संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे नहीं पता कि ये मुहावरा किसने गढ़ा होगा कि जो जीता वही सिकंदर।
दरअसल सिकंदर जीता ही नहीं था। पोरस के साथ जिस महान युद्ध में सिकंदर के जीतने की कहानी प्रचलित हैं, वो झूठी है। युद्ध में पोरस जीता था। और अगर पोरस हार गया होता, तो मगध पर सिकंदर का कब्जा होता। पर मगध पर सिकंदर का कभी कब्जा नहीं हुआ और इतना काफी है, यह बयाँ करने के लिए कि सिकंदर पोरस से जीता नहीं बल्कि हारा था।
मैंने कॉलेज के दिनों में अपने इतिहास के टीचर से पूछा था कि किताब में हर जगह सिकदंर के जीतने की कहानी दर्ज है, पर पढ़ते हुए लगता है कि सिकंदर हार गया था।
टीचर की आँखें चमकी थीं। उनके एक अच्छे विद्यार्थी ने एक ऐसा सवाल पूछ लिया था, जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी।
पर उन्होंने मुझे बताया कि यही सत्य है कि सिकंदर युद्ध में हार गया था। पर सिकंदर हार कर भी जीत गया था।
“हार कर जीत गया था? कैसे?”
“हार के बाद सिकंदर की सोचने की दिशा बदल गयी थी, इसलिए।”
“आप मुझे पूरी बात बतलाइए।”
“सिकंदर विश्व विजेता बनने का ख्वाब लेकर भारत पहुँचा था। उसे अपनी तलवार पर बहुत भरोसा था। उसे लगता था कि वो संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है और एक दिन वो दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेगा। वो लगातार जीतता चला आ रहा था। उसकी जीत से प्रभावित इतिहासकार यह मानने को तैयार ही नहीं हुए कि भारत में पोरस के साथ युद्ध में सिकंदर हार गया और पोरस जीत गया। जाहिर है, सिकंदर ने हारने के बाद भी पूरी परिस्थिति को कुछ इस तरह प्रचारित कराया कि यह बात फैल गयी कि सिकंदर युद्ध जीत गया है।
पर यह सिकंदर की जीत नहीं थी। सिकंदर की असली जीत शुरू होती है, युद्ध में हारने के बाद। सिकंदर ने उस हार के बाद बहुत सोचा कि आखिर युद्ध से उसे हासिल क्या हुआ? हार? नहीं, हार का उसे गम नहीं था। पर पहली बार उसे अहसास हुआ कि युद्ध से आदमी कुछ हासिल नहीं करता। और यही वो पल था जिसने उसकी सोचने की दिशा बदल दी।
सिकंदर बहुत कम उम्र में बीमार पड़ गया और एक शाम मर गया।
मरने के बाद जब उसकी अर्थी अंतिम संस्कार के लिए ले जाई जा रही थी, तब उसके दोनों हाथ अर्थी से बाहर लटक रहे थे। ऐसा सिकंदर की खुद की इच्छा के तहत किया गया था।
हजारों लोगों की भीड़ सिकंदर के शव को देखने के लिए घरों से बाहर निकल आयी थी। सब के सब हैरान थे कि सिकंदर के दोनों हाथ अर्थी से लटका कर क्यों रखे गये हैं?
भीड़ में से किसी ने पूछा भी कि इतने बड़े योद्धा के हाथ इस तरह हवा में लटका कर क्यों उसका अपमान किया जा रहा है?
जो लोग उसके शव को लेकर नगर में चल रहे थे, उन्होंने बताया कि यह सिकंदर की ही इच्छा थी। उसकी इच्छा का मान रखा गया है।
आखिर सिकंदर ने ऐसा क्यों चाहा?
मरने से पहले सिकंदर ने अपनी यह इच्छा अपने एक साथी को बताई थी कि जब अंतिम क्रिया के लिए उसके शव को ले जाया जाए तो उसके दोनों हाथ बाहर लटका दिए जाएँ, ताकि दुनिया देख सके कि सिकंदर इस संसार में खाली हाथ आया था और खाली हाथ जा रहा है। सिकंदर विश्व विजेता बनने का ख्वाब लेकर पूरी जिंदगी युद्ध में लिप्त रहा, पर जिन्दगी की हकीकत इन बातों से जुदा थी। उसने समझ लिया था कि दुनिया में कोई भी किसी भी युद्ध से कुछ नहीं पाता।
और अपने शव के दोनों हाथ हवा में लटका कर अंतिम यात्रा पर निकलने की उसकी इसी इच्छा ने उसे हार कर भी जीता हुआ साबित कर दिया।
उसने दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की कि इस संसार में कोई भी न कुछ लेकर आता है, न कुछ लेकर जाता है। आदमी खाली हाथ आता है, खाली हाथ जाता है।
बस यहीं से दुनिया की निगाहों में कभी अत्याचारी और घमंडी रहा सिकंदर जीत का पर्याय बन गया और जिस युद्ध में वो सचमुच हार गया था, उस हार को भी लोगों ने अपने मन की किताब में सिकंदर की जीत के रूप में दर्ज कर लिया।
और मुहावरा चल पड़ा कि जो जीता वही सिकंदर।
सचमुच जो जीता वही सिकंदर है, लेकिन तब जब वो इस अहसास को जीने लगा हो कि आदमी खाली हाथ आता है, खाली हाथ जाता है। जो इस सत्य को समझ जाता है, वो जीत जाता है। और जो जीत जाता है, वो सिकंदर कहलाता है।
(देश मंथन, 01 जून 2016)