संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी पोस्ट पर आप जो टिप्पणियाँ करते हैं, उन्हें मैं बहुत मनन करके पढ़ता हूँ। कभी-कभी तो पढ़ने के बाद दुबारा पढ़ता हूँ। सच में आपकी टिप्पणियाँ कई बार इतनी दिलचस्प और शानदार होती हैं कि मैं खुद सोच में पड़ जाता हूँ।
कल मैंने ऐसे जुड़वाँ बच्चों की कहानी लिखी, जो न सिर्फ दिखने में सेम टू सेम हैं, बल्कि उन्हें दसवीं में और फिर बारहवीं में जो नंबर मिले, वो भी सेम टू सेम। मेरे लिखे पर राजेंद्र राज जी ने कमेंट किया, “आप और संजय सिन्हा बिल्कुल सेम टू सेम एक सी शैली में लिखते हैं और लोग दोनों की बातों को सच मान लेते हैं।”
मैं और संजय सिन्हा?
इस टिप्पणी को पढ़ कर मैं थम गया।
मैं तो मैं हूँ, फिर ये संजय सिन्हा कौन है? और लिखने वाला संजय सिन्हा है, तो फिर मैं कौन हूँ?
राजेंद्र राज जी ने सिर्फ दो पंक्तियों में जिन्दगी के जिस फलसफे को मुझे समझा दिया, वो मेरे लिए किसी गुरुमंत्र से कम नहीं। सचमुच, हम दो हैं। एक मैं और एक मेरा नाम। और राजेंद्र राज जी ने इन्हीं दोनों की तुलना उन जुड़वाँ बच्चों से की है और लिखा है कि मैं और संजय सिन्हा दोनों बिल्कुल सेम टू सेम लिखते हैं।
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एक बार एक व्यक्ति किसी दोस्त के घर गया। वहाँ बगीचे में उसने एक बड़ा सा पिंजरा देखा। उस पिंजरे में एक गरुड़ पक्षी बैठा था। व्यक्ति पिंजरे के पास जाकर उस पक्षी को देखने लगा। काफी देर तक देखने के बाद उसने अपने मित्र से पूछा कि यह कौन सा पक्षी है?
मित्र उसे देखने लगा। कितना बेवकूफ है उसका दोस्त? गरुड़ को नहीं पहचान रहा? पूछ रहा है कौन सा पक्षी है? मित्र ने कहा, “दोस्त ये गरुड़ है। संसार का सबसे शानदार पक्षी। यह ऊँचे आसमान में उड़ता है।”
व्यक्ति संयत भाव से पक्षी को देखता रहा। फिर उसने धीरे से कहा कि नहीं, ये गरुड़ नहीं है। ये गरुड़ हो ही नहीं सकता।
“क्यों भला?”
“क्योंकि गरुड़ का जन्म बहुत ऊँचे आसमान में स्वतंत्र उड़ने के लिए हुआ है। वो जब आसमान में उड़ता है, तभी वो गरुड़ हो सकता है। पिंजरे में बंद पक्षी तो उसके आकार-प्रकार का कोई जीव है, पर गरुड़ नहीं। तुमने अभी-अभी मुझसे कहा कि ये संसार का सबसे शानदार पक्षी है। ये ऊँचे आसमान में उड़ता है। पर तुम्हारी बातों में विरोधाभास है। जब ये आसमान में उड़ ही नहीं रहा तो सबसे शानदार कैसे हुआ?”
मित्र को बात समझ में आ गयी।
उसने पिंजरा खोल दिया। गरुड़ बाहर निकला। धीरे-धीरे उसने पँख फड़फड़ाए और उड़ चला ऊँचे आसमान की ओर।
व्यक्ति बुदबुदाया, “हाँ, ये गरुड़ है। संसार का सबसे शानदार पक्षी। अब जब यह उड़ रहा है, मुझे लग रहा है कि ये तो पिंजरे वाले पक्षी जैसा ही है, सेम टू सेम।”
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आदमी और आदमी का नाम दोनों सेम टू सेम हो सकते हैं, पर तब जब वो अपने पिंजरे से बाहर निकल जाए।
आज मुझे मेरे एक परिजन ने पिंजरे से निकाल दिया है। आप कब निकलेंगे?
निकलिए, अपने-अपने पिंजरों से निकलिए। एक बार मन के पिंजरे से आप बाहर निकल गये तो बहुत से ऐसे काम कर पाएंगे, जिन्हें आपने अब तक सिर्फ इसलिए नहीं किया, क्योंकि आपको लगता रहा कि आप भला ऐसा कैसे कर सकते हैं? ये करना तो आपके लिए मुमकिन ही नहीं। पर जब आप पिंजरे से निकलेंगे तभी आपको भी पता चलेगा कि आप ही गरुड़ हैं। सबसे शानदार और आसमान में सबसे ऊँचा उड़ने वाले।
वो जो कुछ अलग कर गुजरते हैं, वो आपसे अलग नहीं होते। बस वो खुद को पहचान लेते हैं। जो खुद को पहचान लेते हैं, वो हो जाते हैं, सेम टू सेम।
(देश मंथन, 28 मई 2016)