विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
किसी भी शहर के इतिहास को जानने के लिए वहाँ के संग्रहालय को जरूर देखना चाहिए। चंबा का भूरी सिंह संग्रहालय आपको शहर और आसपास के समृद्ध ऐतिहासिक विरासत से परिचित कराता है। यह एक छोटा सा संग्रहालय है पर इसे काफी बेहतर ढंग से प्रबंध करके रखा गया है।
प्रवेश टिकट 20 रुपये का है। बच्चों के लिए प्रवेश टिकट 10 रुपये का है। संग्रहालय चौगान के पाँच उद्यान पार करने के बाद आता है। यह चंबा शहर के सिविल हास्पीटल के सामने स्थित है। संग्रहालय के प्रांगण में एक बुद्ध की मूर्ति लगी है। भूरी सिंह संग्रहालय का अब नया भवन बना है। पहले यह संग्रहालय पुराने भवन में हुआ करता था। मुख्य भवन में संग्रहालय में कुल चार गैलरियाँ हैं। दो गैलियाँ आधार तल पर हैं तो दो पहली मंजिल पर।
चंबा की पनघट शिलाएं
भूरी सिंह संग्रहालय का सबसे बड़ा आकर्षण है, चंबा क्षेत्र की पनघट शिलाएं। आखिर ये पनघट शिलाएं क्या हैं। वास्तव में पहाड़ों पर जो जल के स्रोत हुआ करते थे, उसके आसपास के पत्थरों में कलाकार नक्काशी करके कई तरह के चित्र अंकित करते थे। ये शिलाएं पनघट शिलाएं कहलाती थीं। पानी के स्रोत के आसपास सुंदर चित्रकारी। पूरे संग्रहालय में 20 से ज्यादा ऐसी पनघट शिलाओं का संग्रह है। इसमें कई शिलाएं चुराह और तीसा क्षेत्र से ली गयी हैं। ज्यादातर शिलाएं सोलहवीं सदी की बनी हुई हैं।
संग्रहालय के प्रथम तल पर मिनिएचर पेंटिंग की सुंदर गैलरी है। इसमें गुलेर शैली की पेंटिंग बनाई गयी हैं। यहां चंबा शहर की पुरानी श्वेत श्याम तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं। यहाँ कांगड़ा के राजा संसार चंद कटोच और चंबा के राजा राज सिंह के बीच हुई संधि का तांबे से बना संधि पत्र देखा जा सकता है।
भूरी सिंह संग्रहालय के अलावा एक छोटा सा संग्रहालय लक्ष्मीनारायण मंदिर के परिसर में भी है। इसे स्थानीय लोग ट्रस्ट बना कर संचालित कर रहे हैं। वहाँ हमारी मुलाकात नरेंद्र बड़ोत्रा से होती है (फोन-8894305733)। वे हमें चंबा के इतिहास के बारे में काफी रोचक जानकारियाँ देते हैं।
चंबा वह शहर है जहाँ भारत में कोलकाता के बाद बिजली पहुँची। यानी कोलकाता के बाद बल्ब यहाँ जमगाया। यह संभव हुआ चंबा के राजा भूरी सिंह के प्रयास से। उनका बनवाया भूरी सिंह पावर हाउस आज भी संचालन में है। भूरी सिंह संग्रहालय की स्थापना 14 सितंबर 1908 को राजा भूरी सिंह ने करवाई थी। भूरी सिंह ने 1904 से 1919 तक चंबा पर शासन किया। भूरी सिंह ने अपने राजकीय संग्रह से कई ऐतिहासिक महत्व की सामग्रियाँ संग्रहालय को दान में दीं।
चंबा है अचंभा
996 मीटर की ऊँचाई पर बसा चंबा आबादी में छोटा सा शहर है पर इसका इतिहास काफी समृद्ध है। कई विदेशी सैलानियों ने तो इसे अचंभा शहर कहा है। शहर की आबादी 40 हजार के आसपास है। पर शहर का इतिहास एक हजार साल से ज्यादा पुराना है। 500 ईश्वी के आसपास यहाँ मारू वंश का शासन था। इलाके की प्राचीन राजधानी यहाँ से 75 किलोमीटर आगे भारमौर थी। 920 ई. में राजा साहिल वर्मन ने राजधानी चंबा में स्थानांतरित की। ऐसा उसने अपनी बेटी चंपावती के आग्रह पर किया। 1846 में चंबा ब्रिटिश शासन में आया। यह एक प्रिंसले स्टेट था जो अप्रैल 1948 में चंबा स्वतंत्र भारत का अंग बना।
(देश मंथन 10 जुलाई 2016)