विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
तपोवन एक्सप्रेस दोपहर ढाई बजे औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पर दस्तक दे देती है। रेलवे स्टेशन की बाहरी साज सज्जा देखकर ही लग जाता है कि हम किसी ऐतिहासिक शहर में आ गये हैं। रेलवे स्टेशन से आधे किलोमीटर की दूरी पर बंसीलाल नगर में हमारा होटल है श्री माया।
सुंदर वातानुकूलित कमरे वाजिब दाम पर। अगले चार दिन यहीं पर रहना है। रेलवे स्टेशन से उतर कर होटल वाले को फोन किया था बोला आप टहलते हुए होटल तक पहुँच सकते हैं। सो हम पहुँच गये।
शाम को हम लोग औरगांबाद शहर घूमने निकले। महाराष्ट्र के मराठवाडा इलाके का सबसे बड़ा शहर है औरंगाबाद। आबादी 20 लाख से ज्यादा हो चुकी है। शहर में एयरपोर्ट भी है। दिल्ली से सीधी फ्लाइटें हैं। कई बड़े उद्योग लगे हैं, वीडियोकान समूह के उत्पाद यहाँ बनते हैं। इसके अलावा केनस्टार होम अप्लाएंसेज, सीमेंस, बजाज, कोलगेट पामोलिव, गरवारे, जांसन एंड जानसन, विप्रो जैसी तमाम बड़ी कंपनियाँ यहाँ से उत्पादन करती हैं।
किसी जमाने में औरंगाबाद 52 दरवाजों वाला शहर हुआ करता था। पूरा शहर एक बाउंड्री के अंदर था। ये दीवार अभी भी जगह-जगह दिखायी देती है। इन 52 दरवाजों में से 18 अभी भी अस्तित्व में हैं। दिल्ली की तरफ जाने वाली सड़क पर दिल्ली गेट है। इसके अलावा पैठण गेट, नौबत गेट, मकई गेट, जाफर गेट जैसे द्वार मजबूती से खड़े हैं। इन गेटों के अलावा दीवार में कई जगह खिड़कियाँ भी थीं। बताते हैं कुल 24 खिड़कियाँ थीं। गेट बंद होने के बाद बाहर से आने वाले मुसाफिर इन खिड़कियों से रक्षकों से संवाद कर सकते थे। अभी भी 4 खिड़कियों का अस्तित्व बचा हुआ है। रात 8 बजे शहर के सभी गेट बंद कर दिये जाते थे। बाद में आने वाले मुसाफिर की जाँच पड़ताल करने के बाद ही प्रवेश दिया जाता था। कभी पुरानी दिल्ली शहर में भी सात दरवाजे हुआ करते थे। पर ये तो 52 दरवाजों का शहर था। यानी दिल्ली से ज्यादा व्यवस्थित।
इस नगर की स्थापना 1610 में मलिक अंबर ने की थी। मलिक अंबर के बेटे ने नगर का नाम फतेह नगर रखा था। पर मुगल शासक औरंगजेब के अधीन आने पर 1653 में इसका नाम बदलकर औरंगाबाद हो गया। बाद में ये शहर हैदराबाद के निजाम के अधीन हो गया, लिहाजा इसका ज्यादा विकास नहीं हो सका। औरंगाबाद कलात्मक रेशमी शॉल के लिए प्रसिद्ध है।
औरंगाबाद शहर की एक सुबह
शहर में बीबी का मकबरा, पानी चक्की देखने लायक है तो आसपास में एलोरा की गुफाएँ, दौलताबाद का किला, खुल्ताबाद में औरंगजेब की मजार, घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, अंजता की गुफाएँ देखी जा सकती हैं। ये सब कुछ तो देखेंगे पहले जरा बाजार का चक्कर लगा लें। शहर का शापिंग एरिया गुल मंडी है जो पैठण गेट से आरंभ होता है। इसके आगे औरंगपुरा में भी बाजार है। फूले चौक, क्रांति चौक, बाबा पेट्रोल पंप चौक शहर के मुख्य चौराहे हैं। शहर का एक बड़ा हिस्सा सेना का कैंटोनमेंट एरिया है। शहर के बीचो-बीच सेंट्रल बस स्टैंड है, जहाँ से सभी जगह के लिए बसें मिलती हैं। शहर से कई मराठी अखबारों के अलावा हिंदी में दैनिक भास्कर और लोकमत समाचार का प्रकाशन होता है।
(देश मंथन, 20 अप्रैल 2015)