सनकियों के फैसले

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरा मन है कि आज मैं मोहब्बत की कहानी लिखूँ। मैं लिखूँ कि नफरत की चाहे जितनी वजहें होती हों, पर मोहब्बत की कोई बहुत बड़ी वजह नहीं होती। मैं आपको उस लड़की की कहानी सुनाना चाहता हूँ, जो एक लड़के से मिली और प्यार कर बैठी। सच यही तो है। आप अपने मन में झाँकिए, सोचिए, याद कीजिए अपनी मोहब्बत की कहानी को। आप पाएँगे कि सचमुच आप भी किसी से मिले और उससे प्यार कर बैठे। बहुत सोचा, फिर लगा कि नहीं, आज मोहब्बत की कहानी नहीं लिखूंगा। आज मैं उस आदमी की कहानी लिखूँगा, जिसने एक बार बादशाह हुमायूँ की जान बचायी थी। 

आज मैं उस भिश्ती की कहानी आपको सुनाना चाहता हूँ, जिससे हुमायूँ ने वादा कर लिया था कि जान बचाने के बदले एक बार वो जो चाहेगा, उसे पूरा किया जाएगा। भिश्ती था तो पानी वाला, पर उसने राजा से बहुत बड़ी चीज माँग ली थी। 

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वाकया कुछ इस तरह है- तारीख थी 26 जून 1539 जब हुमायूँ शेर खाँ के साथ युद्ध में फंस गया। गंगा के उत्तरी तट पर चौसा नामक जगह पर हुमायूँ की सेना उखड़ गयी और ऐसा लगा कि अब वो मारा जाएगा। हुमायूँ ने भी जिन्दगी की उम्मीद छोड़ दी थी। ऐसे में चमड़े के थैले में पानी लेकर चलने वाला एक भिश्ती हुमायूँ का मददगार बना। उसने घायल हुमायूँ को नदी पार करा कर भागने में मदद की। हुमायूँ जब भिश्ती की मदद से जान बचा कर भाग रहा था, तो उसने उसे बताया कि तुम आज जिसकी मदद कर रहे हो, वो हिंदुस्तान का बादशाह है। भिश्ती रुका। फिर उसने झुक कर बादशाह को सलाम किया। बादशाह अर्ध बेहोशी की हालत में था, पर उसने भिश्ती से कहा कि मेरी जान बचाने के एवज में तुम एक बार जो कुछ भी माँगोगे, मैं तुम्हें दे दूँगा। 

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भिश्ती मुस्कुराने लगा। उसने बादशाह से तब कुछ नहीं माँगा। 

पर जब बादशाह दिल्ली आकर स्वस्थ हो गया और राज-काज में व्यस्त हो गया, तो एक दिन वो भिश्ती अचानक बादशाह के दरबार में पहुँच गया। उसने बादशाह से मिलने की इच्छा जतायी। उसने खबर भिजवाई कि उसने राजा की जान बचाई थी। हुमायूँ को जब पता चला कि उसकी जान बचाने वाला भिश्ती उससे मिलने आया है, तो वो बहुत खुश हुआ। भिश्ती को महल में बुलाया गया। 

बादशाह ने भिश्ती से पूछा, “कैसे हो तुम?”भिश्ती ने जवाब में बादशाह से पूछा, “क्या आपको अपना वादा याद है?”बादशाह ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिल्कुल याद है।” 

“तो आप अपना वादा पूरा कीजिए।” “बोलो क्या चाहिए?”“आप मुझे एक दिन का राजा बना दीजिए। मैं देखना चाहता हूँ कि राजा बन कर कैसा लगता है।”

हुमायूँ तैयार हो गया। आदेश हुआ कि एक दिन के लिए हिंदुस्तान की हुकूमत भिश्ती के हाथों में होगी। भिश्ती राजा बन गया। राजा बनते ही उसने सबसे पहला फैसला लिया कि देश में चमड़े के सिक्के चलाए जाएँ। भिश्ती चमड़े की थैली में पानी भर कर लोगों के पिलाता था। उसने इससे अधिक कुछ और देखा ही नहीं था। पर उसने ये समझ लिया था कि किसी को अगर एक दिन की हुकूमत मिल जाए, तो कोई ऐसा काम कर गुजरना चाहिए, जिससे वो इतिहास के पन्नों में सदा के लिए दर्ज हो जाए। भिश्ती इसलिए ही राजा बना था कि वो कोई ऐसा फैसला करे, जो बेशक ऊटपटांग हो, लेकिन ऐसा हो कि दुनिया भर में जाना जाए।

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भिश्ती इसलिए राजा नहीं बना था कि जनता का भला हो। 

जब भी कोई इसलिए राजा नहीं बनता कि जनता का भला हो, तो वो जनता के हित में फैसले नहीं करता। वो जो भी फैसले लेता है, वो सिर्फ अपने हित में लेता है। भिश्ती ने इस बात की परवाह नहीं की थी कि एक दिन में चमड़े के सिक्के बनवाने के लिए सारी मशीनरी को सिर्फ इसी काम में झोंक दिया जाएगा। न जाने कितने जानवरों को मार कर उनके चमड़ों से सिक्के बनवाए जाएंगे। पर वो राजा था, उसने अपना फैसला सुना दिया था।

जो लोग राजा बनने की योग्यता नहीं रखते, जो यूँ ही किसी घड़ी विशेष में किसी की मेहरबानी से राजा बन जाते हैं, वो जनता के भले की नहीं सोचते। वो सिर्फ अपने सिक्के को चलाने की सोचते हैं। वो ऐसे-ऐसे फैसले लेते हैं कि सारी मशीनरी उनके फैसलों के झमेले में फंस जाती है। जनता के हित धरे के धरे रह जाते हैं। 

(देश मंथन 02 जनवरी 2016)

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