विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी जिले के पेनुगोंडा स्थित वासवी धाम दक्षिण भारत में आर्य वासव समुदाय के लोगों का बड़ा तीर्थ स्थल है। पेनुगोंडा को वासवी माता की जन्म स्थली माना जाता है। यहाँ पर विशाल वासवी कन्या परमेश्वरी मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर परिसर में वासवी देवी की विशाल सुनहले रंग की मूर्ति है।
तेलगू साहित्य में कई जगह वासवी देवी की चर्चा आती है। वासवी देवी के मंदिर परिसर में नगरेश्वरस्वामी, कन्यापरमेश्वरी देवी और महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा है। मंदिर का निर्माण वास्तु के नियमों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। सड़क से मंदिर की तरफ जाते ही विशाल गोपुरम बना है। वासवी देवी की सुनहली प्रतिमा दूर से ही नजर आती है। जिस तरह बौद्ध मतावलंबियों के लिए बोध गया जैन लोगों के लिए श्रावणबेल गोला का महत्व है उसी तरह पेनुगोंडा का महत्व आर्य वैश्य लोगों के लिए है। दक्षिण के वैश्य लोग इसे अपनी काशी मानते हैं।
11वीं सदी में कुसुम शेट्टी वैश्य राजा हुआ करता था। उसकी राजधानी पेनुगोंडा में थी। उसकी पत्नी कुसुमांबा थी। इन दोनों को क्षेत्र में आदर्श माना जाता था। दोनों भगवान शिव के बड़े उपासक थे। वे इस बात से दुखी रहते थे कि उनकी राजकाज को आगे बढ़ाने के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उन्होंने अपनी चिंता अपने कुलगुरु भास्कर आचार्य से साझा की। उन्होंने पुत्र कामेष्ठि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ से भगवान प्रसन्न हुए और उन्हे प्रसाद में फल भेजा। उन्हे बताया गया कि प्रसादम ग्रहण करने पर उन्हें संतान होगी। प्रसादम लेने के बाद कुछ समय बाद कुसुमअंबा को गर्भ धारण हुआ। वसंत का मौसम था, कुसुमअंबा ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। एक बालक और एक बालिका। बालक का नाम विरुपक्ष और बालिका का नाम वासवीअंबा रखा गया। विरुपक्ष को आचार्य भास्कर ने शस्त्र विद्या और पुराणों आदि की शिक्षा दी। वहीं वासवी को कला और दर्शन शास्त्र की शिक्षा दी गयी। बड़े होने पर विरुपक्ष की अलुर के आरधी शेट्टी की बेटी से धूमधाम से शादी कर दी गयी।
जब राजा विष्णुवर्धन अपने राज्य विस्तार के लिए पेनुगोंडा की ओर पहुँचे तो राजा कुसुमा शेट्टी ने उनका स्वागत किया। इसी दौरान वासवी को देख कर विष्णुवर्धन उनपर मोहित हो गये। उन्होने राजा के पास वासवी से विवाह का संदेश भिजवाया। पर कुसुमा शेट्टी के लिए इसे स्वीकार करना मुश्किल था क्योंकि राजा विष्णुवर्धन पहले से विवाहित थे। कुसुमा शेट्टी के इनकार के बाद विष्णुवर्धन ने पेनुगोंडा पर आक्रमण कर दिया। राजा ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने 714 गोत्र के लोगों की बैठक बुलाई। इसमें से 102 गोत्र के लोगों ने सलाह दी कि हमें बहादुरी से लड़ना चाहिए। वहीं 612 की सलाह थी कि हमें विष्णुवर्धन के आगे हथियार डाल देना चाहिए। पर कुल गुरु की सलाह पर युद्ध लड़ कर सम्मान बचाने पर फैसला हुआ। पर इसी समय वासवी ने आगे आ कर कहा एक व्यक्ति के लिए इतने सारे लोग क्यों मारे जाएंगे। मैं आत्म बलिदान दूंगी। तब वासवी ने खुलासा किया कि मैं आदिपाराशक्ति देवी का रूप हूँ। जैसे वासवी देवी ने आत्मबलिदान दिया। राजा विष्णुवर्धन की खून की उल्टियों के साथ मौत हो गयी।
पेनुगोंडा में वासवी देवी का विशाल मंदिर निर्माणाधीन है। मंदिर परिसर में वासवी धर्मशाला है, जिसमें अतिथियों के निवास के लिए वातानुकूलित और समान्य कमरे उपलब्ध हैं। मंदिर में सालों भर अन्नदानम कार्यक्रम भी चलता है। मंदिर परिसर आसपास के लोगों को विवाह समारोह के लिए परिसर भी उपलब्ध कराता है। परिसर में हरियाली विराजती है। एक सुंदर सरोवर भी है। आसपास में नारियल के असंख्य पेड़ वातावारण को और भी सुंदर बनाते हैं।
कैसे पहुँचे
वासवी धाम पेनुगोंडा में कैनाल रोड पर स्थित है। पेनुगोंडा आंध्र के वेस्ट गोदावरी जिले में स्थित है। तानुकू रेलवे स्टेशन (TNKU) से वासवी धाम की दूरी 15 किलोमीटर है। राजामुंदरी रेलवे स्टेशन से तानुकू की दूरी 40 किलोमीटर है। दोनो शहरों से स्थानीय शेयरिंग बस टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
(देश मंथन 07 जून 2016)