लिंगराज मन्दिर : अद्भुत रचना, सौंदर्य और शोभा का संगम

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है लिंगराज मन्दिर। यह इस शहर के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक है।

उत्तर भारत में प्रसिद्ध मन्दिर रचना, सौंदर्य और शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह कलिंग वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। लिंगराज मन्दिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार देखने को मिलता है। मुख्य मन्दिर में आठ फीट मोटा और करीब एक फीट ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू शिवलिंग स्थित है।

तीनों लोकों के स्वामी भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप 1090 से 1104 के मध्य में बना है। इस मन्दिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरि ने 11वीं सदी में करवाया था। उसने तभी अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। मन्दिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार रूप में है। मन्दिर के कलश की ऊँचाई 54 मीटर है। मन्दिर के कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इस मन्दिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी आता है। यह भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है, जिसे ललाटेडु केशरी ने 617-657 ई. में बनवाया था। लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद पार्वती जी को प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बना कर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दु सागर सरोवर है। बिन्दु सागर सरोवर में भारत के प्रत्येक झरने तथा तालाब का जल संग्रहित है। कहा जाता है कि इसमें स्नान से पाप का नाश होता है।

पूजा पद्धति 

लिंगराज आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले बिन्दु सरोवर में स्नान करते हैं। फिर क्षेत्रपति अनन्त वासुदेव के दर्शन किये जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का है। गणेश पूजा के बाद गोपालनी देवी, फिर शिवजी के वाहन नन्दी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य द्वार में प्रवेश करते हैं। हर साल अप्रैल महीने में यहाँ रथयात्रा का आयोजन होता है। मन्दिर सुबह साढ़े छह बजे खुलता है। गैर-हिन्दू को मन्दिर के अन्दर प्रवेश की अनुमति नहीं है।

कैसे पहुँचे 

मन्दिर भुवनेश्वर को ओल्ड टाउन में स्थित है। रेलवे स्टेशन से दूरी 5 किलोमीटर है। बस स्टैंड से भी दूरी 5 किलोमीटर है। भुवनेश्वर पुरी मार्ग से मन्दिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। आप मन्दिर पहुँचने के लिए सिटी बस का सहारा ले सकते हैं या फिर आटो रिक्शा भी कर सकते हैं।

हमने 1991 में पूरे परिवार के साथ भुवनेश्वर की यात्रा की थी। इस दौरान हमारे गाइड ने हमें बताया कि भुवनेश्वर शहर में 500 छोटे-बड़े मन्दिर हैं। यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में कभी 7000 मन्दिर थे। यह एक तरह से छोटी काशी है। मन्दिरों के कारण भुवनेश्वर को देवताओं का घर भी कहा जाता है। पुरी से आने वाली पर्यटक बसें भी लोगों को लिंगराज मन्दिर लेकर आती हैं।

(देश मंथन, 06 जून 2015)

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