संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
देखो मैंने देखा है ये एक सपना, फूलों के शहर में है घर अपना
क्या समाँ है, तू कहाँ है, मैं आई आई आई आई, आजा…।”
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जब मैं स्कूल में था तब यह फिल्म आयी थी। फिल्म का नाम था लव स्टोरी। कुमार गौरव और विजयेता पंडित इस फिल्म में थे। फिल्म खूब चली थी, पर हीरो और हीरोइन दोनों नहीं चले थे। दोनों ने एक दो और फिल्मों में किस्मत आजमाने की कोशिश की पर नहीं चले।
कई साल बीत गये। हम दोनों को भूल गये।
पर अभी कुछ दिन पहले अखबारों में खबर छपी कि विजयेता पंडित बहुत परेशान हैं और काफी आर्थिक तंगी से गुजर रही हैं। उनके संगीतकार पति आदेश श्रीवास्तव कैंसर से जूझ रहे हैं और गंभीर अवस्था में हैं। मैं विजयेता पंडित से कभी नहीं मिला। लेकिन आदेश श्रीवास्तव से कई बार मिला हूँ। आदेश बेहद हंसमुख, सरल और सहज इंसान हैं। पिछले साल मेरी उनसे लंबी मुलाकात हुई थी। वो कई नये गानों पर काम कर रहे थे। साल 2011 में जिस कैंसर ने उनपर हमला किया था, उससे वो बाहर निकल आये थे और उन बहादुरों की सूची में शामिल हो चुके थे, जिन्होंने अपने जीने की चाहत से कैंसर को मात दे दी है।
आदेश बहुत मुश्किल घड़ी से निकल कर जिन्दगी की रफ्तार के साथ ताल और लय मिला ही रहे थे कि मनहूस कैंसर ने दुबारा उन पर हमला किया और उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन अस्पातल में भर्ती होना पड़ा।
इस बार की उनकी बीमारी में ही किसी पत्रकार से उनकी पत्नी विजयेता पंडित ने बताया कि कैंसर ने पूरे परिवार को तोड़ कर रख दिया है। उन्हें रोज कोई जीवन रक्षक इंजेक्शन लगता है, जिसकी कीमत 12 लाख रुपये होती है। जाहिर है, कोई भी टूट जायेगा। न सिर्फ मन से, बल्कि तन से और धन से भी।
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मुझे याद है कि मेरी माँ की बीमारी में भी मेरे पिताजी की जीवन भर की कमाई साल भर में खत्म हो गई थी। मैं उस दर्द को महसूस कर सकता हूँ। मैं समझ सकता हूँ कि लव स्टोरी वाली लड़की जिसने फूलों के शहर में घर होने की कल्पना की थी, उसने अपने मन पर कितने मन पत्थर रख कर कहा होगा कि वो टूट चुकी है। उसने कितनी हिम्मत से यह कहा होगा कि रोते-रोते उसके चेहरे का रंग उड़ गया है।
मैं जानता हूँ कि किसी के प्रेम पर जब जुदाई की चोट लगती है, तो वो किस हद तक टूट जाता है।
हालाँकि विजयेता पंडित की फिल्म लव स्टोरी का अंग्रेजी वाले उपन्यास लव स्टोरी से कोई लेना देना नहीं था, पर आज उनकी जिन्दगी उसी अंग्रेजी वाली लव स्टोरी के इर्द-गिर्द घूम रही है, जिसमें कहानी की नायिका को कैंसर हो जाता है और उसका प्रेमी उसकी इस बीमारी की खबर से टूट जाता है।
जिन दिनों हम किशोर हुआ करते थे, हमारे लिए लव स्टोरी नामक उपन्यास किसी धर्म-ग्रंथ से कम नहीं हुआ करता था। कहानी बहुत साधारण थी लेकिन बहुत असाधारण ढंग से लिखी गयी थी। एक लाइब्रेरी में एक लड़का और लड़की की मुलाकात होती है और फिर दोनों में प्यार हो जाता है। दोनों जीवन जीने की तैयारी करते ही हैं कि लड़की को कैंसर हो जाता है। और फिर उसके आगे के पन्नों पर छपे अक्षर मैंने धुंधले ही पढ़े हैं, क्योंकि उन पर आँसुओं की इतनी बूंदें गिरी होती थीं उसे आसानी से पढ़ पाना संभव नहीं होता था।
बाद में इसी लव स्टोरी पर हिन्दी में फिल्म बनी थी- अँखियों के झरोखों से।
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जब मैं अखबार में विजयेता पंडित की तकलीफ के विषय में पढ़ रहा था कि कैसे उनके पति की बीमारी ने पूरे परिवार को तोड़ दिया है, तो मैं खुद को उनके बेहद करीब पा रहा था। मेरी माँ बीमार थी और कैसे पिताजी भीतर तक तड़पते थे, अपने जीवन साथी की तकलीफ में। मैं छोटा था, लेकिन माँ की बीमारी में मैं उनके सबसे करीब था। मैंने अपने मजबूत पिताजी को न जाने कितनी बार छुप-छुप कर रोते हुए देखा था। मैं समझ सकता हूँ कि सचमुच कैसे रोते- रोते विजयेता पंडित का चेहरा बिगड़ गया होगा।
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मेरी माँ जब बहुत बीमार हो गयी थी, तब डॉक्टरों ने पिताजी से कहा था इन्हें दवा से अधिक दुआ की जरूरत है। आप सब लोग दुआ कीजिए। दुआओं में बहुत असर होता है। हमने माँ के लिए दुआ की। माँ साल भर तक खुश-खुश हमारे साथ रही। फिर हमारी दुआओं का असर खत्म हो गया। तब हम बहुत कम लोग थे।
पर आज मैं आप सबसे अनुरोध कर रहा हूँ कि आप भी लव स्टोरी वाली हीरोइन के पति के लिए दुआ कीजिए। आज हमारा बहुत बड़ा परिवार है। आज मैं पोस्ट नहीं लिख रहा। आज मैं कहानी भी नहीं लिख रहा। आज मैं सिर्फ दुआओं का असर महसूस करना चाह रहा हूँ। आज हमारा 15 हजार लोगों का परिवार है। हम दो लोगों ने अपनी दुआओं के बूते माँ को साल भर खुश रखा। हिसाब लगा लीजिए हम 15 हजार लोग एक कलाकार, एक प्रेमी, एक पिता, एक पति को कितनी खुशियाँ अपनी दुआओं से दे सकते हैं। आज हम चाहें तो अपनी दुआओं का असर किसी पर होते देख सकते हैं, न सिर्फ आदेश पर, बल्कि उन सभी पर जो अकारण इस बीमारी की चपेट में फँस गये हैं।
याद रखिए, कलाकारों का कोई नहीं होता। वो सबके होते हैं।
विजेता पंडित ने बहुत दुखी हो कर कहा है कि मुश्किल की इस घड़ी में कोई उनके पति के साथ नहीं खड़ा है। वो भी नहीं, जो उनके लिए जीने और मरने की कसमें खाया करते थे। जिनके लिए उनके पति ने न जाने क्या-क्या किया है। जब तक उनका सितारा बुलन्दी पर था, सब उनके साथ थे। उनके संगीत पर थिरकने वालों में से किसी के पास उनकी बंद होती धड़कनों को सुन पाने का वख्त नहीं है।
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यह मत भूलिएगा कि जीवन कुछ नहीं होता। जीवन बस एक तैयारी होती है। तैयारी मौत की परीक्षा की।
(देश मंथन 04 सितंबर 2015)