संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मैं आपको जबलपुर में बैठ कर अनिता की कहानी सुनाऊँगा। फिर सुनाऊँगा फेसबुक पर किसी की भेजी वो कहानी जिसका रिश्ता सीधे-सीधे अनिता की कहानी से जुड़ा है।
अनिता एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसका जिन्दगी भर सिर्फ दुखों से नाता रहा। बचपन में माँ-बाप के घर गरीबी, शादी के बाद सास-ससुर और पति का अत्याचार। एक दिन ससुराल वालों ने अनिता को घर से निकाल दिया और लाचार अनिता संपर्क में आ गयी ज्ञानेश्वरी दीदी के।
अपने गुरु के सतकर्मों को आगे बढ़ाने निकलीं ज्ञानेश्वरी जगत दीदी थीं। किशोरावस्था की जो उम्र आम लड़कियों के लिए परी लोक के राज कुमार के ख्वाबों और खयालों का होता है, उस उम्र में दीदी निकल पड़ी थीं, शिक्षा के प्रचार और प्रसार में।
अपने अभियान के इसी मिशन में वो पहुँचीं पंजाब से जबलपुर। यहाँ उन्होंने बहुत साल पहले बनवासी बच्चों की शिक्षा की नींव डाली। और अपने मिशन के इसी पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने के बीच उनकी मुलाकात हुई अनिता से।
दुखों से लबरेज अनिता से।
ईश्वर भी कभी-कभी किसी-किसी की बहुत बड़ी परीक्षा लेता है। अनिता को यहीं एक दिन पता चला कि उसे कैंसर हो गया है।
कैंसर?
अब बारी थी दीदी को अपने गुरु से मिले ज्ञान की असली परीक्षा की।
दीदी ज्ञानेश्वरी ने अनिता की सेवा शुरू कर दी। डॉक्टरों ने कह दिया था कि समय बहुत कम है और तकलीफ बहुत ज़्यादा।
दीदी ने अनिता की सेवा जी जान से की।
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मेरी माँ जब बहुत बीमार थी तब मैंने ईश्वर से दुआ माँगी थी कि हे भगवान! इन्हें मौत दे दो।
दीदी ने कल मुझे बताया कि वो भी ईश्वर से अनिता के लिए मौत की दुआ माँगती थीं। उसकी पीड़ा उनसे नहीं देखी जाती थी। ईश्वर ने उनकी सुन ली और एक दिन अनिता दीदी ज्ञानेश्वरी की गोद में दम तोड़ गयी।
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ये तो कहानी हुई अनिता की।
अब मैं साझा करता हूँ वो कहानी जिसे किसी ने मुझे भेजी थी।
एक बार एक लड़की ने अपने पिता से कहा कि उसकी जिन्दगी मुश्किलों से भरी है। वो क्या करे? पिता उसे घर की रसोई में ले गये। वहाँ उन्होंने एक पतीले में कुछ आलू रखे, एक पतीले में कुछ अंडे रखे और तीसरे पतीले में कॉफी के कुछ बीज रख दिये।
तीनों पतीले उन्होंने आग पर रख कर उन्हें उबलने दिया।
कुछ देर बाद पिता ने पतीला आग से नीचे उतारा और बेटी से कहा कि तुम आलू को छू कर देखो कैसा है?
बेटी ने आलू को छुआ, आलू जो पहले कड़ा था, अब मुलायम हो चुका था। अंडा जो पहले फूटने पर द्रव बन जाता अब भीतर से ठोस बन गया था।
और कॉफी?
कॉफी के पानी में घुलने से पानी का रंग ही बदल गया था। जैसे ही पतीले का ढक्कन हटा पूरे घर में ककफी की खुशबू बिखर गयी।
बेटी ने पिता से पूछा कि इसका क्या अर्थ हुआ?
पिता ने कहा कि आलू जो पहले कठोर था, गरम पानी में जाकर मुलायम हो गया। अंडा जो अपने छिलके के नीचे द्रव था, वो कठोर हो गया। और कॉफी ने पानी को ही बदल दिया। एक ही परिस्थिति में तीनों ने अलग-अलग तरह से रिएक्ट किया। जो मजबूत था, वो टूट गया। जो टूटने के बाद बिखर सकता था, उसने खुद को ठोस बना लिया। और कॉफी ने तो पूरी छटा में अपनी ही खुशबू बिखेर दी।
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उस दिन अनिता ज्ञानेश्वरी दीदी की गोद में मर गयी थी। दीदी चाहतीं तो जार-जार रो सकती थीं। चाहतीं तो अनिता के नाम पर पूरा उपन्यास लिख सकती थीं। पर नहीं। दीदी ने चुना कैंसर के मरीजों को तकलीफ से मुक्ति का रास्ता।
और यहीं से शुरू हुआ जबलपुर में विराट हॉस्पिस। यहाँ कैंसर के आखिरी स्टेज के मऱीज आते हैं और अपनी लंबी पीड़ा से मुक्ति पाते हैं। मौत तो सबको आनी ही है। पर दीदी यहाँ पढ़ाती हैं, मरने से पहले जीने का पाठ।
(देश मंथन, 05 अप्रैल 2016)