रात तय करती है सुबह किसकी होगी

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दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार : 

डूबती रात के अंधेरों में जब वासना से विरक्त होकर कोई अपने लक्ष्य से भिड़ता है तो जान लीजिए उसका मन किसी बड़ी दिशा की और बढ़ चुका है। 

रात के अंधेरों के ये संघर्ष तय कर देते हैं आत्मा का यह संकल्प कि कुछ करना है, बड़ा करना है। दिन नहीं, रात के अंधेरे तय करते हैं कि आप उजालों के कितने करीब हैं। नेपोलियन की जागती रातों ने ही उसे नेपोलियन बनाया था। वह नेपोलियन, जिसकी रणनीतिक शक्ति ने यूरोप के नक्शों को बदल दिया। आप महादीप के नक्शे न बदलें, लेकिन खुद को और देश को बदलने के लिए अंधेरों से भिड़ें। 

पिछले पाँच सालों में राहुल गाँधी ने कितनी रातें इस देश को दीं, ये उन्हें या माँ सोनिया को मालूम होंगी। वासना से विरक्त होकर राहुल किसी बड़े लक्ष्य से कितनी रातों तक भिड़े, यह भी उन्हीं को मालूम होगा। लेकिन एक सत्य अब सबको मालूम है कि राहुल को उनकी रातों ने अब तक सवेरा नही दिया है। 

दिन भर की मुलाकातों और बैठकों के बाद जब रात डूबने लगती है तो मोदी अपनी टेबल पर फाइलें खोलना शुरू करते हैं। जब तीन चौथाई देश नींद के आगोश में होता है तो मोदी के निवास पर चीन से लेकर अमेरिका की रणनीति बन रही होती है। जन धन योजना हो या स्वच्छ भारत का अभियान, रात डेढ़ बजे तक आपको 7 आरसीआर में अफसर निर्देश टाइप करते मिलेंगे। कुछ फैसलों के लिए मोदी रात दो-ढाई बजे तक जागते। ये बातें मुझे कैबिनेट सचिव अजित सेठ ने बतायीं और शायद सच ही होंगी। बहरहाल देर रात तक मोदी का दफ्तर चलने ने अब कई सचिवों और मंत्रियों की नींद हराम कर दी है। कुछ भी हो, सच यह भी है कि मोदी अपनी रातों को कुर्बान करके जिस सवेरे की तलाश में हैं, वह सवेरा सालों पहले 7 आरसीआर के रहनुमाओं को देश के लिए तलाश लेना चाहिए था।

मोदी की सोच से कांग्रेसी, समाजवादी, वामपंथी और मेरे “आप” वाले भाई सहमत नही हो सकते। यह उनकी राजनीतिक विवशता है। लेकिन मोदी की मेहनत को कोई मूर्ख ही दरकिनार करेगा। यही वह चाय वाला है जो रात के अंधेरों से भिड़ कर यहाँ तक पहुँचा है। आपको अगर मोदी का विरोध करना है तो करें, पर लक्ष्य से भिड़ना मत छोड़िएगा। आपकी रातें ही आपकी सुबह तय करने वाली हैं।

(देश मंथन, 22 सितंबर 2014)

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