सौमित्र रॉय, स्वतंत्र पत्रकार :
साल 2015 भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ‘देश सेवा’ से कुछ पल चुराकर अपने आरामगाह में लेटे थे।
तभी उनके सपने में भगवान शिव अपने गणों के साथ प्रकट हुए। बोले, मूर्ख। तू यहाँ बेखबर सो रहा है? जानता है काशी की जनता अभी भी खून के आंसू रो रही है? याद है तूने काशी की जनता से क्या वादे किए थे? पीएम बनते ही सब भूल गया? जल्दी कुछ कर, वरना भस्म कर दूंगा।
भगवान शिव का रौद्र रूप देखकर मोदी चौंककर उठ बैठे। चेहरे से पसीना पोंछा। फौरन सेक्रेट्री (अमात्य) को तलब किया। पेन-कागज लेकर सेक्रेट्री साहब दौड़े-दौड़े आये और गर्दन झुकाकर आदेश के इंतजार में खड़े हो गये। मोदी बोले, बनारस को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाना है। आप एक माह में पूरी योजना का खाका तैयार कर मुझे दें। सेक्रेट्री साहब चौंके। बोले, मैं समझा नहीं। बनारस दुनिया के धरोहर शहरों की दौड़ में है। अब उसे वर्ल्ड क्लास कैसे बना सकते हैं? पीएम को अपने ‘अमात्य’ की मोटी बुद्धि पर तरस आया। बोले मुझे सवाल पसंद नहीं। मीडिया वालों को यह बखूबी पता है। लेकिन अमात्य भी मूलत: बनारस के थे। कहा, सरजी, आपके पास थोड़ा वक्त हो, सुनने की इच्छा हो तो कुछ अर्ज करूँ।
वर्ल्ड क्लास सिटी के लिए चाहिए होंगी, गगनचुंबी इमारतें और चौड़ी चमचमाती सड़कें। बनारस तो गलियों का शहर है। वहाँ जितनी सड़कें हैं, उससे 100 गुना तो गलियाँ हैं। ज्यादातर में सूर्य की रोशनी नहीं पहुँचती। सड़कों का इस्तेमाल जुलूस निकालने में होता है। जिस गली से कोई घर पहुँच सकता है, उसी से श्मशान भी जा सकता है। एक बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति यूलिसिस ग्रांट गलती से पत्नी के साथ बनारस की एक गली में पहुँच गये। वहाँ पहले से मौजूद भगवान शंकर के वाहन सांड़ ने उनकी पत्नी को सींग पर उठा लिया था। भगवान शंकर का नाम सुनकर मोदी के माथे पर फिर पसीने की बूंदें छलक आईं। बोले, अच्छा सड़कों-गलियों को छोड़ो। मुंबई, अहमदाबाद की तर्ज पर वहाँ ऊँची इमारतें तो बन ही सकती हैं।
‘अमात्य’ बोले, नहीं सरजी। बनारस की तंग गलियों में बने मकान बेहद तिलिस्मी हैं। इतने कि देवकीनंदन खत्री ने भी चंद्रकांता संतति में इनसे प्रेरणा ली थी। काशी भूत-प्रेतों की नगरी है, इसलिए मारे डर के लोग पास-पास बसना पसंद करते हैं। इससे सौहार्द रहता है। लोग हाथ बढ़ाकर पड़ोसी से लेन-देन कर लेते हैं। गर्मी में कूलर-एसी की जरूरत नहीं होती, क्योंकि सूर्य की किरणें न पहुँच पाने से मकानों में शिमला सा मजा आता है। ऑटो-टैक्सी इन गलियों में नहीं घुस सकते, सो लोग रात-बेरात गाड़ी पकड़ने के लिए बक्सा सिर पर रखकर पसीने से तरबतर सड़क तक आते हैं। पैसा बचता है। गलियों में यहाँ-वहाँ बनारसी लघु शंका के लिए खड़े मिलते हैं। कर्मनाशा बहती है। कूड़े के ढेर अलग। बदबू और गंदगी से तंग आकर लोगों ने उन जगहों पर मंदिर बनवा दिए। इससे काशी में मंदिर लगातार बढ़ते गये। आपने हिंदू धर्म के नाम पर वोट बटोरे हैं सरजी। क्या आप इन मंदिरों को तोड़ पायेंगे ? काशी में लखवरिया ईंटो वाले मकान बौद्ध काल से पहले के और पत्थरों वाले मकान बौद्धकाल के बाद के हैं। नंबरिया ईंटो के मकान ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने के हैं। इन्हें तोड़ना आसान नहीं होगा सर जी?
मोदी के माथे पर उभरती फिक्र की लकीरों को देखकर ‘अमात्य’ का हौसला बढ़ा। बोले, मुंबई की तर्ज पर काशी में एक चौपाटी भी है। यहाँ कुछ ‘हो’ सकता है सरजी। मोदी की बांछें खिल उठीं। बोले, वो कैसे। ‘अमात्य’ ने तुरुप का पत्ता फेंका। यह दशाश्वमेध घाट वाला हिस्सा है। बस थोड़ी ‘समझाइश’ देनी होगी। सुबह ‘उन्मुक्त तरीके से’ मालिश कराने से लेकर ‘पंडित’ और ‘रईसों’ के गंगा में मल त्यागने और घाट के ऊपर की ओर भिखारियों की जमात से निपटना पड़ेगा। इस घाट की खूबसूरती की तारीफ कई मशहूर सैलानियों ने भी की है, सो मेरा सुझाव है कि आप इसका उद्धार कर दें तो बनारसियों का दर्द दूर हो जायेगा।
मोदी मुस्कुराए। बोले, बाजार की रौनक भी तो लोगों को पतंगे की तरह विकास की रोशनी की तरफ ले जाती है। हम वहाँ शानदार मॉल, होटल बनवायेंगे। शहर के रईस आयेंगे और हमारी वाह-वाह करेंगे। ‘अमात्य’ ने पॉजिटिव का दामन नहीं छोड़ा। बोले, बनारस में हर शख्स रईस है। चाहे वह सड़क पर झाड़ू लगाने वाला ‘जमादार’ ही क्यों न हो। बनारस के रईस सुबह 9 बजे से पहले बिस्तर नहीं छोड़ते। ‘निपटान’ के बाद मालिश, फिर ‘सटक’ पीकर आराम और शाम को दोस्तों की महफिल। बनारस के इन रईसों को घर से निकालना एक चुनौती होगी सरजी। ये आप कर सकते हैं। बनारस में तकरीबन सभी ब्रांड मौजूद हैं, पर बिक्री इसलिए कम होती है, क्योंकि रईसों को घर से दुकान के दरवाजे तक ला पाना अभी तक मुमकिन नहीं हुआ, वरना वे तो बाथरूम में भी फ्रिज लगवा दें।
अब मोदी को अहमदाबाद की शान ‘बीआरटीएस’ की याद आई। बोले, ‘विकास सड़क पर भी दिखना चाहिए।’ ये कैसे होगा? ‘अमात्य’ बोले, सरजी बनारस के राजा सांड़ पर, रानी सिंह पर, राजकुमार चूहे पर, युवराज मयूर और कोतवाल कुत्ते की सवारी करते हैं। बनारस में चलने वाले वाहनों में सबसे पहले आती है बग्घी, फिर तांगा, फिर इक्का और आखिर में ‘गांधी ब्रांड’ रिक्शा आते हैं। बनारस की सवारी गाड़ियों में 10% रिक्शे हैं। ज्यादातर सड़कें हर पाँच कदम पर गड्ढों से भरी हैं और इनमें रिक्शे की सवारी पेट का पानी मुंह तक ला देता है। सवारी के शरीर की खासी ‘मरम्मत’ हो जाती है। टैक्सियों का किराया मुंबई से 20 गुना ज्यादा है। सरकारी बसें भी हैं, पर बहुत ज्यादा ‘मानवतावादी’। कोई नियम नहीं। भीड़ से बजबजाती सड़कों पर रेंगती बसों में सवारियाँ और माल-असबाब कितना भरा जायेगा, यह कंडक्टर पर निर्भर है। ऐसे में सरजी, बीआरटीएस वाली कुछ सड़कें ही निकलेंगी। आप बेशक ट्राई मार सकते हैं, पर मामला जमेगा नहीं। सड़कों पर लोग इस कदर आजाद हैं कि कोई हड़का देगा, ‘तारे बाप क सड़क हव। हमारे जेहर मन होई, तेहर से जाब।’ डबल सवारी, बिना नंबर और बिना बत्ती की गाड़ी, डबल सवारी। हर कोने में शंका निवारण की सुविधा।
तो यही है बनारस सरजी। इसकी महिमा और भी है। आपको बहुत थोड़े में बताया।
सरजी। आप आदेश करें तो प्रोजेक्ट तैयार करूं?
सवाल सुनकर मोदी अचानक नींद से जागे। बगल में रखा पानी का गिलास खाली किया। कैलेंडर पर नजर डाली। तारीख 26 मई, 2014 माथे से पसीना पोंछा। सोचा, भगवान शिव के प्रकोप से बचने का एक ही तरीका है, काशी को छोड़ो़। वड़ोदरा को पकड़ो।
गनीमत है कि वह सपना ही था। एक मोदी ने देखा और एक मोदी को लेकर बनारसियों ने देखा।
सपना तो सपना ही होता है….
(भोलेनाथ की नगरी काशी में चार बार जाना हुआ। पहली यात्रा से लेकर चौथी तक में कई कहानियाँ जेहन में समा गयीं। मजेदार प्रसंग, लोगों से बातचीत और आखिर में विश्वनाथ मुखर्जी की किताब ‘बना रहे बनारस’ के संदर्भ को मोदी के वादे से जोड़कर व्यंग्यात्मक रूपांतरण किया है। किसी के दिल को ठेस पहुँचाना मेरा मकसद नहीं।)
(देश मंथन, 24 मार्च 2014)