संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
लानत है मुझ पर। पिछले 26 सालों में कल पहला मौका था, जब मुझसे मेरी पत्नी ने कहा कि एक कप चाय बना कर पिला दो और मैं करवट बदल कर सो गया।
कल दोपहर में घर लौटने के बाद पता नहीं क्यों पत्नी ने पेट में दर्द की शिकायत की। मैं अपनी तरफ से सदाबहार दवा ‘पुदीन हरा’ दे कर अपने कर्तव्य से मुक्त हो चुका था और मैंने उसे सलाह भी दी कि थोड़ी देर सो लोगी तो पेट दर्द ठीक हो जाएगा।
मुझे नहीं पता कि पत्नी सोई या नहीं, पर मैं सो गया। हालाँकि मेरी नींद कच्ची है और मैं कम सोता हूँ, पर कल सो गया। अचानक पत्नी ने मुझे जगाया और कहा कि आज तुम एक कप चाय बना दो। मेरी आँख खुली, मेरे कानों ने सुना, पर मैं फिर सो गया।
पत्नी ने दुबारा नहीं कहा। कुछ ही देर में मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि पत्नी खुद चाय बना कर पी रही है।
***
संजय सिन्हा, तुम याद करो। तुम आधी रात में भी सोती हुई पत्नी को जगा कर हजार बार कह चुके हो कि एक कप चाय पीने की इच्छा है और अगले पाँच मिनट में गर्म चाय की प्याली तुम्हारे हाथों में होती है। और आज 26 सालों के इस साथ में एक बार तुमसे उसने चाय की इच्छा जताई, तो तुम सो गये।
लानत है तुम पर।
***
ऐसा नहीं है कि मैंने कभी चाय नहीं बनाई। ऐसा नहीं है कि मुझे चाय बनानी नहीं आती और ऐसा भी नहीं है कि मैं बहुत अच्छी चाय बनाता हूँ। पर यह सच है कि उसने कभी मुझसे चाय बना कर देने के लिए नहीं कहा था। मैंने दो-चार बार चाय बनायी है, पर अपनी मर्जी से। पर कल उसने मुझसे कहा, “संजय, क्या तुम एक कप चाय बना सकते हो?”
खैर, तब तो नहीं, पर शाम को लगा कि मुझे अपनी पत्नी को एक कप चाय बना कर पिलानी चाहिए।
पतीले को गैस के चूल्हे पर चढ़ाया। दो कप पानी डाला, पानी उबला तो दो चम्मच चाय की पत्ती डाली और उसे ढक कर छोड़ दिया। इतने में पत्नी रसोई में आ गयी। उसने मुझे चाय बनाते देखा तो खुश हुई, और उसे खुश देख कर मेरा अपराध बोध कम हुआ।
चाय चूल्हे पर चढ़ी हुई थी, पत्नी ने मुझे समझाया कि जब पत्ती उबलते पानी में डाल देते हैं, तो पतीले को चूल्हे से उतार देना चाहिए।
“क्यों?”
“क्योंकि ये ग्रीन लीफ है। भले तुमने गैस बंद कर दी है, लेकिन अगर पानी चूल्हे पर रहेगा, तो धीरे-धीरे उबलता ही रहेगा और चाय कड़वी हो जाएगी।”
“समझ गया।”
फिर पत्नी ने पतीले का ढक्कन हटा कर देखा, चाय काली हो चुकी थी। उसने मुझे समझाया कि दो कप पानी में एक चम्मच चाय होनी चाहिए, ताकि रंग हल्का रहे, चाय कड़वी न हो।
“समझ गया।”
“और मान लो चाय कड़वी हो ही जाए, तो तुम क्या करोगे?”
“क्या करूँगा?” मैंने बहुत दिमाग दौड़ाया। हम जो चाय पीते हैं, आम तौर पर उसमें आधा चम्मच दूध होता है, आधा चम्मच चीनी होती है, इसलिए मैं ये कह कर भी नहीं बच सकता था कि चाय में ज्यादा चीनी या दूध और डाल दूँगा। फिर क्या करूँगा?
“अगर चाय कड़वी हो जाए, तो उसमें और गरम पानी डाल दो। इससे चाय दो की जगह तीन या चार कप हो जाएगी, लेकिन तुम्हारी चाय ठीक हो जाएगी।”
और उसने मेरी बनाई कड़वी हो चुकी चाय में एक कप और पानी डाल कर उसे एकदम दुरूस्त कर दिया।
मैं चाय पीता रहा। सोचता रहा।
मैं सोचता रहा कि महिलाओं में बिगड़ी चीजों को बना देने का गुण जन्मजात होता है क्या?
मैं चाय पीता रहा, सोचता रहा। कई बार हमारे रिश्ते भी किसी से कटु हो जाते हैं, तो क्या हम उसमें प्यार का एक कप पानी डाल कर उसकी कड़वाहट दूर कर सकते हैं?
बहुत देर सोचा।
यही समझा कि अगर पत्नी ने मुझे बताया नहीं होता तो मैं उस कड़वी चाय को फेंक देता और दुबारा नयी चाय बनाने की कोशिश करता।
पर कल चाय में थोड़ा पानी मिला कर उसे ठीक करने की विद्या सीखते हुए मैंने यह भी सीख लिया कि अगर कभी आपका रिश्ता किसी से कटु हो जाए, तो उसे तोड़ लेने की जगह उसमें प्यार के थोड़े मीठे बोल बढ़ा कर उसे ठीक किया जा सकता है।
कड़वी चाय में पानी मिलाने में कोई खर्च नहीं आता। कड़वे रिश्तों में भी मीठे बोल बढ़ाने में कोई खर्च नहीं आता।
रिश्ता हो या चाय, दोनों परफेक्ट हो सकते हैं, अगर कोई उसे ठीक करना चाहे तो।
कल मैंने पत्नी से चाय बनाने की विद्या सीख ली, उम्मीद है आप संजय सिन्हा से रिश्ते जोड़ने की कला सीख लेंगे।
(देश मंथन, 25 अप्रैल 2016)