संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे घर काम करने वाली बता रही थी कि वो भाई दूज के दिन काम पर नहीं आएगी।
वजह? भाई दूज पर भाई घर आएगा, वो उसे टीका लगाएगी।
मेरे दफ्तर में भी कई लोगों ने मुझसे कहा कि वो भाई दूज के दिन देर से आएँगे, या नहीं आएँगे।
वजह? बहन के घर जाना है, टीका लगवाने।
मैंने काम वाली से पूछा था कि भाई दूज के दिन टीका लगाने के इस त्योहार का मतलब पता है?
वो कुछ देर सोचती रही। फिर उसने कहा, “नहीं। हमें तो इतना ही पता है कि भाई को हम टीका लगाएँगे, मिठाई खिलाएँगे। यह तो एक त्योहार है। सब लोग मनाते हैं। मैं भी मनाती हूँ।”
मैंने अपने दफ्तर वालों से भी पूछा था कि क्या तुम्हें पता है कि तुम भाई दूज पर बहन के घर क्यों जाते हो? इस दिन की अहमियत क्या है? सबने कहा, “सर, यह सदियों से चला आ रहा एक त्योहार है, बस।”
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धर्म कभी सवालों के कठघरे में नहीं होता, अगर हम अपने सभी त्योहारों के मर्म को समझते और समझाते। अगर हम अपने बच्चों को यह बताते कि भाई दूज का मतलब क्या होता है। अगर हम अपने बच्चों को हर पर्व त्योहार की कहानियाँ सुनाते, उन्हें इन त्योहारों का अर्थ समझाते। इन कहानियों को विरासत में आगे बढ़ाते, तो धर्म सिर्फ पुस्तक और आस्था की बात नहीं रह जाती। धर्म विज्ञान बन जाता।
आदमी को सवाल पूछना चाहिए। कई बार खुद से ही पूछना चाहिए।
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मैंने बहुत साल पहले माँ से पूछा था कि दीदी मुझे टीका लगाती है, मैं पैसे देता हूँ। क्यों?
दीदी को मुझे पैसे देने चाहिए। वो मुझसे बड़ी है।
माँ मुझे समझाने लगी। तुम बहन को पैसे नहीं दे रहे। तुम उसे खुश कर रहे हो। तुम उसे खुश कर रहे हो, क्योंकि बहन तुम्हें दुआ देगी। तुम्हें आशीर्वाद देगी।
“पर क्यों?”
क्योंकि आशीर्वाद तो तुम खुद ले नहीं सकते। वो तुम अपनी बहन को खुश करके प्राप्त करते हो।
“पर माँ बहन का आशीर्वाद क्यों चाहिए? वो तो तुम देती ही हो।”
“बहन वाला आशीर्वाद तो बहन ही दे सकती है, और कोई नहीं। संसार में कोई नहीं दे पाएगा, वो आशीर्वाद जो बहन दे सकती है।”
“माँ, ठीक से समझाओ न!”
“बेटा, कहानी तो बहुत लंबी है। फिर कभी सुनाउँगी। पर आज इतना ही समझ लो कि एकबार मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने धरती पर आये थे। भाई के घर आने पर यमुना बहुत खुश हुई थीं और उन्होंने तिलक लगा कर भाई का स्वागत किया था। यमराज इससे बहुत खुश हुए और उन्होंने अपनी बहन से कहा था कि आज का दिन संसार में यम द्वितिया यानी भाई दूज के रूप में जाना जाएगा। और जो भाई अपनी बहन के घर जाएगा, बहन उसे टीका लगाएगी और उसे आशीर्वाद देगी।”
“माँ इतनी छोटी कहानी नहीं, बड़ी कहानी सुनाओ न!”
सुनाऊँगी, बेटा। अभी तो तुम टीका लगवाओ। क्योंकि यम मृत्यु के देवता हैं, और वो अपनी बहन को बहुत मानते हैं, इसलिए बहन जब खुश होकर अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है। उसके रोम-रोम से अपने भाई के लिए दुआएँ निकलती हैं। ये दुआएँ, सीधे यम तक पहुँचती हैं और यम देवता बहनों की बात टाल नहीं सकते। इसीलिए बहनों को खुश रखना चाहिए।”
“मैं समझ गया माँ।”
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माँ ने बाद में यम द्वितिया की पूरी लंबी कहानी मुझे सुनायी। पर फिलहाल इतने से मेरे सवाल का जवाब मिल गया था।
हर पर्व की एक कहानी होती है। हर कहानी में एक संदेश होता है।
मुझे हैरानी होती है, उन लोगों पर जो सवाल नहीं पूछते।
सवाल पूछना चाहिए। सवाल के जवाब में विज्ञान छुपा होता है।
मैं आपको बता सकता हूँ कि दुआएँ जिन्हें हम सिर्फ आस्था मानते हैं, वही दरअसल ‘ब्लू टूथ’, ‘इंफ्रारेड’ और ‘वाई-फाई’ तकनीक है।
माँ कहती थी कि बहन की दुआ यम तक पहुंच जाती है। मेरे मन में यह सवाल भी था कि कैसे पहुँचती होगी हवा में।
पर इंटरनेट आने के बाद मेरे मन से वो संदेह भी दूर हो गया।
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आस्था को विज्ञान से जोड़ कर देखिए। सबकुछ सच लगेगा। सारी कहानियाँ विज्ञान लगेंगी।
(देश मंथन, 12 नवंबर 2015)