मानो तो गंगा माँ हूँ….

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

गंगा अवतरण की कथा रामायण में मिलती है। अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सगर अश्वमेध यज्ञ करने की ठानी। उनके अश्वमेध यज्ञ से डरकर इंद्र ने राक्षस रूप धारण कर यज्ञ के अश्व को चुरा लिया और पाताल लोक में ले जा कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।

कथा के मुताबिक राजा सगर की दो पत्नियाँ थीं- केशिनी और सुमति। केशिनी के गर्भ से असमंजस पैदा हुआ और सुमति के गर्भ से साठ हजार पुत्र। असमंजस बड़ा ही उदंड प्रकृति का था। वह प्रजा को बहुत पीड़ा देता था। सगर ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। अश्वमेध का घोड़ा चुरा लिये जाने के कारण सगर बड़ी चिंता में पड़ गये। उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को अश्व ढूंढ़ने के लिए कहा। पुत्र अश्व ढूंढ़ते ढूंढ़ते-ढूंढ़ते पाताल लोक में पहुँच गये।

वहाँ उन लोगों ने कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा बंधा देखा। उन लोगों ने मुनि कपिल को चोर समझ कर उनका अपमान कर दिया। ऋषि कपिल ने सभी को शाप दिया- ‘तुम लोग भस्म हो जाओ।’ पुत्रों के आने में विलंब देख कर राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान, जो को पता लगाने के लिए भेजा। अंशुमान खोजते-खोजते पाताल लोक पहुँचे। वहाँ अपने सभी चाचाओं को भस्म देख उन्होंने कपिल मुनि की स्तुति की। कपिल मुनि ने उसे घोड़ा ले जाने की अनुमति दे दी और यह भी कहा कि यदि राजा सगर का कोई वंशज गंगा को वहाँ तक ले आये तो उनके 60 हजार पुत्रों का उद्धार हो जाएगा। 

अंशुमान घोड़ा लेकर अयोध्या लौट आए। यज्ञ समाप्त करने के बाद राजा सगर ने 30 हजार वर्षों तक राज किया और अंशुमान को राजगद्दी देकर स्वर्ग सिधार गए। अंशुमान ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का काफी प्रयत्न किया, लेकिन सफल नहीं हो सके। अंशुमान के पुत्र दिलीप ने दीर्घकाल तक तपस्या की। लेकिन सफलता नहीं मिली। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने घोर तपस्या की।

भगीरथ के तप से खुश हो गंगा ने आश्वासन दिया कि मैं जरूर पृथ्वी पर आऊँगी, लेकिन जिस समय मैं स्वर्ग से आऊँगी, उस समय मेरे प्रवाह को रोकने के लिए कोई मौजूद होना चाहिए। भगीरथ ने इसके लिए भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिव ने गंगा को अपनी जटा में धारण कर लिया। गंगा शिवजी के मस्तक से भूमि पर उतरी। इनमें से अंतिम प्रवाह भगीरथ के बताए हुए मार्ग से चलने लगा।

भगीरथ कैलाश पर्वत (गंगोत्री) से चलते हुए गंगा को लेकर हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, पाटलिपुत्र, भागलपुर होते हुए उसी जगह आए जहाँ उनके प्रपितामह भस्म हुए थे। गंगा सबका उद्धार करती हुई सागर में समाहित हो गयीं। भगीरथ द्वारा लाए जाने के कारण गंगा का एक नाम भागीरथी भी है। जहाँ भगीरथ के पितरों का उद्धार हुआ, वही स्थान सागर द्वीप या गंगा सागर कहलाता है। तब से गंगा जीवन दायनी बनी हुई लोगों का उद्धार कर रही हैं।

(देश मंथन, 12 मार्च 2016)

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