अपने कर्म सुधार लें

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी दीदी की सास ने दीदी को बहुत तकलीफ दी थी। इतनी कि दीदी बिलख उठती थी। दीदी जब भी अपनी बात किसी को बताने की कोशिश करती, तो कोई यकीन नहीं कर पाता कि सचमुच उसके साथ ऐसा हुआ होगा। हम जब भी दीदी के घर जाते, उसकी सास हमें बहुत विनम्र और समझदार नजर आती। 

दीदी की शादी जब हुई थी, तब मेरी उम्र बहुत कम थी। इसलिए मुझे तो बहुत समय तक पता ही नहीं चला कि दीदी को किस तरह की तकलीफ हुई होगी। उसने अपनी कहानी कई लोगों से कहने की कोशिश की थी, पर लड़की जब एक बार ब्याह दी जाती है तो उसकी कौन सुनता है? सबने उसे जिन्दगी के साथ तालमेल बिठाने की ही सलाह दी थी। 

पर जब बहुत साल बीत गये, तो सुनने में आया कि दीदी की सास बहुत बीमार हो गयी हैं। 

मैं उनकी बीमारी के दिनों में एक बार उनके घर गया था। उनका चेहरा अजीब सा हो गया था। मुझे नहीं पता कि उन्हें बीमारी क्या थी, पर वो एक कमरे में जमीन पर पड़ी रहतीं और जो भी उनसे मिलने जाता, उनकी स्थिति देख कर शोक में डूब जाता। 

***

कल मैंने टीवी सीरियल वाली एक लड़की उफक की कहानी आपको सुनानी शुरू की थी। मेरी दीदी जितनी ही जहीन, उतनी ही लंबी, उतनी ही खूबसूरत उफक की कहानी को मैं पूरी शिद्दत से देखता रहा। 

उफक की सास उसे लगातार परेशान करती रहीं। सास ने आखिर में उफक को पागल करार दे दिया और बेटे की दूसरी शादी भी करा दी। 

उफक बिलख कर रह गयी। यहाँ तक तो कहानी मैंने आपको कल सुनाई ही थी। फिर मेरी कहानी आगे बढ़ कर ये बयाँ करने लगी कि किसी ने उसकी कहानी के सच को समझने की कोशिश नहीं की। यहाँ तक कि उफक के पति ने भी मान लिया कि उफक पागल है, बददिमाग है। माँ पर उसे पूरा यकीन था। माँ ने अपने षडयंत्रों से साबित कर दिया था कि सारा कसूर उफक का है। 

जिन्दगी टीवी पर इस सीरियल को देखते हुए मेरे मन में अक्सर ये सवाल उठता था कि आखिर उफक का होगा क्या? 

मेरे मन के एक कोने में उफक की कहानी के साथ-साथ दीदी की कहानी भी चलती रहती। 

उफक का पति अपनी पत्नी को पागल करार कर छोड़ देता है, तो कुछ पल के लिए मुझे लगा कि जिन्दगी और सीरियल में अंतर होता है। मैं मन ही मन सोचने लगा था कि उफक की कहानी का अंत कुछ अलग होगा। दीदी दुख सहती रही, पर शादी तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। पति के हाथों शोषित होती रही, सास का दुख सहती रही, पर उसे सिर्फ ईश्वरीय न्याय पर यकीन करना पड़ा। 

लेकिन यहां तो उफक को घर छोड़ कर मायके आना पड़ गया।

उफक के साथ जो हो रहा था, उसमें मैं बहुत भीतर तक समाहित हो गया था। शायद दीदी की वजह से ही, पर मैं लड़कियों पर होने वाले अत्याचार से भीतर तक आहत हो जाता हूँ। पर यहाँ तो बात एक काल्पनिक कहानी की थी। पर मेरा मन अटका था, ‘शहर ए अजनबी’ की नायिका की किस्मत के उस पक्ष को जानने में, जो अभी गुप्त था। 

आखिर क्या होगा? क्या होगा उफक का? क्या होगा उसकी सास का? 

क्या यह सब सिर्फ कहने की बातें हैं कि बुरे काम का नतीजा बुरा होता है। क्या हमने जिस ईश्वरीय विधान की कल्पना की है, उसके कोई मायने नहीं होते? 

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परसों यह सीरियल खत्म हो गया। 

आप में से जिन लोगों ने इस सीरियल को देखा है, उन्हें तो पूरी कहानी पता होगी ही। जिन्होंने इस सीरियल को नहीं देखा, उनके लिए मैं इसे आगे बढ़ा कर बता दूँ कि उफक की सास ने अपने बेटे की दूसरी शादी बहुत अमीर घर में कर दी। इत्तेफाक से जिस लड़की से उफक के पति की शादी हुई, वो लड़की उफक की बचपन की सहेली थी। उसे जब सच का पता चलता है, तो वो बहुत आहत होती है। वो अपनी सास और शौहर से नफरत करने लगती है। इसी बीच उसे बच्चा होता है। डॉक्टर कहते हैं कि बच्चा नॉर्मल नहीं है। 

बच्चा नॉर्मल नहीं है, यह सुन कर उसकी सास अपना दिमागी संतुलन खो बैठती है। वो पागल हो जाती है। अपने पागलपन में बुदबुदाती है कि उसने अपनी बहू उफक के लिए यही तो कहा था कि वो नॉर्मल नहीं है। 

***

मुझे ज्यादा नहीं पता, पर सुना है कि दीदी की सास भी पागल हो गयी थीं। वो बंद कमरे में खुद को कोसतीं। जो जाता, उससे कहतीं कि उनके गुनाहों की सजा उन्हें मिल रही है। और एक दिन ऐसे ही जमीन पर रेंगते-रेंगते वो इस संसार से चली गयीं। 

परसों रात जब उफक की सास का वही हश्र मैंने देखा तो मुझे यकीन हो गया कि जिन्दगी हो या कहानी, ईश्वरीय विधान होता है। 

मुझे यकीन हो गया कि आदमी को अपने कर्मों का हिसाब चुकाना पड़ता है। हम दुनिया से छुप सकते हैं, पर खुद से नहीं। दीदी की सास से जो मिलने जाता, उसके सामने वो खुद ही बुदबुदातीं कि उन्हें उनके कर्मों की सजा मिल रही है। उफक की सास भी अपने मिलने वालों से यही बुदबुदाती दिखीं कि उन्हें उनके कर्मों की सजा मिली है। 

कहानियाँ इसलिए सुनाई जाती हैं, ताकि हम अपने कर्म सुधार लें। जो नहीं सुधारते, उन्हें बाद में बुदबुदाना ही पड़ता है। वहाँ देर हो सकती है, पर अंधेर नहीं है।

(देश मंथन, 07 मार्च 2016)

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