कौन उलझा रहा है मोदी को विवादों में?

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शिव ओम गुप्ता :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चंद दिनों के अंदर अपने दल के सांसदों को सँभल कर बोलने की नसीहत देनी पड़ गयी। मंगलवार 16 दिसंबर को भाजपा के संसदीय बोर्ड की बैठक में उन्होंने सांसदों को सचेत किया कि वे ‘लक्ष्मण रेखा’ पार न करें।

मगर सवाल है कि भाजपा के ही कुछ लोग नरेंद्र मोदी जैसे शक्तिशाली नेतृत्व की सख्त चेतावनियों को नजरअंदाज करके ‘लक्ष्मण रेखा’ पार करने की हिमाकत कैसे कर रहे हैं?

क्या कोई ऐसा गुट है जो मोदी के एजेंडा को ताक पर रख कर पार्टी और सरकार को ऐसे समय पर बेवजह विवादों में उलझा देना चाहता है, जब स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने बेहतर प्रशासन देने और अर्थव्यवस्था की हालत पटरी पर लाने को सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता बना रखा है?

या फिर यह एक सोचा-समझा दोतरफा खेल है, जिसमें एक तरफ मोदी स्वयं तो स्वच्छ और सक्षम सरकार चलाते दिखना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ भाजपा हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को भी गरमाये रखना चाहती है?

‘देश मंथन’ ने इन सवालों को भाजपा प्रवक्ताओं के सामने रखा तो उन्होंने किसी खेमेबंदी या दोतरफा रणनीति से इन्कार किया।

लेकिन अगर हाल के विवादों को लेकर उठे सवाल बेमानी हैं, तो स्वयं प्रधानमंत्री को लक्ष्मण रेखा के बारे में सचेत क्यों करना पड़ा है? उन्हें अपने ही दल के सांसदों को इतनी जल्दी दूसरी बार चेतावनी क्यों देनी पड़ी है?

भाजपा प्रवक्ता एमजे अकबर सफाई देते हैं कि जो भी हो रहा है उसमें कुछ ही लोग हैं। हालाँकि वे मानते हैं कि यह सही नहीं है, लेकिन उनका कहना है कि मोदी का एजेंडा विकास और नौकरियों का ही है।

अकबर कहते हैं, “वे (मोदी) हर जगह रोज बोलते रहते हैं कि हम सरकार चलाने आये हैं। उनका मुद्दा विकास का ही है, वही रहेगा और वे बार-बार यही कहते हैं। उन्होंने टोक दिया है, कह दिया है लोगों को कि आप ऐसे बात न कीजिए।”

भाजपा के एक अन्य प्रवक्ता नलिन कोहली कहते हैं कि कुछ लोगों के व्यक्तिगत बयान भले ही आये हैं, पर पार्टी का एजेंडा वही है जो पहले था। कोहली के शब्दों में, “ये बयान भारत सरकार के बयान नहीं हैं। दोनों सदनों में भाजपा के 300 से अधिक सांसदों में से 4-5 लोग अगर ऐसे बयान दें तो इससे पूरी पार्टी की सोच नहीं दिखती है। जहाँ-जहाँ ऐसे बयान आये हैं, वहाँ या तो बयान के ऊपर खेद जताया गया है या उन बयानों पर टिप्पणी भी आयी है।

बकौल कोहली, मैं इनमें ऐसा कोई खास रुझान नहीं देखता, जैसा कुछ विरोधी दल देखना चाहेंगे कि भाजपा का एक एजेंडा है। सरकार मोदी जी के नेतृत्व में काम करती जा रही है। सरकार ने कभी भी नहीं कहा कि यह उसका एजेंडा है।बयान अगर आये हैं तो उन पर निंदा भी हुई है। कई लोगों ने माफी भी माँगी है।”

जहाँ तक पार्टी के अंदर खींचतान की बात है, कोहली इस सवाल को सीधे गोल करते हुए ऐसी किसी बात की जानकारी से इन्कार करते हैं। वे कहते हैं, “यह जो माँग की जाती है कि मोदी जी हर चीज के लिए समर्थन करें या खंडन दें, ऐसा मॉडल मैंने भारत में पिछले 30 सालों में तो देखा नहीं है। क्या प्रधानमंत्री का पूर्ण रूप से यही काम है कि प्रवक्ता के रूप में खंडन करें? ऐसी अपेक्षा मोदी जी से वही लोग रख सकते हैं, जिन्हें लगता है कि मोदी जी काम में नहीं लगे हैं और इन्हीं बातों के लिए बैठे हुए हैं।”

मगर इतना स्पष्ट है कि भाजपा के प्रवक्तागण इन सवालों पर असहज हैं। एम. जे. अकबर ने अपनी बेहद संक्षिप्त टिप्पणी के बाद आगे कुछ कहने से मना कर दिया। नलिन कोहली ने भी गिने-चुने सवालों के बाद जवाब दे दिया कि मुझे जितना कहना था वह मैंने कह दिया है।

(देश मंथन, 18 दिसंबर, 2014)

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