आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मैंने एक पुण्यार्थी उद्योगपति से निवेदन किया कि मुफ्त का पानी पिलाना इस गरमी में बहुत पुण्य का काम है।
पर परम पुण्य का काम इन दिनों यह है कि किसी मोबाइल, टैब, लैपटाप की बैटरी का रिचार्ज और इनवर्टर का रिचार्ज एक मिनट में करवा दिया जाये।
जिस बन्दे की गर्लफ्रेंड से बात इसलिए ठप हो गयी हो कि उसके मोबाइल की बैटरी बैठ गयी, उसकी बैटरी को एक मिनट में रिचार्ज करवा देना, परम-प्यासे को पानी पिलाने का जो पुण्य मिलेगा, वही इस परम प्रेमी के मोबाइल-बैटरी रिचार्ज पर मिलेगा। हाँ, पत्नी से बात करते हुए मोबाइल बैटरी ठप हो जाये, तो आम तौर पर बन्दा राहत महसूस कर सकता है, पर वह विषय अलग है।
पानी की प्याऊ की तरह रिचार्ज प्याऊ हर जगह दिखनी चाहिए। क्या ही सीन हो – बन्दा किसी बिजी चौराहे पर जा रहा है – सामने बैनर लगा है – रिचार्ज भन्डारा, बन्दा अपने मोबाइल को हजारों लगी रिचार्ज पिनों में ठेलकर अगले क्षण वापस निकालता है।
अगले ही क्षण निकालने का मसला महत्वपूर्ण है।
चेरिटी भी बन्दा इन दिनों फास्ट चाहता है। अभी एक जगह भन्डारे में मुफ्त भोजन दिया जा रहा था, मेजबान भोजन दाता ने भोजनार्थियों से लाइन में लगने को कहा – भोजन – आकान्क्षी बुरा मान गये – बोले क्या हमें किसी होटल में खाने वाला समझ रखा है कि तीन-चार लाइनों में लग कर खाना मिलेगा – पहली होटल में घुसने की लाइन, फिर पेमेंट की लाइन, फिर खाना लेने की लाइन। हम भन्डारे में इज्जत से खाते हैं, होटलों में खाने वालों की तरह की बेइज्जती झेलने की आदत नहीं हमारी। नहीं खाना लाइन में लगकर।
भोजन चेरिटी लेनेवाले नहीं मिल रहे हैं, रिचार्ज चेरिटी को लेने को आतुर लोग मिलेंगे। बैटरी कंपनियाँ चाहें, तो कुछ पन्डों से मिलकर रिचार्जेश्वर की कथा, इक्कीस रिचार्ज, इक्यावन रिचार्ज के पुण्य के माहात्म्य को पापुलर करवायें। रिचार्ज भन्डारा पापुलर हुआ, तो सबसे ज्यादा फायदा बैटरी कंपनियों को होगा। बिना किसी के फायदे के कुछ पापुलर नहीं होता।
डिस्क्लेमर – यह लेख किसी भी तरह से बैटरी कंपनियों द्वारा स्पान्सर नहीं है, पर फालतू भी नहीं है। इस बात की जानकारी इसलिए दी जा रही है कि इन दिनों जिस आइटम को स्पान्सर नहीं मिलता, उसे सिर्फ फालतू माना जाता है।
(देश मंथन, 30 अप्रैल 2015)