घेलुआ और 2019 के टोटके!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
राहुल और शौरी से प्रशान्त की मुलाकातें बताती हैं कि राजनीति काफी रोचक होती जा रही है! अरुण शौरी पिछले काफी समय से नरेन्द्र मोदी के मुखर आलोचक रहे हैं और समझा जाता है कि बिहार की हार के बाद जारी बीजेपी के बुजुर्ग नेताओं के बयान का मसौदा तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका थी।
शुभ नहीं हैं 2016 के संकेत!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
बिहार में सबकी साँस अटकी है! क्योंकि इस चुनाव पर बहुत कुछ अटका और टिका है! राजनीति से लेकर शेयर बाजार तक सबको बिहार से बोध की प्रतीक्षा है! किसी विधानसभा चुनाव से शेयर बाजार इतना चिन्तित होगा, कभी सोचा नहीं था। लेकिन वह इस बार वह बहुत चिन्तित है। इतना कि देश की तीन बड़ी ब्रोकरेज कम्पनियों ने खुद अपनी टीमें बिहार भेजीं! मीडिया की चुनावी रिपोर्टों पर भरोसा करने के बजाय खुद धूल-धक्कड़ खा कर भाँपने की कोशिश की कि जनता का मूड क्या है? क्यों भला?
अब फर्जी सेक्युलर सिखाएँगे सहिष्णुता का पाठ
अभिरंजन कुमार :
चीन में यह भी कम्युनिस्ट ही तय करते हैं कि लोग कितने बच्चे पैदा करें। वहाँ की कम्युनिस्ट सरकार ने 36 साल बाद अपने नागरिकों को दो बच्चे पैदा करने की इजाजत दी है। वहाँ पहले एक ही बच्चा पैदा करने की इजाजत थी। दंपति दूसरा बच्चा तभी पैदा कर सकते थे, जब पहली संतान लड़की हो।
अब ताप में हाथ मत तापिए!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
चिन्ता की बात है। देश तप रहा है! चारों तरफ ताप बढ़ रहा है! क्षोभ, विक्षोभ, रोष, आवेश से अखबार रंगे पड़े हैं, टीवी चिंघाड़ रहे हैं, सोशल मीडिया पर जो कुछ 'अनसोशल' होना सम्भव था, सब हो रहा है! लोग सरकार को देख रहे हैं! सरकार किसी और को देख रही है! कुत्ते संवाद के नये नायक हैं!
प्रधानमंत्री की खामोशी के अर्थ-अनर्थ
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
तय मानिए यह देश नरेंद्र मोदी को, मनमोहन सिंह की तरह व्यवहार करता हुआ सह नहीं सकता। पूर्व प्रधानमंत्री मजबूरी का मनोनयन थे, जबकि नरेंद्र मोदी देश की जनता का सीधा चुनाव हैं। कई मायनों में वे जनता के सीधे प्रतिनिधि हैं। जाहिर है उन पर देश की जनता अपना हक समझती है और हक इतना कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे अपनी व्यस्तताओं के बीच भी हर छोटे-बड़े प्रसंग पर संवाद करें, बातचीत करें।
खेलों में उग्रवाद की आग पाकिस्तान ने ही लगायी थी !
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
पाकिस्तान क्रिकेट के सदर शहरयार साहब छाती पीट-पीट कर रोते हुए घर लौट रहे हैं कि उग्रवादियों के आगे बीसीसीआई झुक गयी और उसने श्रीनिवासन के कार्यकाल के दौरान सिरीज खेलने का जो करार किया था, उसे तोड़ दिया।
लिखिए जोर से लिखिए, किसने रोका है भाई!
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश में बढ़ती तथाकथित सांप्रदायिकता से संतप्त बुद्धिजीवियों और लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला वास्तव में प्रभावित करने वाला है। यह कितना सुंदर है कि एक लेखक अपने समाज के प्रति कितना संवेदनशील है, कि वह यहाँ घट रही घटनाओं से उद्वेलित होकर अपने सम्मान लौटा रहा है। कुछ ने तो चेक भी वापस किये हैं। सामान्य घटनाओं पर यह संवेदनशीलता और उद्वेलन सच में भावविह्वल करने वाला है।
कामन सिविल कोड से क्यों डरें?
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
हिन्दुओं ने तो ज्यादातर सामाजिक सुधारों को स्वीकारना शुरू कर दिया, लेकिन मुसलमानों ने पर्सनल लॉ को 'धर्म की रक्षा' का सवाल बना कर अपनी अलग पहचान और अस्तित्व का मुद्दा बना लिया और वह उसमें किसी भी बदलाव का विरोध करते रहे। 1985 का शाहबानो मामला इसकी चरम परिणति थी, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने अगर कट्टरपंथी मुसलमानों के सामने घुटने न टेके होते तो आज शायद देश में आम मुसलमानों की स्थिति पहले से कहीं बेहतर होती!
ज्ञान ही ज्ञान
सुशांत झा, पत्रकार :
उन लोगों पर ताज्जुब होता है जो कहते हैं कि पीएम को बिहार में 40 सभाएँ नहीं करनी चाहिए। अरे भाई, इसका क्या मतलब कि जिस बच्चे को 12वीं में 99 फीसदी नंबर आये वो IIT की परीक्षा में दारू पीकर इक्जाम देने चला जाये? हद है! चुनाव है या फेसबुक पोस्ट कि कुछ भी लिख दिया? विपक्षी दलों के पास नेता नहीं है और जो हैं या तो वो जोकर किस्म के हैं या किसी आईलैंड पर तफरीह कर रहे हैं तो इसमें नरेंद्र मोदी का क्या दोष है? ये तो उस आदमी का बड़प्पन है कि सांढ का सींग पकड़कर मैदान में डटा हुआ है।
आभासी सांप्रदायिकता के खतरे
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जिस तरह का माहौल अचानक बना है, वह बताता है कि भारत अचानक अल्पसंख्यकों (खासकर मुसलमान) के लिए एक खतरनाक देश बन गया है और इसके चलते उनका यहाँ रहना मुश्किल है। उप्र सरकार के एक मंत्री यूएनओ जाने की बात कर रहे हैं तो कई साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने पर आमादा हैं। जाहिर तौर पर यह एक ऐसा समय है, जिसमें आयी ऐसी प्रतिक्रियाएँ हैरत में डालती हैं।
वाई-फाई विलय
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मुलायम सिंह ने कह दिया कि नितीश और लालू ने उन्हे धोखा दिया। पहले मुलायम दोनों को साथ लेकर आये, फिर दोनों ने साथ-साथ मुलायम सिंह को बाहर कर दिया।
कुछ नहीं करना भी एक फैसला है!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो प्रधानमंत्री आखिर दादरी पर भी बोले। मौका गुरुवार को दिन की उनकी आखिरी चुनावी रैली का था। इसके पहले वह दिन भर में बिहार में तीन रैलियाँ कर चुके थे। गोमांस पर लालू प्रसाद यादव के बयान पर खूब दहाड़े भी थे। 'यदुवंशियों के अपमान' से लेकर 'लालू की देह में शैतान के प्रवेश' तक जाने क्या-क्या बोल चुके थे वह! एक-एक कर तीन रैलियाँ बीतीं, दादरी पर नमो ने कोई बात नहीं की। लोगों ने सोचा कि कहाँ प्रधानमंत्री ऐसी छोटी-छोटी बातों पर बोलेंगे? अब यह नीतीश कुमार के ट्वीट का कमाल था या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले से तय किया था कि वह नवादा में दिन की अपनी आखिरी रैली में ही दादरी पर बोलेंगे, यह तो पता नहीं। खैर वह बोले! अच्छी बात है!