जीने का संकल्प

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

“जब विकल्प की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब मानव संकल्प का उदय होता है।”

ये एक ऐसी पंक्ति है जिसे मैंने पहली बार जबलपुर में Ravindra Bajpai के मुँह से Kamal Grover के होटल में बैठ कर सुना था। कई महीने बीत गए, मेरे मन में यह वाक्य बार-बार कौंधता था कि क्या सचमुच जब आदमी के सामने से सारे विकल्प खत्म हो जाते हैं, तभी संकल्प का उदय होता है? 

क्या ऐसा कभी होता है कि आदमी के सामने से सभी विकल्प खत्म हो जायें? 

ऐसा होता है। 

अपने अमेरिका प्रवास में मुझे कई बार अस्पताल जाने का मौका मिला है। मैंने देखा है कि वहाँ के अस्पतालों में पूजा की भी एक जगह भी होती है। सलीब पर ईसा मसीह की मूर्ति के सामने उन लोगों को जीवन का संकल्प लेते देखा है, जिनके सभी विकल्प खत्म हो गये थे। 

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आप में से बहुत से लोगों ने अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘मजबूर’ देखी होगी। 

अमिताभ बच्चन को ब्रेन ट्यूमर है और डॉक्टरों ने बता दिया है कि वो छह महीने से अधिक नहीं बचेंगे। घर में माँ है, एक विकलाँग बहन है और एक छोटा भाई है। 

ऐसे में अमिताभ बच्चन के सामने मजबूरी है कि अब वो क्या करें? उनके इस संसार से चले जाने के बाद परिवार का क्या होगा? जीवन के एक मोड़ पर वो खुद को सभी विकल्पों से दूर पाते हैं। 

ऐसे में उनके सामने एक प्रस्ताव आता है कि अगर वो एक हत्या का आरोप अपने सिर ले लें, तो उनके परिवार को पाँच लाख रुपये मिल जाएँगे। इससे उनके परिवार की स्थिति थोड़ी ठीक हो सकती है। और रही बात अमिताभ बच्चन की तो उन्हें तो मरना ही है। 

अमिताभ बच्चन की जिन्दगी के सभी विकल्प ख़त्म हो चुके होते हैं, इसलिए वो संकल्प लेते हैं कि वो उस अपराध की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेंगे, जिस अपराध को उन्होंने किया ही नहीं है। 

वो ऐसा ही करते हैं। पुलिस उन्हें पकड़ लेती है और उन्हें फाँसी की सजा भी सुनाई जाती है। इसी बीच जेल में ही उन्हें ब्रेन ट्यूमर का तेज दर्द होता है और उन्हें अस्पताल ले जाते हैं, जहाँ डॉक्टर उनका ऑपरेशन करते हैं। 

जिस अमिताभ बच्चन को डॉक्टरों ने सिर्फ छह महीने का समय दिया है, वो अमिताभ बच्चन बच जाते हैं। जिस ऑपरेशन के होने में हजार अड़चनें थीं, वो ऑपरेशन सफल रहता है। 

अब क्या हो? अमिताभ बच्चन को तो फाँसी की सजा हो चुकी है। पर जैसे ही अमिताभ बच्चन को पता चलता है कि उनका ब्रेन ट्यूमर ठीक हो गया है, उनके भीतर जीने की इच्छा पैदा होती है। पर उनके सामने जीने का विकल्प कहाँ है? 

क्योंकि विकल्प नहीं है, इसलिए वो फिर एक संकल्प लेते हैं। जीने का संकल्प। 

वो किसी तरह जेल से भाग जाते हैं। वो अपनी बेगुनाही का सबूत जुटाते हैं । कानून असली अपराधी तक पहुँच जाता है, अमिताभ बच्चन बच जाते हैं। 

ये फिल्म थी। जिन्दगी भी फिल्म है। 

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कल मैं जबलपुर जा रहा हूँ। मुझे वहाँ विराट हॉस्पिस में जाना है। साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी और डॉक्टर अखिलेश गुमाश्ता ने मुझे बुलाया है। वो मुझे उस स्थान को दिखाना चाहते हैं, जहाँ जिन्दगी की स्क्रिप्ट लिखी जाती है। संकल्प के चमत्कार मैं अपनी आँखों से देख पाऊँगा। मैं देख पाऊँगा कि नेपोलियन बोनापार्ट ने क्यों कहा था कि ‘असंभव’ शब्द सिर्फ मूर्खों के शब्दकोष में ही होता है। 

मुझे विराट हॉस्पिस में यह देखने का मौका मिलेगा कि संकल्प की शक्ति क्या होती है। 

मैं वहाँ से एक नहीं, सौ कहानियाँ लेकर आपके पास आऊँगा। यकीन कीजिए मेरी हर कहानी चमत्कृत कर देने वाली होगी। 

मैं चाहूँ तो विराट हॉस्पिस के विषय में आपको आज ही सब कुछ बता सकता हूँ, पर मैं जानबूझ कर अपनी आज की स्क्रिप्ट अधूरी छोड़ रहा हूँ, ताकि आप रूबरू हो सकें जिन्दगी की उन कहानियों से, जिसमें उम्मीद की शक्ति आप खुद देख पाएँगे। 

वैसे बता दूँ कि विराट हॉस्पिस एक अस्पताल है, एक संस्था है जो उनकी जिन्दगी में संकल्प की तरह है, जिनकी जिन्दगी में विकल्प खत्म हो चुके हैं। यहाँ कैंसर के बहुत से ऐसे मरीज रहते हैं, जिनके परिवार वालों ने उन्हें छोड़ दिया है। जिन्हें डॉक्टरों ने कह दिया है कि अब सिर्फ ईश्वर का आसरा है। ऐसे मरीज जिनकी उम्मीद की किरणें बुझ गयी हैं, उन मरीजों के मन में यहाँ संकल्प के फूल खिलाए जाते हैं। जिन्हें अपनों ने छोड़ दिया, उन्हें विराट ने थाम लिया।

चार महीने पहले जबलपुर में जब मैंने इस वाक्य को सुना था कि जब विकल्प की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब मानव संकल्प का उदय होता है, तभी मेरे मन में ये बात थी कि एक बार इस हॉस्पिस के विराट रूप को देखूँगा जरूर। मैं देखना चाहता था उन लोगों के विराट हृदय को भी, जो आज भी दूसरों की जिन्दगी के लिए संकल्प का आधार बनने को तैयार बैठे हैं। 

मैं उस सोच को सलाम करता हूँ, जो भावनाओं से संचालित होती है। मैं उन लोगों को सलाम करता हूँ, जिनके सीने में आज भी किसी और के लिए दिल धड़कता है। 

मैं विकल्प को संकल्प में तब्दील करने की उस चाहत को सलाम करता हूँ, जहाँ सेवा ही धर्म है।

मैं उन सभी लोगों को सलाम करता हूँ, जो उम्मीद बांटते हैं। जहाँ उम्मीद होती है, वहीं जिन्दगी होती है। आप अपनी उम्मीदों को कभी मत मिटने दीजिएगा। कभी नहीं। याद रखिएगा मेरी बात कि सचमुच जब विकल्प खत्म होते हैं, तभी संकल्प की शुरुआत होती है। संकल्प जीने का। संकल्प जीने देने का।  

(देश मंथन, 01 अप्रैल 2016)

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