जल संरक्षण का अदभुत नमूना – अग्रसेन की बावड़ी

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

राजधानी दिल्ली के भूली बिसरे दर्शनीय स्थलों में से एक है अग्रसेन की बावली। उक लोग इसे उग्रसेन की बावली भी कहते हैं। बावली मतलब बावड़ी यानी जल संग्रह का अनूठा तरीका।

ऐतिहासिक तौर पर यह बावड़ी 14वीं सदी की है। पर यह बावड़ी चर्चा में तब आई जब फिल्म पीके में इसे आमिर खान के अस्थायी निवास के तौर पर दिखाया गया। अब यहाँ हर रोज हजारों लोग पहुँचते हैं। छुट्टी वाले दिन तो बावड़ी दिन भर गुलजार रहती है। पीके ने इसे दिल्ली के टूरिस्ट मानचित्र पर ला दिया है। पर यह बावड़ी विश्व विरासत के स्थल में शामिल गुजरात के रानी के बाव से कुछ कम नहीं है।

दिल्ली के इस अग्रसेन की बावडी कहानी रोचक स्मारक है। शहर की ऊंची और आधुनिक इमारतों के बीच यह बावड़ी ज्यादातर लोगों को दिखाई नहीं देती। इसलिए कम लोग ही इस ऐतिहासिक सीढीदार कुएं के बारे में जानते हैं। वास्तव में अग्रसेन की बावली, एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं।

पारसी स्थापत्य की झलक

बावली की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुगलक और लोदी काल की दिखाई देती है। कहा जाता है कि इसे अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने 14वीं सदी में बनवाया था। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह बावड़ी महाभारत कालीन है। 14वीं सदी में सिर्फ इसे नया रूप दिया गया। इमारत की मुख्य विशेषता है कि यह उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लम्बी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है। इस बावली में सीढ़ीनुमा कुएं में करीब 105 सीढ़ियाँ हैं। इसके स्थापत्य में ‘व्हेल मछली की पीठ के समान’ छत इसे खास बनाता है। इस बावड़ी का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है। अनगढ़ और गढ़े हुए पत्थर से बनी यह दिल्ली की बेहतरीन बावड़ियों में से एक है। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अभी भी अच्छे हाल में है। हालांकि अब इसमें पानी नहीं दिखाई देता। 

साल 2012 में डाक टिकट 

सन 2012 में भारत के डाक विभाग ने अग्रसेन की बावली पर डाक टिकट भी जारी किया। कहा जाता है कि जमाने मं यहाँ पर नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग तैराकी सीखने के लिए भी आते थे।

अग्रसेन की बावली में पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद भी है। किसी जमाने में इस बावड़ी में पानी एकत्रित किया जाता था। यह पाँच स्तरों पर होता था। बावड़ी में चार मंजिले साफ देखी जा सकती हैं। आजकल बावड़ी में पानी नहीं है, और बड़ी संख्या में यहाँ कबूतरों और चमगादड़ और बिल्लियाँ दिखाई देती हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण,   दिल्ली मंडल इन दिनों बावड़ी के संरक्षण में लगा है। बेहतर हो कि इसमें फिर से पानी लाने का इंतजाम किया जाये।

कैसे पहुँचे 

अगर आप दिल्ली में हैं तो इसे जरूर देखें। कहाँ है… दिल्ली के दिल कनाट प्लेस से कस्तूरबा गाँधी मार्ग पर चलें। टायल्सटाय मार्ग चौराहा से आगे बायीं तरफ हेलीरोड में मुड़े। फिर हेली लेन में बायीं तरफ मुड़े। बस पहुंच गए ना…

(देश मंथन,  05 अप्रैल 2017)

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