विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
पुणे के यरवदा इलाके में स्थित आगा खाँ पैलेस, देश के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास बताने वाले प्रमुख स्मृति स्थलों में से एक है। मुख्य सड़क पर स्थित यह विशाल इमारत ब्रिटिश सत्ता से भारत के संघर्ष की कहानी सुनाता है। आगा खाँ पैलेस इसलिए खास है क्योंकि बापू ने यहाँ गिरफ्तारी (नजरबंदी) का लंबा वक्त गुजारा, साथ ही बापू के दो प्रिय लोग इसी इमारत में उनका साथ छोड़ गये।
पहले उनके निजी सचिव महादेव भाई देसाई और फिर जीवन के हर उतार-चढ़ाव में उनका साथ निभाने वाली उनकी जीवन संगिनी कस्तूरबा गाँधी। 22 फरवरी 1944 का दिन था जब बा इस दुनिया से कूच कर गयीं। आगा खाँ पैलेस में बापू व्यक्तिगत तौर पर दो बार टूटते हुए प्रतीत हुए। आज पैलेस की बगिया में आप बा और महादेव भाई देसाई की समाधि साथ-साथ देख सकते हैं।
आगा खाँ महल का निर्माण
आगा खाँ पैलेस का निर्माण 1892 में खोजा इस्माइली धर्म गुरु सुल्तान मोहम्मद शा आगा खाँ ने करवा था। वास्तव में महल का निर्माण आसपास के सूखा पीड़ित गाँव के लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से करवाया गया था। निर्माण में एक हजार लोगों को रोजगार मिला। उन्हें भरपूर मजदूरी दी गयी। तब महल के निर्माण में 12 लाख रुपये खर्च किये गये। 1969 में प्रिंस करीम शाह अल हुसैनिम आगा खाँ चतुर्थ जब भारत आए तो उन्होंने यह इमारत और इसके चारों तरफ की जमीन गाँधी जी के यादगारी के तौर पर गाँधी स्मारक निधि और भारत सरकार को दान में दे दी।
दो साल तक बापू रहे यहाँ
9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के ऐलान के बाद महात्मा गाँधी को मुंबई में गिरफ्तार कर लिया गया। 10 अगस्त 1942 को बापू, कस्तूरबा गाँधी और उनके सचिव महादेव भाई देसाई समेत कई नेताओं को पुणे के इस आगा खाँ पैलेस में ला कर रखा गया। बापू यहाँ 6 मई 1944 तक नजरबंद रहे। ये महल बापू से जुड़ा असाधारण स्मारक है। यहाँ पर उन कमरों को देखा जा सकता हैं जहाँ बापू रहते थे। बापू के जीवन में इस्तेमाल की गयीं कई वस्तुएँ बरतन, कपड़े माला, चप्पल आदि यहाँ देखी जा सकती हैं। अब आगा खाँ पैलेस के कई कमरों को सुंदर संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। 30 मार्च 2003 को भारत सरकार ने आगा खाँ पैलेस को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर दिया।
महादेव भाई को अपना उत्तराधिकारी मानते थे बापू
15 अगस्त 1942 को महादेव भाई देसाई को दिल का दौरा पड़ा और अचानक ही वे चल बसे। दिन वही था जिस दिन पाँच साल बाद देश आजाद हुआ। अपने प्रिय सचिव के निधन पर बापू काफी अंदर तक व्यथित हुए। ऐसा उनके पत्र से लगता है। सरोजनी नायडू और महादेव भाई ब्रिटिश अधिकारी से शिकायत कर रहे थे कि उन्हे अखबार आदि नहीं मिल रहे हैं। इसी दौरान महादेव भाई को दिल का दौरा पड़ा। 10 नवंबर 1942 को बापू लिखते हैं – महादेव को मेरा वारिस होना था। पर मुझे उसका वारिस होना पड़ा है। महादेव की समाधि पर जाना मेरा बिल्कुल सहज बन गया है। मैं न जाऊँ तो बेचैन हो जाऊँ। ….अगर मैं जिंदा रहा तो यह जमीन आगा खाँ से माँग लूँगा। वह न दे यह संभव हो सकता है। पर किसी दिन तो हिंदुस्तान आजाद होगा। तब यह यात्रा का स्थान होगा। हो सकता है मेरी जिंदगी में यह जगह मुझे न मिल सके। और इस जगह को यात्रा स्थल बनते मैं न देख सकूँ मगर किसी न किसी दिन वह जरूर बनेगा। इतना मैं जानता हूँ। और बापू का सोचा हुआ सच हुआ। एक दिन आगा खाँ पैलेस संग्रहालय और पर्यटक स्थल में तब्दील हो गया।
और एक दिन बा भी छोड़ गयीं
मुख्य भवन के बायीं तरफ बाग में महादेव भाई देसाई की समाधि है। उसके बगल में कस्तूरबा गाँधी की समाधि बनायी गयी है। 22 फरवरी 1944 को बा का निधन हुआ उस दिन महाशिवरात्रि का त्योहार था। बापू एक बार फिर दुख के सागर में डूब गये। बा के शव के पास बापू घंटों चुपचाप बैठे उन्हें देखते रहे। बापू के साथ यहाँ सरोजनी नायडू भी नजरबंद की गयीं थीं पर खराब सेहत के कारण उन्हें 19 मार्च 1943 को रिहा कर दिया गया। आगा खाँ पैलेस में बापू के साथ मीरा बेन, प्रभावती नारायण भी नजरबंद थीं।
कैसे पहुँचे
आगा खाँ पैलेस पुणे में नगर रोड पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से तकरीबन 4 किलोमीटर की दूरी पर है। आप बस, आटो आदि से नगर रोड पर जा सकते हैं। पैलेस पुणे की ऐतिहासिक यरवडा जेल से ज्यादा दूर नहीं है। यहाँ गाँधी म्युजियम और कस्तूरबा गाँधी और महादेव भाई देसाई की समाधि है। प्रवेश टिकट पाँच रुपये का है। विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट 100 रुपये का है। आगा खाँ पैलेस में एक कैंटीन भी है। साथ ही परिसर में कुटीर उद्योग की बनी वस्तुएँ भी आप यादगारी के तौर पर खरीद सकते हैं। कई एकड़ में फैला परिसर काफी हरा-भरा है।
(देश मंथन, 05 अप्रैल 2016)