विद्युत प्रकाश :
देश भर में सुबह के नास्ते का अलग अलग रिवाज है। जब आप झारखंड के शहरों में पहुँचेंगे तो हर जगह अंकुरित चने के स्टाल मिलेंगे। अब सेहत के लिहाज से अंकुरित चना खाना कितना बेहतर है ये बताने की जरूरत है भला।
तैलीय पदार्थ जैसे पूड़ी सब्जी और छोला भठूरा जैसे नास्ते की तुलना में अंकुरित चना खाना हर किसी के लिए श्रेयस्कर है।
तैलीय भोजन में घटिया क्वालिटी के तेल के इस्तेमाल का खतरा हमेशा बना रहता है, जिसके खाने के बाद पेट खराब होने का खतरा बना रहता है। अगर आप सफर में हैं तो खान पान, नास्ते को लेकर और सावधानी बरतनी चाहिए। राँची, रामगढ़, हजारीबाग के बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के आसपास ठेले पर अंकुरित चना बेचने वाले स्टाल खूब मिलते हैं। 10 रुपये की अंकुरित चने की प्लेट उसमें काला नमक, प्याज आदि का मिश्रण खाना सेहतमंद और सुरक्षित हो सकता है।
ठेले वाले इसे झारखंड के जंगलों में मिलने वाले वन उत्पाद के पत्तों पर परोसते हैं। इसके कारण राज्य के तमाम शहरों में हरे पत्तों के प्लेट बनाने का रोजाना का कारोबार भी चलता है। महिलाएँ जंगल से पत्ते चुन कर लाती हैं और उनसे प्लेटें बनाती हैं। तो हरी हरी प्लेटों में अंकुरित चना ये है सुबह का नास्ता।
हर अंकुरित चने के स्टाल वाला साथ साथ चने का सत्तू भी बनाता है। दस रुपये ग्लास। सत्तू के साथ प्याज, नींबू, काला नमक, जीरा आदि से बना मसाला मिलाया जाता है। रामगढ़ हजारीबाग में स्टाल पर सत्तू बनाने वाले दुकानदार हजारीबाग के फर्म के बने ब्रांडेड कंपनियों के सत्तू इस्तेमाल करते दिखायी देते हैं।
यानी सत्तू में भी कई स्थानीय ब्रांड आ गये हैं। सत्तू पीना सबके लिए फायदेमंद है और खासतौर पर उन लोगों के लिए जो डायबिटिज आदि के मरीज हैं सत्तू पीना और भी बेहतर है। दोनों की नास्ते चने के बने हुए हैं। यानी प्रोटीन से भरपूर। गाँवों में कहावत है… खाये चना रहे बना।
(देश मंथन, 14 जुलाई 2014)