ली की तरह धर्मनिरपेक्षता पर प्रवचन देते हैं, इसे राजनीतिक मुद्दा बनाते हैं, सभाएँ-सेमिनार करते हैं, टीवी डिबेट्स में एक-दूसरे को घेरते हैं और पूर्णतः बगुला भगत बन जाते हैं।
जब ताजिये के जुलूसों में शामिल होकर, मुस्लिम परिवारों में ईद की सेवइयाँ खाकर, मुस्लिम वरिष्ठों को चाचा, चाची, मामू, मामी, नाना, नानी इत्यादि संबोधनों से पुकारकर, उनके दिये हुये गंडा-ताबीजों को अपनी बाँह पर बांधकर, मुस्लिम दोस्तों के साथ रोजाना उठते-बैठते हुए, रूम शेयर करके रहते हुए, एक-दूसरे की मदद करते हुए मैं हिन्दू से मुसलमान नहीं बन गया… और मिशनरी स्कूलों में पढ़ते हुये, ईसाई प्रार्थनाओं में शामिल होते हुए, क्रिसमस मनाते हुए, ट्री सजाते हुए, सैंटा क्लॉज का इंतजार करते हुए हमारे बच्चे ईसाई नहीं बन गये… तो योग कहे जाने वाली कुछ क्रियाओं को करके किसी मुस्लिम का धर्म कैसे भ्रष्ट हो जाता है भाई?
मेरे वे “मुस्लिम” दोस्त जो मुझ “हिन्दू” के साथ होली-दिवाली में शामिल हुये, हमारे पर्व-त्योहारों का हिस्सा बने, उठे-बैठे, खाए-पिये, रूम शेयर करके साथ रहे, हर वक्त मदद के लिए खड़े रहे… इतना सब करके जब वे मुस्लिम से हिन्दू नहीं बन गये, तो योग कहे जाने वाली कुछ क्रियाओं को करके वे मुस्लिम से हिन्दू बन जाएँगे?
न जाने कितने मुस्लिम परिवार हैं, जो हिन्दू पर्व-त्योंहारों के लिए दिन-रात देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाते हैं, पंडाल सजाते हैं, फल-फूल बेचते हैं, दिन-रात हिन्दू मंत्रोच्चारणों के बीच रहते हैं, बनारस के काशी विश्वनाथ से लेकर जम्मू के वैष्णो देवी तक हज़ारों मुसलमान रास्ते में मददगार बनकर खड़े रहते हैं और इसी की रोजी-रोटी खाते हैं… जब इतना सब करके वे मुसलमान से हिन्दू नहीं बन गये तो योग कहे जाने वाले कुछ क्रियाओं को करके वे विधर्मी कैसे हो जाएँगे?
जब अंग्रेजी बोलकर आज तक कोई अंग्रेज नहीं हुआ, चाइनीज खाकर कोई चीनी नहीं बन गया, विदेशी कपड़े पहनकर कोई विदेशी नहीं हो गया, तो योग करके कोई गैर-हिन्दू हिन्दू कैसे बन जायेगा? जब ईसाइयों के प्रभुत्व वाले अमेरिका की अदालत योग को सांप्रदायिक और हिन्दुत्व की तरफ बढ़ने का मार्ग नहीं मानती और कहती है कि इससे किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं होता है, जब हमारे पड़ोसी आतंकवादी देश पाकिस्तान को छोड़कर प्रायः सभी मुस्लिम देश इसे अपनाने में कोई बुराई नहीं देखते, तो भारत में मुसलमानों को भड़काने वाले लोग किस नीयत से काम कर रहे हैं?
योग तन और मन को पूर्ण रूप से दुरुस्त करने वाली क्रिया-विधि है और इसका अर्थ जोड़ना होता है। समाज को तोड़ने के लिए, हिन्दुओं और मुसलमानों को बांटने के लिए जिन लोगों ने इसे विवाद में घसीटा है, इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया है, मैं फिर से कहूँगा कि वे सांप्रदायिक नेता और बुद्धिजीवी हैं और एक सर्वधर्म समभाव और भाईचारे में यकीन रखने वाले समाज में उन्हें अपराधी मानना चाहिए।
जब हमारा सूरज एक है, चन्दा एक है, एक ही धरती एक ही आसमान है, पीने का पानी एक है, सांस लेने की हवा एक है, अन्न-जल-फूल-फल एक हैं, एक ही बस्तियों में हम रहते हैं, तो फिर यह बंटवारा किस बात का है भाई? झगड़ा किस बात का है भाई? अल्लाह और भगवान… जिसे किसी ने न देखा है, न जिसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण है… उसके नाम पर एक साथ प्रेम और भाईचारे के साथ रह रहे लोगों को लड़ाकर अपनी बौद्धिकता झाड़ते हो… शर्म नहीं आती तुम्हें?
ध्रुवीकरण की राजनीति के एजेंट नेताओं और बुद्धिजीवियों को मैं आगाह करना चाहता हूँ कि ध्रुवीकरण जब भी होता है, तो दोनों तरफ होता है। अगर तुम अपने स्वार्थ के लिए अल्पसंख्यकों का ध्रुवीकरण करोगे, तो उसी वक्त किसी और के पक्ष में बहुसंख्यक भी ध्रुवीकृत हो रहे होंगे। …और अभी यही हुआ और हो रहा है इस देश में। यह एक खतरनाक स्थिति है। व्यावहारिक स्थिति यह होती है कि एक कदम तुम चलो, एक कदम हम चलें। एक-दूसरे को स्वीकार करने से ही सबका साथ बनता है और सबका विकास होता है।
दो बातें हमेशा याद रखिए।
एक- कि जब आप मानवता की भलाई के लिए बनी अच्छी चीजों को भी धर्म से जोड़ कर उनका बहिष्कार कर देंगे, तो आपको ऐसा ही नेता मिलेगा, जो आपकी टोपी को धर्म से जोड़ कर उसे पहनने से इनकार कर देगा और फिर आपके हाय-तौबा मचाने का कोई मतलब नहीं रह जाता, क्योंकि यह एक सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रिया और ध्रुवीकरण की राजनीति का ही परिणाम होता है।
दूसरी- यह कि जब आप गैर-मुद्दों को प्रमुख मुद्दे बना देंगे, तो असली मुद्दे भटक जाएँगे और देश के नेता और उनके एजेंट बुद्धिजीवी यही चाहते हैं।
क्या आप अपने खिलाफ हो रही साजिशों को समझ पा रहे हैं?
(देश मंथन 22 जून 2015)