संजय सिन्हा :
इस बार फिल्म ‘शमिताभ’ के लिए जब अमिताभ बच्चन से मेरा मिलना हुआ था, तब मेरे मन में एक सवाल था, जो मैं उनसे पूछना चाहता था। दरअसल ये सवाल बहुत दिनों से मेरे मन में था, जिसे मैं पूछना चाहता था।
इस बार जब अमिताभ का इंटरव्यू पूरा हो गया और मैं उनसे अलग से बात करने लगा तो मैंने बहुत धीरे से उनसे अपना सवाल पूछा।
बहुत साल पहले मैंने मृणाल सेन की एक फिल्म ‘भुवन शोम’ देखी थी। मुझे नहीं पता कि आपमें से कितनों ने यह फिल्म देखी है, लेकिन जिन लोगों ने देखी होगी, उन्हें शायद याद हो कि फिल्म शुरू होती है नेपथ्य में फिल्म का परिचय देती हुई एक गूंजती भारी आवाज से। कुल एक मिनट की उस आवाज का परिचय पर्दे पर कराया जाता है, आवाज- ‘अमिताभ’।
ब्लैक एंड व्हाइट जमाने की इस फिल्म में अमिताभ बच्चन का पूरा नाम तक लिखने से निर्माता निर्देशक को परहेज रहा होगा, ऐसा सोचना मेरे लिए जरा मुश्किल था। मैं बहुत बार सोचता था कि कभी अमिताभ बच्चन से इस बारे में बात जरूर करुंगा। कई बार मिला, लेकिन मेरी हिम्मत ये पूछने की नहीं होती थी कि फिल्म ‘भुवन शोम’ में आपका परिचय कराते हुए मृणाल सेन से इतनी बड़ी भूल कैसे हुयी।
फिल्म में कुछ मिनट के लिए अमिताभ बच्चन की सिर्फ आवाज ली गयी है, हीरो उत्पल दत्त हैं। उत्पल रेलवे के अधिकारी बने हैं, जिनका नाम है भुवन शोम। भुवन के बस दो ही शौक हैं, शिकार खेलना और ईमानदारी।
ये फिल्म रेलवे के इसी अति ईमानदार शिकारी अधिकारी की कहानी है। इतना ईमानदार कि वह अकेलेपन में अपनी जिंदगी गुजारने को अभिशप्त है।
एक बार भुवन को एक टिकट बाबू के खिलाफ बेइमानी की शिकायत मिलती है। वो जाँच करने निकल पड़ते हैं। सौराष्ट्र के एक गाँव जाकर उन्हें उस टीटी के विषय में जाँच करनी है, और ये अच्छा मौका होता है, जब वो जाँच के साथ पंछियों का शिकार भी कर सकते हैं। भुवन निकल पड़ते हैं, अपनी बंदूक साथ लेकर।
गाँव में उन्हें एक लड़की मिलती है। बेटी की उम्र की लड़की, जिसका नाम गौरी है। गौरी से मुलाकात के बाद भुवन शोम की नीरस जिंदगी में खूब रस घुलता है। एक ऐसे आदमी की जिंदगी में प्यार के तार झंकृत होते हैं, जिसके प्यार के सारे तार उसकी ईमानदारी की बलि चढ़ चुके होते हैं। जाँच के बाद गाँव से चलते हुए भुवन शोम को पता चलता है कि जिस लड़की ने उन्हें गाँव में शिकार पर ले जाने में उनकी मदद की है, जिसने उनकी सूखी जिंदगी में प्यार के दो फूल खिलने दिये हैं, उस लड़की की शादी उसी बेइमान टीटी से होने वाली है, जिसकी जाँच के सिलसिले में भुवन उस गांव में पहुँचे हैं।
पूरा रेलवे महकमा जानता है कि भुवन जिसकी जाँच कर रहे हैं, उसकी नौकरी नहीं बचने वाली। उसे सजा हो कर रहेगी।
फिल्म में एक दृश्य है, जिसमें शिकारी शिकार से पहले आसमान में उड़ते पंछियों को देख कर ठहरता है। पहली बार शिकारी पंछियों की उड़ान देख कर आश्चर्य में पड़ जाता है। उसे खुद पर हैरानी होती है कि उसने इतने पंछियों का शिकार किया, तो क्या कभी उसने उड़ते हुए पंछियों को देखा ही नहीं।
एक शिकारी शिकार पर निकलता है, और वो शिकार नहीं कर पाता, लेकिन उसे कोई निराशा नहीं होती, बल्कि जब आखिरी में एक पंछी का शिकार कर लेता है तो घायल पंछी की तीमारदारी उसे कोमल जान और एक नये संसार से परिचित होने का मौका देती है।
और यहीं होता है आठवाँ आश्चर्य। एक अति ईमानदार अफसर एक बेइमान टीटी बाबू को माफ कर देता है। उसकी नौकरी बच जाती है।
फिल्म के बीच में कई बार अमिताभ नाम के व्यक्ति की आवाज कमेंट्री की तरह गूंजती है। वही भारी और गंभीर आवाज।
अमिताभ बच्चन यकीनन उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में घुस गए थे, लेकिन उनका नाम अमिताभ बच्चन पर्दे पर बड़ा और अजीब सा था।
मैं अमिताभ के सामने था। इंटरव्यू खत्म होने के बाद मैं उनसे बातें करने लगा। फिर मैंने कहा कि मेरे मन में दुविधा भरा एक सवाल है।
उन्होंने कहा, “पूछो।”
“फिल्म भुवन शोम में आपके नाम के साथ ‘बच्चन’ नहीं लिखने के पीछे कोई खास वजह?”
अमिताभ ने मेरी आँखों में झाँका। कुछ देर खामोश रहे। फिर उन्होंने कहा, “उन्हें लगता था कि ये नाम बहुत बड़ा है। नहीं चलेगा।”
मैं चुप रहा।
फिर उन्होंने कहा,” उन्हें तो लगता था कि अमिताभ नाम भी नहीं चलेगा। ये आदमी ही नहीं चलेगा। ऐसा बहुत बार होता है।”
मृणाल सेन से यकीनन भूल हुई होगी। ‘भुवन शोम’ देखते हुए मैं बार-बार रुकता, सोचता कि समय का पहिया अगर सचमुच पीछे किया जाए तो आदमी मुड़ कर देख सकता है कि किसी को पहचानने में उससे कितनी भूल हो सकती है।
हम सब से भूल होती है।
ये भूल जब सिनेमा में होती है तो सिर्फ कलात्मक या व्यावसायिक भूल होती है, लेकिन किसी को नहीं पहचानने की भूल जब जिंदगी में होती है, और कोई ‘अमिताभ’ अगर बाद में ‘अमिताभ बच्चन’ निकलता है, तो भूल करने वालों के पास उसे सुधारने का मौका नहीं होता।
क्या बेहतर होता जो हम सचमुच इस सच को समझ पाते कि किसी के नाम को छोटा करने से कोई छोटा नहीं हो सकता। जिस अमिताभ को ‘अमिताभ बच्चन’ बनना होता है, उसे कोई नहीं रोक सकता। कोई नहीं।
(देश मंथन, 18 फरवरी 2015)