अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
जिन लोगों ने देशद्रोह के नारे लगाए या लगवाए, वे ठसक से रह रहे हैं, आप उन्हें छू भी नहीं सकते, वे राहुल गाँधी, सीताराम येचुरी और अरविन्द केजरीवाल समेत देश के ढेर सारे नेताओं के रोल मॉडल हैं। लेकिन जिन लोगों ने देशप्रेम के नारे लगाये और तिरंगा फहराया, उन्हें अपनी पहचान तक छुपानी पड़ रही है।
एनआईटी के गैर-कश्मीरी छात्रों का दर्द देख कर मैं व्याकुल हूँ। वे हर पल असुरक्षा में जी रहे हैं और देशद्रोहियों और आतंकवादियों से उन्हें लगातार खतरा है। छप्पन इंच की छाती वाली सरकार में भी उन्हें ऐसी दहशत का सामना करना पड़ेगा, यह बात और भी पीड़ित करती है।
देशद्रोहियों और आतंकवादियों ने आज से 26 साल पहले लाखों कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर निकाला, अब वे गैर-कश्मीरी छात्रों को निशाना बना रहे हैं। भारत के पैसे और संसाधनों का खुलकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है।
इसलिए मेरी माँग देशद्रोही दानवाधिकारवादियों से बिलकुल उलट है। जरूरत पड़े तो सेना को और छूट दी जानी चाहिए, ताकि देश के दुश्मनों को उचित सबक सिखाया जा सके। याद रखें, मानवाधिकार मानवों के होते हैं, दानवों के नहीं। घाटी में जो लोग तथाकथित मानवाधिकार हनन पर विधवा विलाप करते हैं, वस्तुतः वे लोग दानवों को मानव का दर्जा और मानवों को जानवरों का दर्जा दिलाना चाहते हैं।
इसलिए बीजेपी अगर पीडीपी के साथ मिलकर घाटी में एक लिजलिजी और पिलपिली सरकार चलाना चाहती है, तो हम इसका विरोध करते हैं।
(देश मंथन, 14 अप्रैल 2016)