बालकनी में बैंगन

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विनीत कुमार, मीडिया आलोचक: 

लंबे इन्तजार और रूटीन से पानी देते रहने के बावजूद गमले में लगाये बैंगन के पौधे पर जब फूल आने पर भी एक भी बैंगन नहीं आया तो मैं हार गया..फिर तो पानी देने का भी मन न होता.. वैसे भी मेरे घर में सप्लाई, टंकी, पाइप को लेकर पता नहीं कौन सा राज रोग है कि पानी की किल्लत बनी रहती है, लेकिन

एक दिन मैंने देखा कि जिन बैंगन के पौधे के प्रति मैं बिल्कुल नाउम्मीद हो चुका हूँ, मेरी पड़ोसन जिसे अब दोस्त कहना ज्यादा अच्छा होगा, मेरी आँखों के सामने बिसलेरी की दो लीटर की पैक्ड बोतल खोल कर पौधे में पानी दे रही है। सप्लाई पानी आने पर नियम से पानी देने लगी और उसका नतीजा आप देख ही रहे हैं।

हुआ यूँ था कि एक दिन इन गमले में पानी देते वक्त मैंने यूँ ही कहा- तुम सब ताड़-खजूर की तरह बस बड़े हो गये हो बस, बाकी एक भी बैंगन दे नहीं सकते। लगाते वक्त सोचा था कि इतने फलेंगे कि मिहिर को भरवाँ बैंगन के लिए सौगात ले जाऊँगा…लेकिन तुम्हारे लगाने का कोई फायदा नहीं। मैं इसे उखाड़ कर फेंकने के मूड में आ गया था।

उस वक्त तो वो बालकनी में थी भी नहीं लेकिन एक शाम बारिश में भींगे इन पौधे को देखकर कहा- सो ग्रीन, सो स्वीट, विशिंग फॉर यर लॉन्ग लाइफ। ऐसा बोलते हुए उसने पौधे के आगे हाथों से उसी तरह का घेरा बनाया जैसे हम किसी को हग करते हुए बनाते हैं।

हम दोनों बैंगन के पौधे पर आपस में बात किए बिना एक-दूसरे की मन की बात जान गए थे। हमने पानी देना छोड़ देने के बावजूद उखाड़ कर फेंकने का इरादा भी छोड़ दिया और वो पानी देने के मामले में पहले से कहीं ज्यादा पर्टिकुलर हो गयी.. इस डर से कि कहीं मैं सच में उखाड़ न दूँ। लगाये तो मैंने थे लेकिन अब जान की चिन्ता वो करने लगी, बचाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर आप ही ले ली। मुझे सेलफिश को सिर्फ बैंगन के आने से प्यार है और उसे बस हरियाली से।

आज सुबह इनमें पानी देते वक्त मुस्कराकर पूछा- नाउ एवर्थिंग इस फाइन न।

(देश मंथन, 21 जुलाई 2015)

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