Sunday, December 22, 2024
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राजनीति

बसपा नहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य नुकसान में

संदीप त्रिपाठी :

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों की सरगर्मी अभी से नजर आने लगी है।

राजनीतिक चंदा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज की कहानी मुझे मेरे दफ्तर में कोई सुना रहा था। बता रहा था कि उसने शायद ऐसा कभी बहुत पहले अखबार में पढ़ा था, या फिर किसी वरिष्ठ पत्रकार ने उससे साझा किया था। 

राहुल बाबा फिर विदेश चले गये हैं

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

राहुल बाबा फिर विदेश चले गए हैं। 
किस देश गए हैं, बताकर नहीं गये, वरना जरूर बताता। 

दूसरे करें तो रासलीला, ‘आप’ करे तो कैरेक्टर ढीला

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना कर उनके लाभ की कथित व्यवस्था करने के आरोपी अरविन्द केजरीवाल से उम्मीद की जा रही है कि वे अपने विधायकों का इस्तीफा करवा दें और चुनाव हो जाने दें।

उड़ता पंजाब और उल्टा दाँव

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

गुजरात का फार्मूला देश में नहीं चल रहा है। ना विकास का ना चुनाव जीतने का। भाजपा दावा चाहे जो करे। भक्त चाहे जो दिखाएं-बताएं सच यह है कि हिन्दुत्व ब्रिगेड की चालें बुरी तरह मार खा रही हैं।

विकास को नए नजरिए से देखे मीडिया

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

मीडिया की ताकत आज सर्वव्यापी है और कई मायनों में सर्वग्रासी भी। ऐसे में विकास के सवालों और उसके लोकव्यापीकरण में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो उठी है। यह एक ऐसा समय है, जबकि विकास और सुशासन के सवालों पर हमारी राजनीति में बात होने लगी है, तब मीडिया में यह चर्चाएँ न हों यह संभव नहीं है।

अजीत जोगी और अखबार की ताकत

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

अखबार की ताकत पर याद आया। जनसत्ता में नौकरी शुरू की थी तो पाया कि दिल्ली में भी बिजली जाती थी और तो और दफ्तर की बिजली भी जाती थी पर अखबार छापने के लिए जेनरेटर नहीं था। मुझे याद नहीं है कि बिजली जाने पर एक्सप्रेस बिल्डिंग की लिफ्ट चलती थी कि नहीं और चलती थी तो कैसे? नहीं चलती थी तो कभी उसका कोई विरोध हुआ।

बौद्धिक वर्ग से रिश्ते सुधारे मोदी सरकार

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

अपने कार्यकाल के दो साल पूरे करने के बाद नरेंद्र मोदी आज भी देश के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक ब्रांड बने हुए हैं। उनसे नफरत करने वाली टोली को छोड़ दें तो देश के आम लोगों की उम्मीदें अभी टूटी नहीं हैं और वे आज भी मोदी को परिणाम देने वाला नायक मानते हैं।

हाँ, दिल्ली को एटम बम के धमाके से हिरोशिमा में बदलने की साजिश थी

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

परमाणु तकनीक की तस्करी और चोरी के बल पर पाकिस्तान के लिए एटम बम के, जिसे "इस्लामिक बम" भी करार दिया जाता है, निर्माता पाकिस्तानी वैज्ञानिक डाक्टर अब्दुल कादिर खाँ ने जो रहस्योदघाटन शनिवार को इस्लामाबाद में देश के परमाणु ताकत बनने के मौके पर आयोजित "यौम-ए-तकबीर" रैली में किया कि 1984 में हम कहूटा से दिल्ली को पाँच मिनट के भीतर टारगेट करने जा रहे थे पर ऐन समय में पाकिस्तान के सैन्य शासक तानाशाह जियाउल हक ने इजाजत नहीं दी, कहीं से गलत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उसी साल हम न्यूक्लीयर टेस्ट करना चाहते थे मगर जिया साहब ने यह कहते हुए रोक दिया कि टेस्ट करने से अमेरिका सहित सभी देश हमारी आर्थिक मदद रोक देंगे।

मोदी सरकार के दो साल

देवेन्द्र शास्त्री :

आप ने सुना? पढ़ा? विपक्ष ने आरोप लगाया? किसी अखबार ने रिपोर्ट किया, किसी टीवी ने कहा?

अपनी भूमिका पर पुर्नविचार करें राष्ट्रीय दल

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

अब जबकि आधे से ज्यादा भारत क्षेत्रीय दलों के हाथ में आ चुका है तो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे नए सिरे से अपनी भूमिका का विचार करें। भारत की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, दोनों प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियाँ और भारतीय जनता पार्टी आम तौर पर पूरे भारत में कम या ज्यादा प्रभाव रखती हैं। उनकी विचारधारा उन्हें अखिल भारतीय बनाती है भले ही भौगोलिक दृष्टि से वे कहीं उपस्थित हों, या न हों।

विधानसभा चुनाव नतीजे कांग्रेस और लेफ्ट को करारा तमाचा

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों से एक बात बिल्कुल साफ है कि देश की जनता अब कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों से पक चुकी है। उन्हें समझ में आ गया है कि ये दोनों एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं और इनके बीच पति-पत्नी जैसा रिश्ता है। इनके दिन के झगड़े का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि रात में इन्हें साथ ही रहना है। इसलिए इन दोनों को जनता मजबूरी में अब सिर्फ वहीं चुन रही है, जहाँ उनके पास कोई तीसरा विकल्प नहीं है।

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