संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं कोई ज्योतिष नहीं हूँ, लेकिन मैं भविष्यवाणी कर सकता हूँ।
यह मेरी भविष्यवाणी है कि अगले कुछ वर्षों में आदमी इच्छा मृत्यु के शाप से ग्रस्त हो जायेगा।
आप भी सोच रहे होंगे कि इच्छा मृत्यु तो वरदान है, मैं सुबह-सुबह इसे शाप क्यों लिख रहा हूँ।
ये सच है कि महाभारत में भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान हासिल था। उन्हें दैवीय रूप से ये ताकत हासिल थी कि जब तक वो खुद न मरना चाहें कोई उन्हें मार नहीं सकता था। यहाँ तक कि अर्जुन के बाणों से बिंध चुके उनके लहूलुहान शरीर में भी इतनी शक्ति नहीं थी कि उनकी मर्जी के खिलाफ वो आत्मा को गुड बाय कह सके। वो बाणों की शैय्या पर लेटे रहे और कई दिनों तक शरीर की भयंकर पीड़ा सहते रहे। आखिर में उन्होंने मरना चुना, लेकिन तब चुना जब शरीर की पीड़ा पर मन की पीड़ा भारी पड़ गयी।
मैं, संजय सिन्हा आपको बता रहा हूँ कि मैं भीष्म से मिला हूँ। उनके आखिरी दिनों में मैंने उनके बहुत करीब जाकर उनसे पूछा था कि पितामह क्या सचमुच ‘इच्छा मृत्यु’ वरदान है।
पितामह ने बहुत कातर स्वर में कहा था कि संसार का सबसे दुखी प्राणी वही होगा, जिसे ये वरदान हासिल होगा। ये वरदान नहीं, सबसे बड़ा शाप है।
मैं जानता था कि पितामह सही कह रहे हैं।
इस संसार में कोई शरीर के कष्ट से मृत्यु को नहीं वरण करना चाहता, बल्कि मरने की वजह मन का कष्ट है। आदमी जब शरीर के कष्ट से मरता है तो ईश्वर को धन्यवाद देता है कि प्रभु तुमने मुझे मुक्ति दी, लेकिन जब मन के कष्ट से घिरा इंसान यही कहता है कि प्रभु मुझे ये सब देखने के लिए जीवित ही क्यों रखा और फिर जिसे हमने पौराणिक काल में इच्छा मृत्यु वरदान कहा है वो दरअसल मर जाने की कामना होती है। एक मृत्यु में शरीर की मौत होती है, दूसरी में आत्मा की।
आज विज्ञान जिस रफ्तार से शरीर के रेशे-रेशे का अध्ययन कर रहा है, उसमें बहुत मुमकिन है कि हम आने वाले दिनों में अपने शरीर को बहुत दिनों तक सुरक्षित रख पायें।
हो क्या सकता है, मैं ये भी भविष्यवाणी करता हूँ कि आने वाले दिनों में आदमी के शरीर की उम्र बहुत बढ़ जायेगी। पर ईश्वरीय विधान देखिए कि जीने की उम्र तब भी नहीं बढ़ेगी। आदमी ईश्वर को चैलेंज करता हुआ शरीर का पूरा शास्त्र कम्यूटर स्क्रीन पर उतार लेगा, लेकिन उसका मन ही नहीं करेगा और जीने का। मतलब ये कि आने वाले वर्षों में आदमी आत्महत्या करके मरेगा। वो छत से कूद जायेगा, जहर खा लेगा, ट्रेन से कट जायेगा, खुद को गोली मार लेगा या कोई और नई विधा तलाश लेगा पर मरेगा जरूर।
वो आदमी जो जिम में जाकर अपने शरीर की मांसपेशियों को रोज तराशेगा, वही खुद को खत्म कर लेगा।
वजह?
वजह बहुत सामान्य है। वजह वही जो भीष्म के सामने थी।
आदमी अकेलापन की वजह से जीना छोड़ देगा। आदमी एक दिन खुद से ऊब जायेगा और कहेगा कि अब और नहीं। शरीर को स्वस्थ रखने की विद्या से तो वो लैस होगा, लेकिन मन स्वस्थ नहीं रहेगा। शरीर में पीड़ा होगी तो दवा से वो उसे ठीक कर लेगा, लेकिन मन की पीड़ा का कोई इलाज नहीं होगा और इसी मन की असह्य पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए वो इच्छा मृत्यु को वरण करेगा।
आदमी धीरे-धीरे अकेलेपन की ओर बढ़ रहा है। सबके रहते हुए भी तनहाई उसके मन के पोर में समाती जा रही है और इसे मेरी भविष्यवाणी मान लीजिये कि आदमी एक दिन इस भरे पूरे संसार में सबसे अकेला प्राणी होगा।
आदमी अपनी औसत उम्र बढ़ा चुका होगा, सामाजिक सुरक्षा पा चुका होगा, लेकिन तनहा होगा। उसके बच्चे होंगे और बच्चों के पास अपनी निजी खुशियों के बीच अपने बुजुर्गों को देने के लिए धन चाहे जितना होगा, समय एक पल नहीं होगा। पड़ोसी एक दूसरे के नाम तक नहीं जानेंगे। रोज सुबह जब आपकी मुलाकात होगी तो वो गुड मॉर्निंग कहेंगे, रात में मिलेंगे तो गुड नाइट भी कहेंगे, लेकिन आपको जानेंगे नहीं।
यही दंश होगा।
मैंने कुछ दिन पहले एक पोस्ट में लिखा था कि कैसे बैंगलोर में एक बुजुर्ग तनहा अपने फ्लैट में मर गया था और पड़ोसियों की इसकी खबर तब मिली जब लाश से दुर्गंध उठने लगी। उस बुजुर्ग के बच्चे थे, लेकिन साथ नहीं रहते थे। आने वाले समय में आदमी इस बात से डरेगा कि कहीं बाथरूम में, होटल के कमरे में, या अकेले घर में उसकी मौत हो गयी तो अंतिम क्रिया भी पता नहीं होगी या नहीं। आदमी अपने मन को किसी से साझा नहीं कर पाने के दंश से घबराने लगेगा। वो लैपटॉप, आईपैड, मोबाइल फोन जैसे संचार और संवाद के हथियारों से लैस होगा, लेकिन संवाद करने के लिए कोई नहीं मिलेगा।
उसके पास एक दिन खूब समय होगा, लेकिन उसे कोई समय नहीं देगा और समय के तीर से उसका मन छलनी होता चला जायेगा।
सुविधा और संचार के सारे कृत्रिम साधनों से उसके ‘तन’ का हस्तीनापुर हरा-भरा रहेगा, लेकिन ‘मन’ का कुरुक्षेत्र हार जायेगा। कई दिनों तक वो बाणों की शैय्या पर बिंध कर भी पड़ा रहेगा, लेकिन शरीर की मौत नहीं होगी। मौत तो तभी होगी जब वो इच्छा मृत्यु की गुहार लगायेगा। मौत तभी होगी जब वो ईश्वर से कह उठेगा कि प्रभु अब और नहीं।
सालों साल ‘जिम’ में संवारा और तराशा हुआ बदन चाहे जीता रह जाये, लेकिन तनहाई में मन मर जायेगा।
एक फ्लैट के तीन कमरों की दूरी कई कोसों में तब्दील हो जायेगी। एक अपार्टमेंट में रहने वाले सारे लोग अजनबी तो आज भी हैं, तब घर के भीतर भी वही अजनबी नजर आने लगेंगे और अपने जब अजनबी बन जाते हैं, तो जीने की वजह खत्म हो जाती है।
भीष्म ने भी तो इच्छा मृत्यु का वरण तभी किया था जब अर्जुन और दुर्योधन दोनों उन्हें अजनबी नजर आने लगे थे।
हम भी तभी करेंगे। हम सब करेंगे।
मैं ज्योतिष नहीं हूँ। न मैं समाजशास्त्री हूँ, लेकिन मैंने दुनिया देखी है। हजारों साल से देख रहा हूँ। मैं जो कहता हूँ, यूँ ही नहीं कहता। यही होना है, यह होकर रहेगा।
पर कहते हैं न, हर शाप का एक काट होता है। इस शाप का भी एक ही काट है। लेकिन समय रहते कोई चेत जाये तब।
इस शाप का एक ही काट है और वो है रिश्तों की खुशबू को पहचान लेना, समय रहते उस पौधे को प्यार के खाद पानी से सींच देना। ध्यान रहे, एकबार पौधा सूख गया तो फिर सूख गया।
रिश्ता कोई भी हो टूट सकता है। रिश्तों में ईमानदारी बड़ी शर्त होती है, लेकिन सबसे बड़ी नहीं। सबसे बड़ी शर्त होती है रिश्तों को समझने की।
जो समझ जायेंगे वो तो समझ ही जायेंगे। जो नहीं समझेंगे उनके लिए इच्छा मृत्यु का द्वार खुला रहेगा।
(देश मंथन, 10 अप्रैल 2015)