आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
राष्ट्र एक ही है, यूँ तो, हम सब एक ही हैं, बस यह बात कोई आल्टो कार वाला होंडा सिटी वाले से ना कह दे, होंडा सिटी वाला फौरन खंडन करके बता देगा कि ना हम एक नहीं हैं, कार के हिसाब से तुझमें और मुझमें वही फर्क है, जो बंगलादेश और इंडिया में है।
सारी इमोशनबाजी के बावजूद राष्ट्र कई मामलों में एक ना है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दिल्ली एक ना हो पा रही है, साउथ दिल्ली वाले गैर साउथ दिल्ली वालों के साथ एकमएक ना हो रहे। सिंपल मोबाइलधारी खुद को आईफोन सिक्स प्लसधारी के समकक्ष मानें, ये आईफोनधारी को नागवार गुजर सकता है, यद्यपि वह इसकी खुलेआम घोषणा ना करता।
पर अब दिल्ली के संपन्न इलाके साउथ दिल्ली के बंदे-बंदियां रिश्ते-नाते बनाने के मामले में साफ घोषणा कर देती हैं- ओनली साउथ दिल्ली वाले चाहिए। सो मच सो कि जाति बंधन छोड़ कर बंदे साउथ दिल्ली वाले को चुन रहे हैं, जो चाहे अपनी जाति का ना हो। जो साउथ में है, यानी आम तौर पर अमीर है, उसकी जाति क्या पूछो।
साउथ खुदै एक जाति है।
साउथ दिल्ली को दिल्ली का अमेरिका मानिये। और यूँ माने कि अमेरिका खुद पूरी दुनिया का साउथ है। इंडिया से बंदा कायस्थ, ब्राह्मण, खत्री होकर अमेरिका जाता है। पर अमेरिका में शादी करनी हो इंडियन को, तो वह जाति नहीं देखता, अमेरिका में वैल सेटल्ड इंडियन से शादी कर लेता है या कर लेती है। जो अमेरिका में है, वह तो साउथ में ही है ना। साउथ खुदै एक जाति है जी।
पूरी दिल्ली साउथ या ईस्ट के आधार पर ना बंटे, इसका एक रास्ता यूँ है कि पूरी दिल्ली का नाम ही साउथ दिल्ली कर दो। पर नहीं, साउथ वाले बुरा मान सकते हैं। साउथ वाले को धक्का सा लग सकता है, अगर नान साउथ वाला साउथ होने में सफल हो जाये। खैर, साउथ का स्टेटस इसलिए ही है कि ईस्ट भी है। सब साउथ हो जायें, तो साउथ को कौन पूछेगा जी। महीन बात है। साउथ का स्टेटस साउथ पर नहीं चल रहा है, ईस्ट वाले के बूते चल रहा है।
ईस्ट वाला यूँ लाख कह ले कि साउथ वाले ऐसे, साउथ वाले वैसे। पर दिल के किसी कोने में उसका अपना साउथ पलता है। आईये, इलीट साउथ वालों के विरोध में आवाज बुलंद करें, तब तक, जब तक हम खुद पक्के वाले साउथ ना हो जायें।
(देश मंथन, 18 अगस्त 2015)




आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :












