विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
किसी जमाने में चंपारण को मिनी चंबल कहा जाता था। पर अब हालात बदल गये हैं।
लौरिया नंदनगढ़ से आँटो रिक्शा में बैठता हूँ नरकटियागंज के लिए। सड़क अच्छी बन गयी है। दोनों तरफ हरे भरे खेत हैं। चंपारण धान का बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। गन्ने का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। चंपारण में कई चीनी मिलें हैं। यहाँ को भूख से नहीं मरता। जून के महीने में आम का मौसम है। पेड़ों पर जर्दा आम पककर झूम रहे हैं। बाजार में बेचने के लिए आम तोड़े जा रहे हैं। आँटो रिक्शा हमें नरकटियागंज के हरदिया चौक पर छोड़ देता है। मैं रेलवे स्टेशन को पार करके पुरानी बाजार होते हुए जय प्रकाश नारायण की प्रतिमा वाले चौक तक पहुँचता हूँ। बाजार में आम खूब सस्ते बिक रहे हैं। 30 रुपये किलो।
सब्जियाँ तो और भी सस्ती हैं। करेला, नेनुआ और कुनरी सब 10 रुपये किलो। पर नरकटियागंज में जमीन काफी महँगी है। 40 लाख रुपये प्रति कट्टा। यानी दिल्ली के बाहरी इलाके के बराबर। चंपारण से बड़ी संख्या में लोग अरब देशों में नौकरी करने गये हैं, इसलिए पैसा खूब आ रहा है। ब्लॉक और जिले में पदस्थापित होने वाले अधिकारी चंपारण से तबादला नहीं चाहते। क्योंकि यहाँ रुतबा और पैसा दोनों है। सौ साल पहले होने वाली नील की खेती के बाद हालात बदल गये हैं। रेल नेटवर्क और सड़क नेटवर्क में भी सुधार हुआ है। एक और अच्छी चीज दिखायी देती है, बिहार पर्यटन की ओर से सभी प्रमुख चौक चौराहों पर आसपास के स्थलों की जानकारी देते हुए बोर्ड लगाये गये हैं।
बेतिया कभी बेतिया राज हुआ करता है। बेतिया की सड़कों पर फिल्म अभिनेत्री हेलन का बचपन गुजरा है। यहाँ जार्ज आरवेल की स्मृतियाँ हैं। चनपटिया से पार करके कुमार बाग पहुँचता हूँ। कई उद्योग लगे दिखायी देते हैं। बेतिया शहर के चारों तरफ कालोनाइजनर नयी-नयी कालोनियाँ बनाने में लगे हैं। शहर में तेजी से फैलाव हो रहा है। कुमार बाग तक कालोनियाँ बन रही हैं। बेतिया शहर में बड़े-बड़े शोरूम दिखाई देते हैं। प्रजापति, छतौनी, सुप्रिया रोड में बदलाव की बयार दिखायी देती है। हालाँकि जिस रफ्तार से बेतिया का विकास हो रहा है उसी रफ्तार से मोतिहारी का विकास होता हुआ नहीं दिखायी देता।
मशहूर फिल्मकार प्रकाश झा और फिल्म अभिनेता ‘मनोज वाजपेयी’ बेतिया के रहने वाले हैं। हमारे पत्रकार मित्र समीर वाजपेयी, आसित नाथ तिवारी का रिश्ता भी बेतिया से है। अगर आप चंपारण के किसी हिस्से से गुजर रहे हैं तो यहाँ दही खाना न भूलें। ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा।
(देश मंथन, 01 जुलाई 2015)